पुरालेख | अप्रैल 2010

शराब की दूकानों का ठेका लेने महिलाओं के हजारों आवेदन.

खबर:

शराब की दूकानों का ठेका लेने महिलाओं के हजारों आवेदन.

आपकी राय ?

मधुशाला को मधुबाला ने निशा निमंत्रण भेजा है.
पीनेवालों समाचार क्या तुमने देख सहेजा है?
दूना नशा मिलेगा तुमको आँखोंसे औ’ प्याले से.
कैसे सम्हाल सकेगा बोलो इतना नशा सम्हाले से?
*
आचार्य संजीव सलिल / http://दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

इलेक्ट्रोनिक मीडिया का काम समझ में नहीं आता

आजकल एक चैनल दिनभर ब्रकिंग न्यूज ही दिखाता रहता है. समझ में तो ये नहीं आता कि ये न्यूज चैनल ‘समाचारÓ किसे कहते हैं. समय समय पर मीडिया के रोल पर सवाल भी उठते रहते हैं. सवाल उठना भी वाजिब है. यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि मैं प्रिंट मीडिया की नहीं मैं तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बात कर रहा हूं. भारत में प्रिंट मीडिया का इतिहास कई दशक पुराना है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी शैशवकाल में हैं. इलेक्ट्रोनिक मीडिया हमारे समाज के आइने के समान है. लेकिन पिछले 8 सालों में जितने भी इलेक्ट्रोनिक मीडिया खुले है. उससे तो एक बात साफ है कुछ को छाड़ दे तो सभी का काम पैसा कमाना ही है. आज मीडिया का काम पैसा कमाना ही है.
आज मीडिया अपना असल काम ही भूल गई है. सानिया और शोएब की शादी ने जितने न्यूज बटोरे है और इस कंट्रोवर्सी को सभी न्यूज चैनल ने 24 घंटे दिखाया. लेकिन इस बीच दंतेवाड़ा में 80 से ज्यादा जवान शहीद हो गये तो किसी भी न्यूज चैनल ने ऐसी रिपोर्टिंग नहीं कि जैसी की जानी थी. आप ही बोलिए जितने समय में आपने सानिया-शोएब का ड्रामा देखा, जितने उनके बारे में जाना क्या आप दंतेवाड़ा में मारे गए शहीदों के बारे में जान पाए हैं? नहीं ना. मैं स्पष्ट भी कर सकता हूं आप किसी एक शहीद का नाम बताइये आप नहीं बता पायेंगे. सारांश यहाँ
आप न्यूज चैनल किसे कहेंगे. उस चैनल को जो भूतों पर भी एक घंटे का स्पेशल एपीसोड चलाते हैं. हद तो तब लगती है जब एक न्यूज चैनल ने अमेरिका के राष्ट्रपति की पत्नी मिशेल ओबामा की स्वास्थ्य यानी सेहत का राज वाला एक अफ्रिकी सेब खोज निकाला फिर क्या दिन भर में 20 बार हमने वो समाचार देखें. हाल ही में अखण्ड भारत का सबसे बड़ा महाकुंभ का समापन हुआ करोड़ों लोग इसमें शामिल हुए. फिर भी इसे सारे मीडिया ने नजर अंदाज किया. थोड़े-थोड़े समाचार और विशेष बुलेटिन को छोड़कर किसी ने इसकी गहराई से आम जनता तक लाने की कोशिश भी नहीं की खैर आम जनता तो जानती है फिर भी दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स से कई गुणा बड़ा यह कुंभ था बगैर किसी सुख सुविधा के यह कुंभ संपन्न हो गया ओर सफल भी रहा. खबरो का चुनाव कैसे करना है या खबर कौन सी लेनी है यह मीडया अच्छी तरह जानती है. लेकिन शायद विज्ञापन और टीआरपी के पीछे मीडिया भाग रही है. खबर का असर किस पर होता है उसका आप पर या सरकार पर. मीडिया का काम सच उजागर करना है और वो कहां तक सफल हुए है आप ही जानते हैं. लेकिन भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी सफल नहीं हुई है शहर से गांवों तक मीडिया को जाना होगा. टोना टोटका, जादू, भूत और साधु महात्मा वाले प्रोग्राम को बंद कर असल बिंदू पर आना होगा.
-चंदन कुमार साहू

लो क सं घ र्ष !: आजाद भारत है या गुलाम भारत ?

