अभिलेख

आतंकवाद पर वार करती विनोद बिस्सा जी की कविता ”शर्म करो”


आतंकवाद पर वार करती विनोद बिस्सा जी की कविता ”शर्म करो”
विनोद बिस्सा अब हिन्दुस्तान का दर्द के लिए नया नाम नहीं है इनकी रचनायें सत्य से जुडी हुई होती है तो पढिये बहस का बिगुल बजाती दूसरी कविता ”शर्म करो”!!!

…..शर्म करो……

खिलाड़ियों पर
आतंकी हमला
और सियासती
टिप्पणिया
अब तो शर्म
भी शर्मिंदा है
पर अफसोस
लोकतंत्र के
पहरेदारों के लिये
महज ये
सियासी किस्सा है …
नहीं फिक्र
किसी को
हैवानियत के
परिणामों की
महज औपचारिकता
बची हैं
चिंता, शोक
श्रद्धांजलियों की ……

…………..विनोद बिस्सा

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विनोद बिस्सा जी की कविता ”असमंजस विनाशकारी”

इस कड़ी में अब हम जो कविता प्रकाशित कर है उसे अपने शब्दों से सजाया है विनोद बिस्सा जी ने ,विनोद जी की इस कविता ने शीर्ष पाँच में तीसरा स्थान प्राप्त किया है ! हम विनोद की को बहुत बहुत बधाई देते है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ,आप लोगों से आग्रह है की उनकी इस कविता पर अपनी राय के रूप में समीक्षा भेजें !

असमंजस विनाशकारी
प्रतिक्षण समय
भाग रहा
इस बात से
बेखबर
किस पथ
जाऊं मैं
पथिक
खड़ा सोच रहा
हर पलबे-फिकर
नहीं समझ
पा रहा वह
क्या उसने उचित
यह पथ चुना ?
जिस पथ को
वह ताके
सुख दुख
दोनो खड़े दिखें
दोराहे पर खड़ा
वह विस्मित
पूरा समय
युं ही खो दे
असमंजस विनाशकारी
ये बात
वह नहीं समझ रहा
हर पल
खोजने में सही पथ
पूरी ताकत झोंक रहा
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ विनोद बिस्सा

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