अभिलेख

अंकुरित चिट्ठा-2009 अवार्ड के लिए प्रबिष्टियां आमंत्रित


हिन्दुस्तानी की आवाज़ प्रतियोगिता एवं कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के बाद हिन्दुस्तान का दर्द सम्मानित करने जा रहा है चिट्ठाकारों को । ऐसे चिट्ठे जो अभी अपनी शिशु अवस्था में हैं और लगातार प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो रहे है।
ऐसे ही चिटठो मे से हम चुनेंगें अंकुरित चिट्ठा-2009 और जिस पाठक की रहेगी इस प्रतियोगिता पर तीखी नजर और करेगा सबसे अधिक एवं सबसे अलग कमेन्टस बह बनेगा बरिष्ठ पाठक-2009

नियम व जानकारी :-

1.अंकुरित चिट्ठा-2009 प्रतियोगिता में अपने चिटठे को शामिल कराने के लिए चिटठे के संपादक को स्वंय के पते,फोटो एवं फोन नम्बर के साथ अपने चिटठे का लिंक हम तक पहुँचाना होगा।

2.अंकुरित चिट्ठा-2009 के लिए प्राप्त प्रतियोगियों मे से किसी एक चिटठे को ही अंकुरित चिटठा
की उपाधि से नवाजा जायेगा,इस संदर्भ में समस्त अधिकार हिन्दुस्तान का दर्द के पास सुरक्षित रहेंगें।

3. अंकुरित चिट्ठा-2009 के लिए प्रबिष्टियां 31 मार्च 2009 दिन मंगलवार तक ही स्वीकार की जायेगी,इसके पश्चात 20 दिनों तक निर्णायक मंडल द्वारा उन चिटठो का मूल्याकंन किया जायेगा।
जो प्रबिष्टियां हमें जितने जल्दी प्राप्त होगी उनका मूल्याकंन उतनी ही शीघ्रता से प्रारंभ हो जायेगा,इसलिए अपनी प्रबिष्टियां यथाशीघ्र हम तक पहुँचाने की कोशिश करे।

4. अंकुरित चिट्ठा-2009 का चुनाव करते समय यह विषेष रूप से देखा जाएगा कि उस चिटठे के माध्यम से हिन्दी प्रचार प्रसार एवं समाजिक हित किस रूप में किया जा रहा है।

5.अंकुरित चिट्ठा-2009 के लिए प्राप्त प्रबिष्टियों मे से यदि कोई प्रबिष्टि हमें ऐसी प्राप्त होती है जो सामाजिक हित से ना जुडकर अश्लीलता या समाज को गलत रास्ता दिखाती है तो उसे अंकुरित चिट्ठा-2009 के लिए स्वीकार नही किया जायेगा,इसकी जानकारी आप को दे दी जायेगी।

6. अंकुरित चिट्ठा-2009 के नतीजों से पूर्व इस संबंध में पत्र,फोन या अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार ना किया जाये ।

7. अंकुरित चिट्ठा-2009 के लिए आपकी अनुशंसा ,राय मान्य होगी,जो आपको हिन्दुस्तान का दर्द पर समस्त लोंगो के समक्ष रखनी होगी।

8. अंकुरित चिट्ठा-2009 में केवल हिन्दी ब्लॉग ही भाग ले सकेंगे,वेवसाइटों को स्वीकार्य नही किया जा सकेगा।

9. अंकुरित चिट्ठा-2009 के लिए हम कोई कसौटी तय नही करते यह लेखक को स्वंय तय करना होगा की उसका चिटठा किस अवस्था में है।

10. अंकुरित चिट्ठा-2009 के नतीजे मई 2009 के प्रथम सप्ताह में घोषित किए जायेगें और उसे प्रतियोगिता में प्राप्त क्रम के अनुसार ही प्रकाशित किया जायेगा ।

11. अंकुरित चिट्ठा-2009 में भाग लेने बाले लेखक स्वंय के चिटठे एवं अपने पसंदीदा चिटठे की विशेषता को कमेंन्टस बाक्स के माध्यम से पाठकों के मध्य रख सकेंगे क्योंकि निर्णायक मंडल एवं पाठको की राय के आधार पर ही अंकुरित चिटठा.2009 चुना जायेगा।

