अभिलेख

हिंदुस्तान का हौआ


अनिल धारकर

पाकिस्तान हर लिहाज से विफल राज्य है और विफल राज्यों को हमेशा किसी न किसी हौए की दरकार होती है। भारत हमेशा से पाकिस्तान का हौआ रहा है। जब भी पाकिस्तान में कोई न कोई गड़बड़ होती है तो भारत का हौआ खड़ा कर दिया जाता है। अब जब पाकिस्तान का क्रिकेट तंत्र रंगे हाथों धरा गया है, उसका पर्दाफाश हो गया है, तब उसके पास इसके सिवा और क्या विकल्प रह जाता है? ———-

पाकिस्तान का क्रिकेट बोर्ड स्पॉट फिक्सिंग के ताजा आरोपों से लंबे समय तक इनकार नहीं कर सकता। उसे इस समस्या का हल भी करना होगा। पाकिस्तान यह नहीं कह सकता कि मामला पूरी तरह साफ है, सलमान बट्ट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमिर पूरी तरह बेकसूर हैं, मजहर मजीद की टेप फर्जी है और मैच/स्पॉट फिक्सिंग के आरोप भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ रचा गया अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है। क्या यह सब सुनने में किसी मजेदार ईमेल संदेश जैसा लग रहा है? हो सकता है, लेकिन यह कोई चुटकुला नहीं है। दरअसल ये वो बातें हैं, जो पाकिस्तान की सरकार, उसका क्रिकेट तंत्र और यहां तक कि उसका मीडिया भी इन दिनों कह रहा है। जल्द ही यह नौबत भी आ सकती है कि अभी पाकिस्तान में जो लोग क्रिकेटरों और अफसरों के पुतले फूंक रहे हैं, वे भारतीय क्रिकेट के पुतले जलाने लगें।

शायद हम इस घटनाक्रम पर हैरत जताएं, लेकिन क्या वाकई इसकी जरूरत है? पाकिस्तान हर लिहाज से एक विफल राज्य है और विफल राज्यों को हमेशा किसी न किसी हौए की दरकार होती है। भारत हमेशा से पाकिस्तान का हौआ रहा है। जब भी पाकिस्तान में कोई न कोई गड़बड़ होती है तो भारत का हौआ खड़ा कर दिया जाता है। अब जब पाकिस्तान का क्रिकेट तंत्र रंगे हाथों धरा गया है, उसका पर्दाफाश हो गया है, तब उसके पास इसके सिवा और क्या विकल्प रह जाता है कि भारत की लानत-मलामत करे?

वैसे देखा जाए तो पाकिस्तान के सामने एक वैध विकल्प भी है। वह सच का सामना करते हुए अपने भ्रष्ट सिस्टम की सफाई शुरू कर सकता है। यहां हमें एहतियात के तौर पर ‘कथित आरोपों’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पाकिस्तानी क्रिकेटरों का फिक्सिंग या इस तरह की अनियमितताओं से लंबे समय से नाता रहा है।

पाकिस्तान के अनेक खिलाड़ी और कम से कम छह पाक कप्तान भी इसमें लिप्त हैं। लेकिन क्या पाकिस्तान के लिए अपने सिस्टम की साफ-सफाई कर पाना वास्तव में संभव है? जवाब है ‘नहीं’। और इस ‘नहीं’ की वजह यह है कि पाकिस्तान में इतने सालों में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके आधार पर यह अंदाजा लगाया जा सके कि अब वहां ऐसा कुछ संभव है। यदि कोई खिलाड़ी दंडित हुआ भी है तो वह भी इतने हल्के-फुल्के ढंग से कि लगता ही नहीं कोई सजा सुनाई गई है।

वजह साफ है : पाकिस्तान में क्रिकेट तंत्र से जुड़ा तकरीबन हर शख्स किसी न किसी तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त है। जाहिर है अगर किसी अधिकारी की खुद की ही ईमानदारी पर सवालिया निशान हों, तो वह खिलाड़ियों को किस मुंह से ईमानदारी बरतने की हिदायत दे सकता है? लेकिन यह कहानी केवल क्रिकेट पर ही खत्म नहीं होती। पाकिस्तान के समूचे तंत्र में नीचे की पायदान से लेकर ऊपर तक यही आलम है।

