अभिलेख

साम्प्रदायिकता के अकेले मुद्दे से देश नही चलता

बिहार की राजनीतिक भंवर में कांग्रेस की लुटिया डूब चुकी है । लालू और पासवान जो कल तक एक दुसरे को फूटी आँख नही सुहाते थे आज एक साथ खड़े हैं । कहने को तो यूपीए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा जा रहा है पर हकीकत कुछ और ही है । कांग्रेस की झोली में ३ सीटो की भीख डालकर लालू ने तो उसे औकात बता दी है । १२ सीटो पर जोर आजमाइश कर रहे पासवान के तेवर भी बदले-बदले से दीखते हैं । लोजपा की सीटो में किसी प्रकार के समझोते से इंकार करते हुए रामविलास पासवान ने कांग्रेस के दावे को खारिज कर दिया है । मजबूरीवश चल रहे यूपीए गठबंधन में मनमुटाव साफ़ हो गया जब झारखण्ड में कांग्रेस ने सिबू सोरेन से सेटिंग -गेटिंग करके राजद को दो सीटो पर सीमित कर दिया ।
कभी एंटी -कांग्रेस की धार में बहने वाली राजनीति आज एंटी-भाजपा हो गई है । भाजपानीत एनडीए गठबंधन के अतिरिक्त जो भी गठबंधन बन रहे हैं वो केवल भाजपा को सत्ता में जाने से रोकने के नाम पर । साम्प्रदायिकता के नाम पर भाजपा विरोध की राजनीति पिछले एक दशक से चरम पर है । किसी को किसी से परहेज नही बस भाजपा को रोकना है । इस खिंचा तानी में वाम दल भी सीमा रेखा पर कर कांग्रेस के पास पहुँच गए थे । जब वामपंथी पीछे हटे तो समाजवादी साथ हो लिए । संसद में नोट के बदले वोट कांड ने जाहिर कर दिया कि यहाँ वैचारिक और नीतिगत प्रतिबद्धता समाप्त हो चुकी है। वोट बैंक का चूल्हा फूंकते -फूंकते कांग्रेस की आंखे कमजोर हो चुकी हैं । केवल साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर देश नही चलता । भारत एक बड़ा देश है । यहाँ ढेरों समस्याएं हैं , बहुत सरे कारक हैं ,अनेको मुद्दे हैं । अभी तक हम भय , भूख और भ्रस्ताचार के चंगुल से छुट नही पाए हैं । देश में अशिक्षा और गरीबी की समस्या जस की तस् बनी हुई है । जिस तरह पंचतत्वों के मिलन से शरीर बनता है , देश में भी सभी अवयव मायने रखते हैं। राजनीतिक दलों में खासकर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को बड़े परिप्रेक्ष्य में सोचने ,समझने और कदम उठाने चाहिए। कृषि , उद्योग , आधारभूत संरचना , जनसँख्या नियंत्रण ,भ्रस्ताचार , और प्रयावरण जैसे मुद्दों पर विमर्श और नीतियों की जरुरत है । लेकिन , किसी भी दल के पास ये मुद्दे नही हैं । कहीं तुष्टिकरण तो कहीं संप्रदायीकरण ।वर्तमान लोकसभा चुनाव में भी साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर एकांगी बहस जारी है । वरुण गाँधी के सांप्रदायिक बयानों पर सबको ऐतराज है लेकिन मुलायम के पैसे बाँटने की बात भूली जा चुकी है ! पप्पू यादव , सूरजभान सिंह , साधू यादव जैसे गुंडे और बाहुबलियों के लोकसभा में आने से किसी को कोई परहेज नही ! सत्ता के गलियारे तक पहुँचने के रस्ते में हाथी और तीर के कारन १२ सीटों पर सिमटी कांग्रेस को अब भी जनता का मिजाज समझ में नही आया । अनुकम्पा पर बहाल किए गए तथाकथित युवाओं और अपराध से राजनीति में आने वालो की मदद से कांग्रेस कहाँ तक बाजी मारेगी , यह तो १६ मई को साफ़ हो जाएगा लेकिन रास्ते के कंटक अभी से नजर आने लगे हैं ।