बाराबंकी में सफदरगंज पुलिस अफीम के लाईसेंस धारक माता प्रसाद मौर्या को उनके गाँव से पकड़ कर लायी और रुपया वसूलने के लिए उनकी जबरदस्त पिटाई की कि उनकी मौत हो गयीउनके लड़कों को पुलिस थाने लाकर फर्जी मुक़दमे में चालान की तैयारियां शुरू कर दीकल बाराबंकी कोतवाली में अपर पुलिस अधीक्षक कोतवाल के बीच में सरेआम काफी कहासुनी हुई कोतवाल ने अपर पुलिस अधीक्षक के मुखबिर का चालान एन.डी.पि.एस एक्ट में कर दिया अपर पुलिस अधीक्षक ने कोतवाल के मुखबिरों का चालान करा दियाराजस्व विभाग के अधिकारी लोगों की जमीनों को विवादित कर गुंडों और मवालियों को कब्ज़ा कराने का कार्य कर रहे हैंआम नागरिक करे तो क्या करे वस्तुगत स्तिथियों को देखने के बाद अब संदेह होने लगता है कि हम आजाद भारत के नागरिक हैं या ब्रिटिश कालीन भारत के नागरिक हैंब्रिटिश कालीन भारत में भी राज्य द्वारा नागरिकों का उत्पीडन होता थालोकतान्त्रिक आजाद भारत में भी नागरिकों का उत्पीडन हो रहा है

सुमन
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लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

आज दिनांक २८.०४.२०१० को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-२०१० के अंतर्गत प्रकाशित पोस्ट –

ब्लोगोत्सव-२०१० : ऑनलाइन विश्व की आजाद अभिव्यक्ति है ब्लोगिंग

ब्लोगोत्सव-२०१० :दर्पण का कार्य तो वस्तु का बिम्ब प्रदर्शित करना है
रहस्य: हम किसी चीज़ को किसी जगह पर देखते हैं तो वह वास्तव में ‘उस जगह’ पर नहीं होती
ब्लोगोत्सव-२०१० : आज हम लेकर आये हैं श्यामल सुमन की ग़ज़ल
ब्लोगोत्सव में आज हम लेकर आये हैं संजीव वर्मा सलिल,
ललित शर्मा और रवि कान्त पांडे के गीत
ब्लोगोत्सव में आज श्रेष्ठ पोस्ट के अंतर्गत माँ की डिग्रियां और शारदा अरोरा की कविता
ब्लोगोत्सव-२०१० : बहुत कठिन है डगर पनघट की
http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/75.html

utsav.parikalpnaa.com

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

सुमन
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लो क सं घ र्ष !: क्या गद्दारी हमारी परंपरा का हिस्सा है ?

हमारे देश के राजे महाराजे सामंत जमींदार ब्रिटिश साम्राज्यवाद के एजेंट के रूप में कार्य करते थे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद का दुनिया में सूरज अस्त होना शुरू हो गया था और उसकी जगह अमेरिकन साम्राज्यवाद ने ले ली थी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के चाकर तभी से अमेरिकन साम्राज्यवाद के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था। उनके लिए देश और सामाज का कोई अर्थ नहीं है उनको अपनी शानो-शौकत बनाये रखने के लिए हर कार्य करने के लिए यह शक्तियां तैयार रही हैं आजाद भारत में पहला पाकिस्तानी जासूस मोहन लाल कपूर था जो कुछ पैसे और शराब के लिए देश के ख़ुफ़िया राज पकिस्तान के जासूसों को बेच देता था। उसी कड़ी में भारतीय महिला राजनयिक माधुरी गुप्ता जो इस्लामाबाद में भारतीय उच्च आयोग में अधिकारी थी आई.एस.आई के लिए काम कर रही थी पकड़ी गयी । आई.एस.आई अमेरिकन साम्राज्यवाद की प्रतिनिधि संस्था है। आज हमारे देश में अमेरिकन साम्राज्यवादियों की सबसे मजबूत पकड़ है देश के उच्च नौकरशाह अगर अमेरिकन दूतावास की शराब व दावतें उड़ा रहे हैं तो उनके लिए कार्य भी करते हैं । पूँजीवाद का उच्च स्वरूप साम्राज्यवाद है जिसके हितों के पोषण के लिए हमारी सरकारें कारगर तरीके से कार्य करती हैं देश की बहुसंख्यक आबादी से उनका कोई सरोकार नहीं है आज मुख्य चुनौती साम्राज्यवादी शक्तियों से लड़ने के लिए है। भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों से किसी भी देश की खुफिया एजेंसी जब चाहे तब अपने मनमाफिक तरीके से कार्य कराती रहती है। इतिहास के पृष्ठों पर अगर नजर डाली जाए तो मोहन लाल कपूर माधुरी गुप्ता जैसे लोगों की बहुतायत है जिसे देखकर लगता है क्या गद्दारी हमारी परंपरा का हिस्सा है ?