12.हिन्दुस्तान का दर्द का मुख्य उद्देश्य हिन्दी को बढावा देना है इसलिए हिन्दीप्रेमियों से आग्रह है कि अंकुरित चिटठा-2009 प्रतियोगिता के बारे में अधिक से अधिक लोगो तक जानकारी पहुंचाने में सहायता करें।

13.अंकुरित चिट्ठा-2009 के विजेता को हिन्दुस्तान का दर्द की ओर से गिफ्ट हैंपर दिया जायेगा और जो पाठक इस अभियान के अंतर्गत सबसे अधिक संख्या में एवं हिन्दी में कमेंन्टस [राय] देगा बह बनेगा बरिष्ठ पाठक .2009 उसे युवा शक्ति संगठन के द्वारा 500 रूपये की किताबे भेंट की जायेंगी।

अंकुरित चिट्ठा-2009 के अंर्तगत आप अपनी प्रबिष्टियां हमें mr.sanjaysagar@gmail.com पर ईमेल करे ।
अधिक जानकारी के लिए आप 09907048438 पर फ़ोन कर सकते है

देश की आशा….हिन्दी भाषा.
जय हिन्दुस्तान….जय यंगिस्तान

आयोजक
हिन्दुस्तान का दर्द

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रोहित जी की कविता – ”खो देना चाहती हूँ तुम्हें”

अब हम कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के इस क्रम में जो कविता प्रकाशित कर रहे है उसे लिखा है रोहित जी ने !
हम रोहित जी को हार्दिक बधाई देते है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !
आप सभी से आग्रह है की इस कविता पर अपनी राय दें !

खो देना चहती हूँ तुम्हें..
सही है कि तुम चले गये, दूर अब मुझसे हो गये
इतने वक़्त से भी कहाँ करीब थे, पर अब फाँसले सदा के लिए हो गये
बात करने का तुमसे मन नहीं, कोई जवाब तुम्हारे खयाल का देना नहीं
ना तुमसे कोई रिश्ता, ना अब कोई और चाह रही
काश की तुम बीते दिनों से भी मिट जाओ, तुम्हारी यादें इस कोहरे में कहीं गुम जायें
काश कि तुम्हारा नाम मुझे फिर याद न आये, ये याद रहे कि तुम मेरे कोई नहीं
जो हो तुम मेरे कोई नहीं तो फिर भी क्यूं याद करती हूँ ये कह कर कि तुम मेरे ‘कोई नही’
चले जाओ तुम मेरे शब्दों से, ख्यालों से, इस वक्ये के बाद तो तुम जा चुके हो मेरे सपनों से भी
नाम लेते ही साँसों में अब भी हलचल सी क्यूँ होती है
क्यूँ किसी बात की आशा अब भी रहती है
हाथों से तुम्हें छिटकना चाहती हूँ फिर भी एहसास छूटता क्यूँ नहीं
चलते हुये गिरती हूँ तो आज भी क्यूँ तुम्हारा हाथ बढा देना याद आता है
ये दिन – यह वाक्या बीता है तो फिर इसी तरह ज़िन्दगी आगे भी बढ जायेगी
तुम्हारा तो पता नहीं, मुझे ‘बूढे हो जाने पर ये-वो होगा’ – वाली बातें याद आयेगीं
चाहती हूँ इस सबके बाद भी तुमसे कभी मुलाकात ना हो
सामना करने की हिम्मत जो खो बैठी हूँ
सूरत-सीरत, अन्दाज़ और तलफ्फुज़् सब बदल गये हैं
बहुत डर लगता है अपने इस बद्ले हुए रूप से
काफी चीज़े छोड आयीं हूँ पीछे
वो तभी के लिये सही थी
अब तो उन्हें साथ लिये ज़िन्दगी जीना भी कठिन है
खुश रहो तुम सदा, बहुत बडे बनो
ज़िन्दगी का हर मकाम तुम्हें हासिल हो, ये तमन्ना है मेरी
बस तुमसे सामना ना हो फिर कभी, ये ख्वाहिश बाकी रहेगी

आरती आस्था जी की कविता ”लिखावट”

कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत आज हम आपके लिए जो कविता प्रकाशित कर रहे है उसे अपने अल्फाजों से सजाया है आरती आस्था जी ने !
कलम का सिपाही मे सहयोग के लिए हम आपके आभारी है और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !
इस रचना पर आप अपनी राय दें !

