अभिलेख

परमार्थ ..श्याम सवैया..-डा श्याम गुप्त…

वर्ष की अंतिम पोस्ट—परमार्थ को यदि हम जीवन लक्ष्य बनाएं तो सभी उपलब्धियों की महत्ता है —


श्याम सवैया ….परमार्थ….

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(श्याम सवैया छंद—६ पन्क्तियां )

प्रीति मिले सुख-रीति मिले, धन-मीत मिले, सब माया अजानी।

कर्म की,धर्म की,भक्ति की सिद्धि-प्रसिद्धि मिले सब नीति सुजानी।

ज्ञान की,कर्म की,अर्थ की रीति,प्रतीति सरस्वति-लक्ष्मी की जानी।

ऋद्धि मिली,सब सिद्धि मिलीं, बहु भांति मिली निधि वेद बखानी

सब आनन्द प्रतीति मिली, जग प्रीति मिली बहु भांति सुहानी

जीवन गति सुफ़ल सुगीत बनी, मन जानी, जग ने पहचानी


जब सिद्धि नहीं परमार्थ बने, नर सिद्धि-मगन अपने सुख भारी ।

वे सिद्धि-प्रसिद्धि हैं माया-भरम,नहिं शान्ति मिले,बहुविधि दुखकारी।

धन-पद का,ग्यान व धर्म का दम्भ,रहे मन निज़ सुख ही बलिहारी।

रहे मुक्ति के लक्ष्य से दूर वो नर,पथ-भ्रष्ट बने वह आत्म सुखारी।

यह मुक्ति ही नर-जीवन का है लक्ष्य,रहे मन,चित्त आनंद बिहारी।

परमार्थ के बिन नहिं मोक्ष मिले, नहिं परमानंद न कृष्ण-मुरारी॥


जो परमार्थ के भाव सहित, निज़ सिद्धि को जग के हेतु लगावें ।

धर्म की रीति,औ भक्ति की प्रीति,भरे मन कर्म के भाव सजावें ।

तजि सिद्धि-प्रसिद्धि बढें आगे,मन मुक्ति के पथ की ओर बढावें ।

योगी हैं, परमानंद मिले, परब्रह्म मिले, वे परम-पद पावें

चारि पदारथ पायं वही, निज़ जीवन लक्ष्य सफ़ल करि जावें

भव-मुक्ति यही, अमरत्व यही, ब्रह्मत्व यही, शुचि वेद बतावें॥