सुमन
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गिलास भर पानी से ही नहाना होगा!


आपके पास एक गिलास पानी हो तो आप क्या करेंगे? नहाएंगे या पीएंगे? आपको एक विकल्प चुनना पड़ेगा। यह कल्पना नहीं, भविष्य का कड़वा सच है। अब पानी का महासंकट है। यदि हम इसे नहीं समझे तो पंद्रह सालों में आज के मुकाबले पानी आधा ही मिलेगा और 40 साल बाद तो स्थिति और भी विकट होगी।

भारत में 15 फीसदी भूजल स्रोत सूखने की स्थिति में हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा करीब 20 लाख ट्यूबवेल भारत में ही हैं जो लगातार जमीन का सीना फाड़कर पानी खींच रहे हैं। ऐसे में वर्ल्ड बैंक के इस आकलन पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अगले 25 सालों में भूजल के 60 फीसदी स्रोत खतरनाक स्थिति में पहुंच जाएंगे।

यह स्थिति भारत के लिए इसलिए भी दयनीय होगी, क्योंकि हमारी 70 फीसदी मांग भूजल के स्रोतों से ही पूरी होती है। तब न फसल उगाने के लिए पानी होगा, न कल-कारखानों में सामान बनाने के लिए। कृषि और उद्योग धंधे तो बर्बाद होंगे ही, हमारी एक बड़ी आबादी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस जाएगी।

यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह संकट क्यों आया? जल विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह कहते हैं कि कुछ साल पहले किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि हमारे भूमिगत जल भंडार कभी खाली भी हो सकते हैं। कुछ फीट की खुदाई करो, जल हाजिर। लेकिन कुछ ही वर्षो मंे हमने इतनी बेरहमी से इनका दोहन किया कि आज ये बड़ी तेजी से खाली हो रहे हैं।

इसलिए आने वाले कुछ सालों में ये पूरी तरह से खत्म हो जाएं तो इसमें कोई अचरज नहीं होना चाहिए। इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की रिपोर्ट कहती है कि 2002 से 2008 के दौरान ही देश के भूमिगत जल भंडारों से 109 अरब क्यूबिक मीटर (एक क्यूबिक मीटर = एक हजार लीटर) पानी समाप्त हो चुका है। बीते तीन सालों में स्थिति और भी बदतर हुई है।

नेशनल इंस्टीटच्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने एक बहुत ही दिलचस्प अध्ययन किया है। यह अध्ययन बताता है कि भारत की आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ने के साथ ही देश में जल संकट और भी गहरा जाएगा। भारत में जीडीपी बढ़ रही है और इससे लोगों की आय में भी इजाफा हो रहा है। आय बढ़ने से लाइफस्टाइल तेजी से बदल रही है।

आधुनिक लाइफस्टाइल की वजह से पानी की खपत में बढ़ोतरी होती है। अभी भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी की मांग 85 लीटर है जो 2025 तक 125 लीटर हो जाएगी। उस समय तक भारत की आबादी भी बढ़कर एक अरब 38 करोड़ हो जाएगी। इससे प्रतिदिन पानी की मांग में कुल 7900 करोड़ लीटर की बढ़ोतरी हो जाएगी।

