अभिलेख

पित्तृ दिवस पर : स्मृति गीत / शोक गीत –संजीव ‘सलिल’

पित्तृ  दिवस पर :

स्मृति गीत / शोक गीत
संजीव ‘सलिल’
*

याद आ रही पिता तुम्हारी
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
तुम सा कहाँ
मनोबल पाऊँ?
जीवन का सब
विष पी पाऊँ.
अमृत बाँट सकूँ
स्वजनों को-
विपदा को हँस
सह मुस्काऊँ.
विधि ने काहे
बात बिगारी?
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
रही शीश पर
जब तव छाया.
तनिक न विपदा
से घबराया.
आँधी-तूफां
जब-जब आये-
हँसकर मैंने
गले लगाया.
बिना तुम्हारे
हुआ भिखारी.
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
मन न चाहता
खुशी मनाऊँ.
कैसे जग को
गीत सुनाऊँ?
सपने में आकर
मिल जाओ-
कुछ तो ढाढस-
संबल पाऊँ.

भीगी अँखियाँ
होकर खारी.
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
 

मुक्तक : माँ के प्रति प्रणतांजलि: संजीव ‘सलिल’

मुक्तक : माँ के प्रति प्रणतांजलि: संजीव ‘सलिल’

.post-header-line-1 {color: #999;font-size: 0.7em;line-height: 1.3em;border-top: 1px dotted #ccc;border-bottom: 1px dotted #ccc;margin-top: 5px;margin-bottom: 5px;padding-top: 5px;padding-bottom: 5px;}
#featured {display:none;}#main-wrapper {float: left;width: 618px;margin:10px 0 0 8px;padding:10px;display: inline;background:#ffffff;border: 1px solid #d8e1f0; }.post {width:618px;padding: 0px;margin: 0px auto;line-height: 1.4em;overflow:hidden; }.postbox {padding: 0px;border: none;}.post h3 {letter-spacing: -1px;font-size: 1.5em;color: #4169E1;font-weight: normal;}.post-body {height:100%;}

माँ के प्रति प्रणतांजलि:

तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी.
दोहा गीत गजल कुण्डलिनी, मुक्तक छप्पय रूबाई सी..
मन को हुलसित-पुलकित करतीं, यादें ‘सलिल’  डुबातीं दुख में-
होरी गारी बन्ना बन्नी, सोहर चैती शहनाई सी.. 
*
मानस पट पर अंकित नित नव छवियाँ ऊषा अरुणाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी..
प्यार हौसला थपकी घुड़की, आशीर्वाद दिलासा देतीं-
नश्वर जगती पर अविनश्वर विधि-विधना की परछांई सी..
*
उँगली पकड़ सहारा देती, गिरा उठा गोदी में लेती.
चोट मुझे तो दर्द उसे हो, सुखी देखकर मुस्का देती.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी-
‘सलिल’ अभागा माँ बिन रोता, श्वास -श्वास है रुसवाई सी..
*
जन्म-जन्म तुमको माँ पाऊँ, तब हो क्षति की भरपाई सी.
दूर हुईं जबसे माँ तबसे घेरे रहती तन्हाई सी.
अंतर्मन की पीर छिपाकर, कविता लिख मन बहला लेता-
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
*
कौशल्या सी ममता तुममें, पर मैं राम नहीं बन पाया.
लाड़ दिया जसुदा सा लेकिन, नहीं कृष्ण की मुझमें छाया.
मूढ़ अधम मुझको दामन में लिए रहीं तुम निधि पाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
*

स्मृति गीत: सृजन विरासत –संजीव ‘सलिल’

स्मृति गीत:

संजीव ‘सलिल’

सृजन विरासत
तुमसे पाई…
*
अलस सवेरे
उठते ही तुम,
बिन आलस्य
काम में जुटतीं.
सिगडी, सनसी,
चिमटा, चमचा
चौके में
वाद्यों सी बजतीं.
देर हुई तो
हमें जगाने
टेर-टेर
आवाज़ लगाई.
सृजन विरासत
तुमसे पाई…
*
जेल निरीक्षण
कर आते थे,
नित सूरज
उगने के पहले.
तव पाबंदी,
श्रम, कर्मठता
से अपराधी
रहते दहले.
निज निर्मित
व्यक्तित्व, सफलता
पाकर तुमने
सहज पचाई.
सृजन विरासत
तुमसे पाई…
*
माँ!-पापा!
संकट के संबल
गए छोड़कर
हमें अकेला.
विधि-विधान ने
हाय! रख दिया
है झिंझोड़कर
विकट झमेला.
तुम बिन
हर त्यौहार अधूरा,
खुशी पराई.
सृजन विरासत
तुमसे पाई…
*
यह सूनापन
भी हमको
जीना ही होगा
गए मुसाफिर.
अमिय-गरल
समभावी हो
पीना ही होगा
कल की खातिर.
अब न
शीश पर छाँव,
धूप-बरखा मंडराई.
सृजन विरासत
तुमसे पाई…
*
वे क्षर थे,
पर अक्षर मूल्यों
को जीते थे.
हमने देखा.
कभी न पाया
ह्रदय-हाथ
पल भर रीते थे
युग ने लेखा.
सुधियों का
संबल दे
प्रति पल राह दिखाई..
सृजन विरासत
तुमसे पाई…
*