अभिलेख

डा श्याम गुप्त की गज़ल…कितने दूर हैं….



पास भी है किन्तु कितने दूर है ।
आपकी चाहों से भी अब दूर हैं |

आप चाहें या नहीं चाहें हमें ,
आप इस प्यासी नज़र के नूर हैं |

आप को है भूल जाने का सुरूर ,
हम भी इस दिल से मगर मज़बूर हैं |

चाह कर भी हम मना पाए नहीं ,
आपसे समझे यह कि हम मगरूर हैं |
आपको ही सिर्फ यह शिकवा नहीं ,
हम भी शिकवे-गिलों से भरपूर हैं |

आप मानें या न मानें ‘श्याम हम,

आपके ख्यालों में ही मशरूर हैं ||