अभिलेख

चित्रों ने खोली ज़ुबान, मर्दों के बारे में क्या सोचती हैं औरतें


चित्रों ने खोली ज़ुबान, मर्दों के बारे में क्यार सोचती हैं औरतें

♦ चण्डीदत्त शुक्ल

कौन-सा पुरुष होगा, जो न जानना चाहे कि स्त्रियां उसके बारे में क्या सोचती हैं? ये पता करने का मौक़ा जयपुर में मिला, तो मैं भी छह घंटे सफ़र कर दिल्ली से वहां पहुंच ही गया। मौक़ा था, टूम 10 संस्था की ओर से सात महिला कलाकारों की संयुक्त प्रदर्शनी के आयोजन का। और विषय, द मेल!

मर्द, मरदूद, साथी, प्रेमी, पति, पिता, भाई और शोषक… पुरुष के कितने ही चेहरे देखे हैं स्त्रियों ने। कौन-सी कलाकार के मन में पुरुष की कौन-सी शक्ल बसी है, ये देखने की (परखने की नहीं… क्योंकि उतनी अक्ल मुझमें नहीं है!) लालसा ही वहां तक खींच ले गयी।
जयपुरवालों का बड़ा कल्चरल सेंटर है, जवाहर कला केंद्र। हमेशा की तरह अंदर जाते ही नज़र आये कॉफी हाउस में बैठे कुछ कहते, कुछ सुनते, कुछ खाते-पीते लोग।
सुकृति आर्ट गैलरी में कलाकारों की कृतियां डिस्प्ले की गयी थीं। उदघाटन की रस्म भंवरी देवी ने अदा की। पर ये रस्म अदायगी नहीं थी। पुरुष को समझने की कोशिश करते चित्रों की मुंहदिखाई की रस्म भंवरी से बेहतर कौन निभाता। वैसे भी, उन्होंने पुरुष की सत्ता को जिस क़दर महसूस किया है, शायद ही किसी और ने किया हो पर अफ़सोस… अगले दिन मीडिया ने उनका परिचय कुछ यूं दिया, फ़िल्म बवंडर से चर्चा में आयीं भंवरी…!
इस मौक़े पर चर्चित संस्कृतिकर्मी हरीश करमचंदानी ने 15 साल पुरानी कविता सुनाई, मशाल उसके हाथ में। भंवरी देवी के संघर्ष की शब्द-यात्रा।
एक्जिबिशन में शामिल कलाकारों में से सरन दिल्ली की हैं। वनस्थली से उन्होंने फाइन आटर्स की पढ़ाई की है। उनका पुरुष फूल और कैक्टस के बीच नज़र आता है। कांटे और खुशबू के साथ आदमी का चेहरा। वैसे, लगता है सरन के लिए पुरुष साथी ही है। रोमन शैली का ये मर्द शरीर से तो मज़बूत है पर उसका चेहरा कमनीय है, जैसे चित्रकार बता रही हों… वो बाहर से कठोर है और अंदर से कोमल।
सुनीता एक्टिविस्ट हैं… स्त्री विमर्श के व्यावहारिक और ज़रूरी पक्ष की लड़ाई लड़ती रही हैं। वो राजस्थान की ही हैं। सुनीता ने स्केचेज़ बनाये हैं। उनकी कृतियों में पुरुष की तस्वीर अर्धनारीश्वर जैसी है… शायद आदमी के अंदर एक औरत तलाशने की कोशिश। लगता है, वो पुरुष को सहयोगी और हिस्सेदार समझती हैं।