इसका सीधा असर जल संसाधनों पर पड़ेगा। इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए हमें भूजल के स्रोतों की ओर ताकना पड़ेगा जो इन पंद्रह सालों में पहले ही काफी खत्म हो चुके होंगे। यानी लोगों की पानी की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन हमारी सरकारें उतना पानी उपलब्ध करवाने की स्थिति में नहीं होंगी। आज प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 3076 लीटर है जो तब घटकर आधे से भी कम रह जाएगी।

पानी को तरसेंगे 180 करोड़
वर्ष 2025 तक दुनिया की आबादी 8 अरब और 2050 तक 9 अरब को पार कर जाएगी। यूएन वाटर कहता है कि अगले पंद्रह सालों में दुनिया के 180 करोड़ लोग ऐसे देशों में रह रहे होंगे जहां पानी लगभग पूरी तरह से खत्म हो चुका होगा। इन देशों में घाना, केन्या, नामीबिया सहित बड़ी संख्या अफ्रीकी व एशियाई देशों की होगी।

अभी छह में से एक व्यक्ति पानी के लिए जूझ रहा है। उस समय दो तिहाई यानी करीब साढ़े पांच अरब लोग भीषण जल संकट से जूझ रहे होंगे। शहरीकरण से समस्या और भी जटिल हो जाएगी। वर्ल्ड बैंक के अनुसार वर्ष 2020 तक दुनिया की आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही होगी।

नई शहरी जनसंख्या तक पानी पहुंचाना एक कठिन चुनौती होगी। हर दिन एक लाख लोग मध्यम वर्ग में जुड़ जाते हैं। पानी को लेकर मध्यम वर्ग की खर्चीली आदतों से भी पानी का संकट और गहराएगा।

ग्लोबल वार्मिग और जल संकट
बारिश की मात्रा के साथ-साथ वष्र के दिनों में भी लगातार कमी आएगी। इससे बारिश से मिलने वाला पानी कम होगा और अंतत: जल उपलब्धता में गिरावट आएगी। इससे वर्षा चक्र में व्यवधान आएगा।

गर्मी में इजाफा होगा जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया में तेजी आएगी। अभी कुल पानी का लगभग 2.5 फीसदी वाष्पीकरण की भेंट चढ़ जाता है। इंटरनेशनल हाइड्रोलॉजिकल प्रोग्राम का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिग की वजह से अगले 15 सालों में वाष्पीकरण की गति आज की तुलना में दुगुनी हो जाएगी।

वाष्पीकरण की प्रक्रिया में तेजी आने से भी नदियों और अन्य जल स्रोतों में पानी की मात्रा कम होती जाएगी। गर्मी बढ़ने से ध्रुवों की बर्फ तेजी से पिघलेगी। नुकसान यह होगा कि यह मीठा पानी समुद्र के खारे पानी में मिल जाएगा। इस तरह मीठे पानी के पहले से ही सीमित स्रोत और भी संकुचित हो जाएंगे।

कहा जा सकता है कि आने वाला वक्त भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों के लिए बेहद कठिन है। बढ़ती आबादी, भूजल का अत्यधिक दोहन, ग्लोबल वार्मिग इत्यादि वजहों से पानी ऐसी ‘लक्जरियस’ चीज बन जाएगी, जिसका इस्तेमाल उसी तरह करना होगा, जैसे आज हम घी का करते हैं।

संकट बनता महासंकट
संयुक्तराष्ट्र के जल उपलब्धता मानकों के अनुसार प्रत्येक व्यक्तिको प्रतिदिन न्यूनतम 50 लीटर पानी मिलना चाहिए, लेकिन स्थिति इससे बदतर है। दुनिया के छह में से एक व्यक्तिको इतना पानी नहीं मिल पाता है। यानी 89.4 करोड़ लोगों को बेहद कम पानी में अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ती है।

भारतीय पैमानों पर देखें तो एक व्यक्तिको रोजाना कम से कम 85 लीटर पानी मुहैया होना चाहिए, लेकिन हमारे देश में भी ३क् फीसदी लोगों की यह जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। इनमें से अधिकांश लोग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, लेकिन शहरों में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं।

