अभिलेख

शूर्पनखा

सूर्पनखा भी एक पात्र है ,
जग्विजयी रावण की भगिनी।
बनी कुपात्र परिस्थितियों वश ,
विधवा किया स्वयं भ्राता ने ।
राज्य मोह पदलिप्सा कारण ,
पति रावण विरोध पथ पर था।
कैकसि और विश्रवा ऋषि की ,
थी सबसे कनिष्ठ संतान ।
अतिशय प्रिय परिवार दुलारी ,
सारी हठ पूरी होतीँ थीं।
मीनाकृति सुंदर आँखें थीं ,
जन्म नाम मीनाक्षी पाया।
लाड प्यार मैं पली बढ़ी वह ,
माँ कैकसि सम रूप गर्विता ।
शूर्प व लंबे नख रखती थी ,
शूर्पनखा इसलिए कहाई ।
शुकाकृति थी सुघड़ नासिका ,
शूर्प नका भी कहलाती थी ।
जन स्थान की स्वामिनी थी वह,
था अधिकार दिया रावण ने ।
पर पति की ह्त्या होने पर,
घृणा द्वेष का ज़हर पिए थी ।
पूर्ण राक्षसी भाव बनाकर ,
अत्याचार लिप्त रहती थी ।
अश्मक द्वीप ,अश्मपुर शासक ,
कालिकेय दानव विध्युत्ज़िहव;
प्रेमी था वह शूर्पनखा का ,
रावण को स्वीकार नहीं था।
सिरोच्छेद कर विध्युत्जिब का ,
नष्ट कर दिया अश्मकपुरको ।
पति ह्त्या से आग क्रोध की,
लगी धधकने शूर्पनखा में ।
पुरूष जाति प्रति घृणा भाव मैं ,
शीघ्र बदलकर तीव्र होगई ।
प्रेम पगी वह सुंदर रूपसि ,
एक कुटिल राक्षसी बन गयी।
यह दायित्व पुरूष का ही है,
सदा रखे सम्मान नारि का ।
अत्याचार न हो नारी पर ,
उचित धर्म व्रत अनुशीलन का ,
शास्त्र ज्ञान मिले उनको भी ;
हो समाज स्वस्थ दृढ सुंदर।
–शूर्पनखा काव्य-उपन्यास से (अगीत विधा काव्य –डा श्याम गुप्ता )