संतोष मित्तल के चित्र ख़ूबसूरत हैं, फ़िगरेटिव हैं, इसलिए जल्दी ही समझ में आ जाते हैं। कलरफुल हैं, पर चौंकाते हैं। उनके ड्रीम मैन हैं, अमिताभ बच्चन। इस बात पर बहस हो सकती है कि किसी स्त्री के लिए अमिताभ पसंदीदा या प्रभावित करने वाले पुरुष क्यों नहीं हो सकते! पर सवाल थोड़ा अलग है। संतोष के चित्रों में तो फ़िल्मी अमिताभ की देह भाषा प्रमुख है, उनका अंदाज़ चित्रित किया गया है। जवानी से अधेड़ और फिर बूढ़े होते अमिताभ। ख़ैर, पसंद अपनी-अपनी!
एक और कलाकार हैं सीता। वो राजस्थान के ही सीमांत ज़िले श्रीगंगानगर की हैं। कलाकारी की कोई फॉर्मल एजुकेशन नहीं ली। पति भी कलाकार हैं, तो घर में रंगों से दोस्ती का मौक़ा अच्छा मिला होगा। उनकी एक पेंटिंग में साधारण कपड़े पहने पुरुष दिखता है। पर बात यहीं खत्म नहीं होती। वो दस सिर वाला पुरुष है… क्या रावण! एक और कृति में सीता ने उलटे मटके पर पुरुष की ऐसी शक्ल उकेरी है, जैसे किसान खेतों में पक्षियों को डराने के लिए बिज़ूका बनाते हैं। तो क्या इसे विद्रोह और नाराज़गी की अभिव्यक्ति मानें सीता?
मंजू हनुमानगढ़ की हैं। पिछले 20 साल से बच्चों को पढ़ाती-लिखाती रही हैं। यानी पेशे से शिक्षिका हैं। उनकी कृतियों में प्रतीकात्मकता असरदार तरीक़े से मौजूद है। तरह-तरह की मूंछों के बीच नाचता घाघरा और दहलीज़ पर रखे स्त्री के क़दम… ऐसी पेंटिंग्स बताती हैं… अब और क़ैद मंज़ूर नहीं।
ज्योति व्यास शिलॉन्ग में पढ़ी-लिखी हैं, पर रहने वाली जोधपुर की हैं। प्रदर्शनी में उनके छायाचित्र डिस्प्ले किये गये हैं। चूड़ियां, गाढ़े अंधेरे के बीच जलता दीया और बंद दरवाज़े के सामने इकट्ठे तोते। ये एक बैलेंसिग एप्रोच है पर थोड़ी खीझ के साथ।
निधि इन सबमें सबसे कम उम्र कलाकार हैं। फ़िल्में बनाती हैं, स्कल्पचर और पेंटिंग्स भी। ख़ूबसूरत कविताएं लिखती हैं और ब्लॉगर भी हैं। निधि पुरुष के उलझाव बयां करती हैं और इस दौरान उसके हिंसक होते जाने की प्रक्रिया भी। समाज के डर से सच स्वीकार करने की ज़िम्मेदारी नहीं स्वीकार करने वाले पुरुष का चेहरा अब सबके सामने है। जहां चेहरा नहीं, वहां उसके तेवर बताती देह।
एक चित्र में अख़बार को रजाई की तरह इस्तेमाल कर उसमें छिपे हुए पुरुष के पैर बाहर हैं… जैसे कह रहे हों, मैंने बनावट की बुनावट में खुद को छिपा रखा है, फिर भी चाहता हूं, मेरे पैर छुओ, मेरी बंदिनी बनो!

एक्रिलिक में बनाये गये नीले बैकग्राउंड वाले चित्र में एक आवरण-हीन पुरुष की पीठ है। उसमें तमाम आंखें हैं और लाल रंग से उकेरी गयीं कुछ मछलियां। ये अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते पुरुष की चित्त-वृत्ति का पुनर्पाठ ही तो है!