सब-सहारा अफ्रीकी देशों जैसे कांगो, नाम्बिया, मोजांबिक, घाना इत्यादि के दूरस्थ गांवों में तो लोगों को महीने में औसतन १क्क् लीटर पानी मुश्किल से मिल पाता है। इन देशों में पानी पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पांच फीसदी से भी ज्यादा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले सालों में इस खर्च में भारी बढ़ोतरी करनी होगी। यह आज की स्थिति है। इससे साफ है कि पानी का संकट किस तरह महासंकट में बदलता जा रहा है।
बढ़ेगा विस्थापन
जल संकट बढ़ने से एक समस्या लोगों के विस्थापन के रूप में भी सामने आएगी। चूंकि कई क्षेत्रों में पानी लगभग पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, ऐसे में लोग उन क्षेत्रों में जाएंगे, जहां पानी उपलब्ध होगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वर्ष २क्३क् तक 70 करोड़ लोगों को अपने क्षेत्रों से विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

विस्थापन का एक दुष्प्रभाव यह भी होगा कि विस्थापित लोग जिन क्षेत्रों में जाएंगे, वहां आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी। यहां तक कि स्थाई निवासियों और विस्थापितों के बीच पानी को लेकर संघर्ष भी होगा। जिन देशों मंे विस्थापित जाएंगे, वहां की अर्थव्यवस्था पर भी अतिरिक्त भार बढ़ जाएगा।

बढ़ेंगे संघर्ष
आने वाले सालों में पानी को लेकर संघर्ष बढ़ना तय माना जा रहा है। स्तंभकार स्टीवन सोलोमन ने अपनी किताब ‘वाटर’ में नील नदी के जल संसाधन को लेकर मिस्र एवं इथियोपिया के बीच विवाद का खासतौर पर उल्लेख करते हुए लिखा है कि दुनिया के सबसे विस्फोटक क्षेत्र पश्चिम एशिया में अगली लड़ाई पानी को लेकर ही होगी।

इस क्षेत्र में इजरायल, फलस्तीन, जॉर्डन एवं सीरिया में दुर्लभ जल संसाधनों पर नियंत्रण को लेकर गहरी बेचैनी है जो युद्ध के रूप में सामने आ सकती है। इस तरह पानी को लेकर तीसरे विश्वयुद्ध की बात हकीकत बन सकती है।

डेढ़ गुना हो जाएगा जल का दोहन
आने वाले सालों में पानी की मांग और आपूर्ति में अंतर लगातार बढ़ता जाएगा। अगर भारत का ही उदाहरण लें तो अभी पानी की कुल मांग 700 क्यूबिक किलोमीटर है, जबकि उपलब्ध पानी 550 क्यूबिक किलोमीटर है। 2050 में मांग करीब दुगुनी हो जाएगी, जबकि उपलब्धता 10 गुना से भी कम रह जाएगी।

पानी की मांग में इजाफा जनसंख्या में बढ़ोतरी की तुलना में कहीं तेजी से होगा। वर्ष 1900 और 1995 के बीच यही हुआ। इस दौरान दुनिया की आबादी तीन गुना बढ़ी, लेकिन पानी की खपत छह गुना से भी अधिक हो गई। यूएन वाटर के 2025 तक के अनुमान कहते हैं कि विकासशील देशों में पानी का दोहन 50 फीसदी और विकसित देशों में 18 फीसदी बढ़ेगा।

वैश्विक जलसंकट विशेषज्ञ और काउंसिल ऑफ कनाडा की सदस्य माउथी बालरे ने अपनी किताब ‘ब्ल्यू कविनेंट’ में लिखा है, ‘वर्ष 2050 तक मनुष्य के लिए पानी की आपूर्ति में 80 फीसदी की बढ़ोतरी करनी होगी। सवाल यह है कि यह पानी आएगा कहां से? अभी यह कोई नहीं जानता।’ पानी की आपूर्ति बढ़ाने के लिए पानी का दोहन करना ही होगा। यानी इससे जल संकट तो और बढ़ेगा ही।