आसिफ अली जरदारी के इतिहास के बारे में कौन नहीं जानता? वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति हैं, लेकिन उन्हें ‘मिस्टर टेन परसेंट’ के नाम से जाना जाता है। पाकिस्तान की अदालतें उन्हें भ्रष्टाचार का आरोपी ठहरा चुकी हैं। यहां तक कि वे भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा भी खा चुके हैं। यदि तंत्र के शीर्ष पर ही भ्रष्टाचार व्याप्त हो और अवाम उसके बारे में जानती हो तो हमें इस पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लिया गया है। खास तौर पर पाकिस्तान के जनरल तो इसे निश्चित ही स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में यदि क्रिकेट खिलाड़ियों पर कोई कार्रवाई होती भी है तो वह आईसीसी के दबाव में ही होगी।

यह भी संभव है कि चूंकि सबूतों से इनकार नहीं किया जा सकता है, इसलिए पाकिस्तान स्पॉट फिक्सिंग जैसे छोटे आरोपों को तो स्वीकार ले और मैच फिक्सिंग से मुकर जाए। स्पॉट फिक्सिंग में कई तरह की चीजें हो सकती हैं। जानबूझकर नो बॉल फेंकना भी इसी श्रेणी में आता है, जैसा कि लॉर्डस टेस्ट में हुआ। अप्रत्याशित रूप से पारी घोषित कर देना भी इसी की एक और मिसाल है। आसिफ इकबाल ने एक बार पाकिस्तान की पहली पारी तब घोषित कर दी थी, जब वह भारत से 12 रन पीछे था और उसके कई विकेट शेष थे। उस समय उनकी यह रणनीति चौंकाने वाली लगी थी, लेकिन बाद में पता चला कि इस बात पर भारी मात्रा में सट्टा लगाया गया था कि पाकिस्तान पहली पारी में भारत से कम रन बनाएगा।

दिवंगत दक्षिण अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोन्ये कई तरह की स्पॉट फिक्सिंग में लिप्त थे। जैसे : बल्लेबाजी क्रम बदलना, पोलक के बजाय क्लूजनर से गेंदबाजी की शुरुआत करवाना, अपने किसी युवा खिलाड़ी से कम रन बनाने को कहना इत्यादि। आम तौर पर तो इनमें से किसी भी निर्णय से मैच का रुख नहीं बदल सकता, लिहाजा इन्हें मैच फिक्सिंग तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद यह एक गलत परंपरा है। क्योंकि बल्लेबाजी क्रम बदलने जैसी छोटी चीज से भी खिलाड़ियों और सट्टा माफिया के रिश्ते मजबूत होते हैं।

यह मानवीय स्वभाव है कि उसके लिए पहली बार नैतिकता की सरहद लांघना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन एक बार ऐसा कर चुकने के बाद अगला कदम आसान हो जाता है। अगर हम विचार करें तो पाएंगे कि पूरा टेस्ट मैच फिक्स कर देना आसान नहीं है, क्योंकि तब बहुत सारे खिलाड़ियों को या पूरी टीम को फिक्सिंग के साथ सहयोग करना पड़ेगा। शीर्ष के पांच बल्लेबाजों को पैसा देकर यह तो कहा जा सकता है कि वे रन न बनाएं, लेकिन तब नौवें नंबर का बल्लेबाज भी अप्रत्याशित रूप से शतक जड़ सकता है (जैसा हाल ही में इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्रॉड ने पाकिस्तान के विरुद्ध टेस्ट मैच में किया)। यह भी संभव है कि चार गेंदबाजों को पैसा खिलाकर उनसे खराब गेंदबाजी करवा ली जाए, लेकिन कोई चलताऊ गेंदबाज विकेटों की झड़ी लगा सकता है (जैसा कि एक बार भारत के खिलाफ गेंदबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया के माइकल क्लार्क ने कई विकेट झटक लिए थे और अपनी टीम को जीत दिला दी थी)।

क्रिकेट के लिए मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग दोनों ही घातक हैं, क्योंकि यह क्रिकेट और क्रिकेटरों की विश्वसनीयता को नष्ट कर देती है। क्रिकेट में कैच छूटना अभी तक आम बात थी, लेकिन अब कैच छूटने पर हर कोई यह कहेगा कि उस खिलाड़ी ने पैसा खाया होगा।

अब हर बल्लेबाज के शून्य पर आउट होने को शक की नजर से देखा जाएगा। इसीलिए पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को स्पॉट फिक्सिंग के हालिया आरोपों से पल्ला झाड़ने की बजाय उनकी सख्ती से जांच करनी चाहिए और दोषियों को सजा देनी चाहिए। पाकिस्तान के पास फिलहाल इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं है। – लेखक सामाजिक टिप्पणीकार हैं।