उनके एक चित्र में देह का आकार है… उसकी ही भाषा है। कटि से दिल तक जाती हुई रेखा… मध्य में एक मछली… और हर तरफ़ गाढ़ा काला रंग। ये एकल स्वामित्व की व्याख्या है। स्त्री-देह पर काबिज़ होने, उसे हाई-वे की तरह इस्तेमाल करने की मंशा का पर्दाफ़ाश। निधि के पांच चित्र यहां डिस्प्ले किये गये हैं। प्रदर्शनी अभी 10 नवंबर तक चलेगी।
पुनश्च 1 – ये कोई रंग-समीक्षा नहीं है। जो देखा, समझ में आया। लिख दिया।
पुनश्च 2 – आनंदित होने, संतुष्ट हो जाने और बेचैन हो जाने के भी तमाम कारण इन चित्रों ने बताये हैं। इन पर सोचना ही पड़ेगा।

और अंत में… एक बड़े अधिकारी की पत्नी ने कहा, भंवरी देवी को प्रदर्शनी की शुरुआत करने के लिए क्यों बुलाया गया? मुझसे कहतीं, मैं किसी भी सेलिब्रिटी को बुला देती! अफ़सोस कि ऐसा कहने वाली खुद को कलाकार भी बताती हैं। (कानों सुनी)]]

क्यूं हर बार रैंप पर ही कपड़े नहीं देते साथ

दुनिया में कहीं भी फैशन शो हो और उसमें कोई विवाद न उठे ऐसा कैसे हो सकता है। नई दिल्ली इन दिनों चल रहे विल्स लाइफस्टाइल इंडिया फैशन शो भी इससे अछूता न रहा। मशहूर डिजाइनर रितु कुमार के शो के दौरान खूबसूरत मॉडल जब रैंप पर उतरीं तो सभी की निगाह उनके पैंट पर जा कर टिक गई। नजर टिकने की भी पुख्ता वजह थी। दरअसल मॉडल ने जो पैंट पहन रखा था, उसकी चैन बंद करना शायद वो भूल गई थी। ऐसा नहीं है कि यह देश में कोई पहला मामला है। पहले भी कई फैशन शो इन्हीं तरह की लापरवाहियों के चलते सुर्खियां बटोर चुके हैं। हालांकि इस बात पर बहस आज भी जारी है कि ऐसा अनजाने में हो जाता है या फिर जानबूझकर किया जाता है।वर्ष 2008 में विल्स फैशन शो के दौरान एक मॉडल की ड्रेस जब कंधे से खिसक गई तो उसने उस पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया और पूरे आत्मविश्वास के साथ रैंप पर चलती रहीं। इससे पहले वर्ष 2006 में तो हद हो गई थी। देश की मशहूर मॉडल केरोल ग्रेसिया जब रैंप पर उतरीं तो कैमरे का फ्लैश लगातार उन्हीं की ओर चमक रहे थे। चमकते भी क्यों नहीं। केरोल ने जो ड्रेस पहनी हुई तो वह अचानक खुल गई। लेकिन दाद देनी होगी कैरोल की। उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी ड्रेस को ठीक किया और अपनी कैटवॉक पूरी की। हालांकि मुंबई पुलिस ने इस वजह से उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था।निगार खान भी ऐसे अनुभव से गुजर चुकी हैं। नार्वे में एक फैशन शो के दौरान निगार की ब्रा छाती से खिसक गई थी। नतीजतन सारे कैमरों ने उनके खुले हुए ब्रेस्ट को कैमरे में कैद कर लिया। कई चैनलों ने इस पूरे सीन को ब्लर करके टीवी पर भी दिखाया। यह बात है वर्ष 2005 की। सैकड़ों की तादाद में लोगों ने निगार को बिना कपड़ों के देखा। गौहर खान के साथ भी ऐसा कुछ हुआ था। उन्होंने जो ड्रेस पहनी थीं, उसके पीछे की चेन खुली थी। गौहर खान को इस वजह से काफी शर्मिदगी उठानी पड़ी थी। इसी तरह वर्ष 2004 में सिडनी में एक फैशन शो के दौरान

उस वक्त की मिस यूनिवर्स जेनिफर हॉकिंस की लंबी-चौड़ी ड्रेस खिसक गई और वहां मौजूद लोगों के साथ ही पूरी मीडिया ने भी उन्हें खुले बदन देखा।