पड़ोस में हालात बदतर
हमारे पड़ोस में भी हालात ठीक नहीं हैं। 60 साल पहले पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5000 क्यूबिक मीटर थी, जो अब घटकर 1500 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति रह गई है। अगले 10 सालों में इसमें 50 फीसदी की गिरावट आ जाएगी। पाकिस्तान में 90 फीसदी पानी का इस्तेमाल सिंचाई में होता है।

भारत की तरह ही वहां भी सिंचाई के लिए पानी की इस मांग को पूरा करने के लिए भूजल के दोहन में बढ़ोतरी हुई है। इससे भूजल स्तर में बड़ी तेजी से गिरावट आई है। लाहौर में कभी पानी कुछ हाथों की गहराई पर मौजूद था, अब 60 फीट से भी नीचे चला गया है। मुल्क की जीवन रेखा सिंधु नदी के प्रवाह में भी कमी आई है। आशंका जताई जा रही है कि आने वाले सालों में यह पूरी तरह खत्म हो सकती है।

अफगानिस्तान में स्थिति और भी बदतर है। संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया है कि पानी की कमी की वजह से 25 लाख से भी अधिक अफगानियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। देश में 36 लाख से ज्यादा कुएं सूख चुके हैं और इस वजह से पानी आपूर्ति में 83 फीसदी तक की कमी आई है।

फैक्ट फाइल
दुनिया में 1.20 अरब लोगों को रोजाना पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
2030 तक दुनिया के 47 फीसदी लोग जल संकट से ग्रस्त क्षेत्रों में रह रहे होंगे।
2030 तक कृषि के लिए आज की तुलना में और 13 फीसदी पानी की जरूरत होगी।

2020 तक वर्षा पर निर्भर कृषि से उत्पादन 50 फीसदी कम हो जाएगा।
2025 तक भारत में पानी की मांग में 7900 करोड़ लीटर की वृद्धि हो जाएगी।
2030 तक हिमालय से मिलने वाले पानी की मात्रा में 20 फीसदी तक की कमी
हो सकती है।

2010
80 फीसदी पानी भूजल भंडारों से निकाला जाता है।

2035
में दोहन की मौजूदा रफ्तार से भारत में 60 फीसदी भूजल भंडार खत्म हो जाएंगे।

तब हमारा क्या होगा
वर्ष 2020 तक दुनिया की आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही होगी। यदि इसी रफ्तार से पानी खर्च करते रहे तो अधिकांश जल स्रोत सूख चुके होंगे।


विश्व बैंक के अनुसार 2020 तक भारत में पानी की उपलब्धता 380 क्यूबिक किलोमीटर सालाना रहेगी, जबकि मांग 810 क्यूबिक किलोमीटर हो जाएगी

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लो क सं घ र्ष !: मायावती का सी0बी0आई0 पर दोहरा मापदण्ड अपनाने का आरोप

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जी हैं, जो अपने को दलित की बेटी कहते हुए नहीं थकतीं, हैं भी वह दलित की बेटी; लेकिन खुद वह दलित नहीं हैं बल्कि अब उनकी गिनती अतिविशिष्ट गणों में होती है। अगड़ा, पिछड़ा दलित, यह है सामाजिक बंटवारा और इसी सामाजिक बंटवारा को समाप्त करने के लिए संविधान में पिछड़ों और दलितों के आरक्षण की व्यवस्था की गई हैं, वह अलग है कि पिछड़ों में या दलितों में किसको दिया, किसको नहीं दिया। इसको लेकर देश कई बार जलते-जलते बचा है और आज भी देश का एक हिस्सा राजस्थान आग की लपेट में है।

मायावती जी ने राजनीति में रहकर कितना धन कमाया या अन्य किसी नेता ने राजनीति से कितना लाभ उठाया इसकी जानकारी देश के अधिकांश नागरिकों को है, चाहे वह हार के द्वारा हो या उपहार के द्वारा या फिर स्थानान्तरण और नियुक्ति के उद्योग के द्वारा। लाभ तो हर राजनेता उठाता है अगर मायावती जी ने उठाया तो बुरा क्या?