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एमएलए फ्लैट में चल रहा था वेश्यावृत्ति का चोखा धंधा

गुड़गांव. सेक्टर 28 स्थित एमएलए फ्लैट में छापा मारकर पुलिस ने एक कॉलगर्ल सहित सात लोगों को गिरफ्तार किया है। इन सभी के खिलाफ वेश्यावृत्ति के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। यह फ्लैट एक पूर्व मंत्री का है जिसे उन्होंने किराए पर दे रखा है।
सीआईए स्टाफ के मुताबिक उन्हें गुप्त सूचना मिली थी कि एमएलए फ्लैट नंबर 103 में वेश्यावृत्ति का धंधा चल रहा है। इस सूचना पर शनिवार को वहां छापा मारा गया तो एक कॉलगर्ल सहित सात लोग पकड़े गए।
कॉलगर्ल बिहार की है और पिछले कई सालों से दिल्ली में रह रही हैं। पकड़े गए लोगों की पहचान पंजाब के गोबिंदगढ़ निवासी रमेश व कमलदीप, बिहार के चिंटू व राजेश और उत्तरांचल के दिनेश व लक्ष्मण सिंह के रूप में हुई है।
पुलिस के मुताबिक यह फ्लैट चिंटू ने किराए पर ले रखा है और वह यहां वेश्यावृत्ति का धंधा चलाता है। लोहे के व्यापारी रमेश व कमलदीप चाचा-भतीजा हैं जो अक्सर पेमेंट लेने गुड़गांव आते रहते हैं।
चिंटू इन्हें कॉलगर्ल मुहैया कराता था और ये लोग इसी फ्लैट में अय्याशी करते थे। इसके अलावा राजेश, दिनेश व लक्ष्मण यहां चिंटू के पास काम करते थे। पुलिस ने इन सभी के खलाफ देह व्यापार अधिनियम की धारा 4 और 5 के तहत मामला दर्ज किया है।
पुलिस ने छापा मारकर सात लोगों को गिरफ्तार किया है। मामले की जांच की जा रही है।
जगदीश नागर, डीसीपी, गुड़गांव
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आ देखें जरा गूगल का आलीशान ऑफिस

गूगल सर्च इंजन से हर कोई परिचित है हम लेकर चलते हैं आपको गूगल के ऑफिस की सैर पर….इसे देख आपका भी मन करेगा काश मेरे ऑफिस में होता………गूगल सर्च इंजन से हर कोई परिचित है हम लेकर चलते हैं आपको गूगल के ऑफिस की सैर पर….इसे देख आपका भी मन करेगा काश मेरे ऑफिस में होता………कुछ पेट पूजा हो जाए …खाली पेट काम भी ठीक से नहीं होता……गूगल के ऑफिस में हैं टेस्टी टेस्टी फूड के कई सारे ऑपशन्स…..

काम और खाने पीने के साथ मनोरंजन के लिए भी कुछ जुगाड़ हो जाए तो फिर ऑफिस से जाने का आपका मन ही न करे….गूगल का गेमिंग जोन जहां है बिलियर्डस से लेकर वीडियो गेम्स तक सबकुछ

ऑफिस में रेग्युलर रहने के लिए हैल्दी रहना बेहद जरूरी है….खास हैल्थ चैकअप और मालिश करने की सुविधा दी गई है…….

आराम का टाइम है……..खास आरामदायक मसाज चेअर….और उसके साथ एक्वेरियम का आनंद…एनर्जी रीगेन करने का इससे अच्छा कोई और तरीका नहीं……..

नॉलेज बढ़ाने के लिए बेस्ट बुक्स का बेस्ट कलेक्शन……..यहां प्रोग्रामिंग की कुछ ऐसी बुक्स हैं जो दुनिया में शायद कहीं और नहीं………

सीढियां चढ़ने या लिफ्ट में जाने का मन नही है तो क्यों न इस खास वे का इस्तेमाल किया जाए…..गूगल के ऑफिस में फायर सेफ्टी का यह खास वे ……

ऑफिस में रहकर अपनी कुछ पर्सनल बातों के लिए खास कम्यूनिकेशन सेंटर…..हाईली कॉन्फीडेंशियल बातों के लिए ये जगह परफेक्ट है……..इसके लिए आपको ऑफिस से उठकर बाहर नहीं जाना पडेगा…

आपके कम्प्यूटर में कुछ गड़बड़ है तो तुरंत इस टेक्निकल स्पोर्ट सिस्टम में चले आइए…झटपट आपको जूस और कम्प्यूटर को सुधरने की दवाई यहां पिलाई जाएगी……..

ऑफिस में आपका कम्प्यूटर और टेबल आपकी सबसे फेवरेट जगह जरूर होगी….अगर आपके पास है खास बिग स्क्रीन कम्प्यूटर और इतना सूदिंग एनवायरमेंट……..

थकान, चिंता और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं तो इससे आपका काम जरूर प्रभावित होगा….कुछ समय इस स्ट्रेस फ्री मशीन में बिताएं और फिर से परफेक्टली काम करने के लिए तैयार हो जाएं……

सौजन्य-गूगल

तो कैसा लगा आपको गूगल के ऑफिस के बार में जानकार,अच्छा लगा तो आप हमारी प्रशंसा कीजिये और बुरा लगा तो बुराई कीजिये,कोई समस्या नहीं! बस जरुरी है आपकी राय आगे पढ़ें के आगे यहाँ

अभिज्ञात को दिया जायेगा कौमी एकता पुरस्कार

कोलकाता – ‘आल इंडिया कौमी एकता मंच’ की ओर से अभिज्ञात को उनके उपन्यास ‘कला बाजार’ के लिए ‘कौमी एकता पुरस्कार’ देने का निर्णय लिया गया है। यह उपन्यास सन 2008 में आकाशगंगा प्रकाशन, नयी दिल्ली ने प्रकाशित किया है। 9 मई सन् 1857 को स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक दिन है। उसकी वर्षगांठ पर 9 मई 2009 को यह पुरस्कार कोलकाता के कला मंदिर सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया जायेगा। यह जानकारी मंच के महासचिव आफताब अहमद खान ने दी है। उन्होंने बताया कि ‘कला बाजार’ उपन्यास में विभिन्न धर्मों से जुड़े चरित्र एक-दूसरे की भावनाओं का जिस तरह से खयाल रखते हैं उससे हमारी कौमी एकता और साम्प्रदायिक सद्भाव को बल मिलता है। अभिज्ञात को इससे पहले ‘आकांक्षा संस्कृति सम्मान’ एवं एचडी मीडिया समूह का ‘कादम्बिनी लघुकथा पुरस्कार’ मिल चुका है। उनके छह कविता संग्रह ‘एक अदहन हमारे अन्दर’, ‘भग्न नीड़ के आर पार’, ‘आवारा हवाओं के खिलाफ चुपचाप’, ‘वह हथेली’ तथा ‘दी हुई नींद’ एवं दो उपन्यास ‘अनचाहे दरवाज़े पर’ और ‘ कला बाज़ार’ प्रकाशित हैं। वे एक अच्छे कहानीकार भी हैं और उनकी कहानियां देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। अभिज्ञात पेशे से पत्रकार हैं और सम्प्रति वे सन्मार्ग दैनिक में वरिष्ठ उप-सम्पादक हैं।
खान ने बताया कि आल इंडिया कौमी एकता मंच जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है। समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण शिविरों का आयोजन करता है। राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव से जुड़ी विचारगोष्ठियों आदि का आयोजन कराता रहा है तथा इस उद्देश्य से जुड़े़ व्यक्तियों को उनके योगदान के लिए सम्मानित करता है।