ज्ञात सूत्रों से अतिरिक्त धन रखने के मामले में सी0बी0आई0 विवेचना कर रही है, मायावती जी के खिलाफ, जिसे न्यायालय में चुनौती दी गई है। चुनौती देते हुए मायावती जी द्वारा कहा गया है कि उनके साथ दोहरा मापदण्ड अपनाया जा रहा है। दोहरा मापदण्ड अपनाया जाना गलत है और हर कोई उसे गलत कहेगा; लेकिन दोहरा मापदण्ड अपनाये जाने के आधार पर किसी भी राजनेता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही समाप्त करना कानूनी गलती होगी। मायावती जी के खिलाफ अगर विवेचना चल रही है तो उसका रोका जाना विधि सम्मत नहीं होगा बल्कि उचित तो यह होगा कि किस राजनेता के मुकाबले मायावती जी के साथ दोहरा मापदण्ड अपनाया जा रहा है, यह तथ्य मायावती जी स्वयं स्पष्ट करें और उनके इस स्पष्टीकरण के बाद उनके द्वारा बताये गये राजनेता के खिलाफ भी ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति रखने का मामला दर्ज करके विवेचना शुरू करना चाहिए और विवेचना में न्यायालय को दखल नहीं देना चाहिए, चाहे वह कोई भी न्यायालय हो।

एक राजनेता को फंसते देखकर दूसरा राजनेता जो उसी हमाम में नहाया हुआ होता है उसे बचाने की कोशिश करता है। नेता शासक दल का हो या विपक्ष दल का नेता होता है, वह जनोपयोगी चीजों का दाम बढ़ाने में भी एक साथ होता है और अपनी सुविधाएं बढ़ाने के पक्ष में भी। वह हम जन साधारण हैं जो नेताओं के लिए इंसान नहीं वोट की अहमियत रखते हैं, इसलिए आवश्यक है कि वोट की अहमियत रखने वाले ही यह बात कहें कि ज्ञात स्रोतों से अधिक धन रखने वाला अपराधी तो है ही जन साधारण से अधिक सुविधा प्राप्त करने वाला और केवल पांच साल में करोड़पति बन जाने वाला और अरब-खबरपतियों को मदद पहुंचाने वाला नेता जनता का दोषी है और उसे जनता की अदालत में इसके लिए जवाबदेह होना आवश्यक है और यह भी जरूरी है कि न्यायिक प्रक्रिया अपना काम करे और उसमें कोई व्यवधान न पैदा हो तथा हर नेता के साथ एक जैसी कार्यवाही हो और दोहरा मापदण्ड न अपनाया जाए।

मोहम्मद शुऐब एडवोकेट
loksangharsha.blogspot.com

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

आज दिनांक २६ .०४.२०१० को ब्लोगोत्सव-२०१० के अंतर्गत प्रकाशित पोस्ट का लिंक

ब्लोगोत्सव२०१० : हम व्यस्क कब होंगे ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_25.html

चिट्ठाकारिता ने हमें एक नया सामाजिक आस्वादन दिया है

http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_1872.html

हिन्दी ब्लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना बिल्कुल ठीक नहीं है:अविनाश वाचस्पति
आईये हिंदी ग़ज़ल की विकास यात्रा पर एक नजर डालते हैं..

मानवीय सर्जना का नवोन्मेष है यह…..गिरीश पंकज

हम लेकर आये हैं आज निर्मला जी की कुछ और गज़लें

http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_2935.html

अपनी बात : हिन्दी ग़ज़ल की विकास यात्रा http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_6880.html

ब्लोगोत्सव२०१० : नीरज गोस्वामी,गौतम राजरिशी और अर्श की गज़लें

http://www.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_3288.html

निर्मला कपिला की तीन गज़लें

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_3358.html

गौतम राजरिशी की दो गज़लें

नीरज गोस्वामी की दो ग़ज़लें
अर्श की तीन गज़लें

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/04/blog-post_3917.html

ब्लोगोत्सव२०१०: श्रेष्ठ पोस्ट और बच्चों का कोना

बच्चों का कोना : शुभम सचदेव की तीन बालकहानियां
ब्लोगोत्सव२०१० : आज का कार्यक्रम उत्सवी स्वर के साथ संपन्न
रश्मि प्रभा के उत्सवी स्वर

बुद्धिजीवी होना भी एक चस्का : डा० अरविन्द मिश्र

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अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

सुमन
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