लिखावट

हाथो से
जो नही लिख पते हम
लिखने की कोशिस करते है
बहुत बार
आसुओ से
इस आस में
की शायद
लिख जाए कुछ ऐसा
जो न लिखा गया हो अब तक
हमारी किस्मत में…………!

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हिंद युग्म के द्वारा ठुकराई गयी मेरी एक कविता


आज हम आपके सामने जो कविता प्रकाशित कर रहे है बह कलम का सिपाही प्रतियोगिता की नहीं है इसे मैंने हिंद युग्म की एक प्रतियोगिता के लिए भेजा था लेकिन इसे वहा जगह नहीं मिली क्योंकि शायद यह उतनी अच्छी नहीं थी या बिलकुल अच्छी नहीं थी ,पर यह मेरी अच्छी कविताओं मे से एक है !
तो बिना किसी शिकायत और बिना किसी गिला के मैं आपको यह रिजेक्ट माल पढ़ा रहा हूँ अच्छा लगे तो अच्छी बात है और न लगे तो एक जगह से और रिजेक्ट सही!!

तुमने मुझे याद किया तो होगा ?

सावन की रिमझिम बारिस में बूंदों ने,
तुमको छुआ तो होगा
बूंदों के स्पर्श से सच कुछ हुआ तो होगा!
तुफानो की तेज हवा से
दिल धड़का तो होगा
देख आसमा में काली बिजली
तुमने मुझे याद किया तो होगा ?

गर्मी के हर तपन पलों में
जी-जला तो होगा
घर लौटते मुसाफिरों को देख
बच्चों ने मेरे बारे मे पुछा तो होगा
सुनकर उनकी प्यारी बातें
तुमने मुझे याद किया तो होगा ?

शरद ऋतु की बर्फीली सर्दी में
कोई ख्वाब बुना तो होगा
चाही होंगी आंच जरा सी और
जिस्म शून्य पड़ा होगा!
हो गया होगा जब लहु बर्फ तुम्हारा
तुमने मुझे याद किया तो होगा ?

बसंत ऋतु की बेला में
कोई फूल खिला तो होगा
उस बसंती फूल को तुमने
होठों से छुआ तो होगा
महक गया होगा आँचल तुम्हारा
तब तुमने मुझे याद किया तो होगा?

शीत ऋतु की लम्बी तन्हा रातों में
कोई अक्स दिखा तो होगा
दिल की सारी हसरतों को तुमने
”अलाव”से कहा तो होगा!
कहते- कहते हर बात तुमने
तुमने मुझे याद किया तो होगा?

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अभिषेक आनंद की सराहनीय कविता-भोली माँ


कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत हम आज सम्मानीय श्रेणी के लिए जो कविता प्रकाशित कर रहे है उसे अपने अल्फाजों से सजाया है ”अभिषेक आनंद” जी ने !अभिषेक जी बिहार के पटना से बास्ता रखते है ! आप लोग इनकी कविता पर अपनी राय जरुर दें!!

” भोली माँ “

कुछ भी नहीं समझती है माँ !
किवाड़ पर हलकी सी भी आहट हो तो
रात भर , अकेली , जागी रह जाती है ;
मुझे घर आने में थोडी देर हो ,
तो चलकर , मोड़ तक पहुँच आती है ;
कभी भूखे पेट जो , सो जाऊं ,
तो वो भी , कुछ खा नहीं पाती है ….
उसको समझाऊं कैसे !
अब मै बड़ा हो गया हूँ ,
रख सकता हूँ अपना ख़याल .
मगर …
गोद से लेकर अबतक , पाला है जो उसने ,
अब भी मुझे बच्चा ही समझती है ;
मेरे लिए परेशान सी रहती है ;
…जो मै सोचता हूँ , वो शुकून से रहे ;
…जो मै दुआ करता हूँ , वो लम्बी उम्र जिए ;
…जो मै भी चाहता हूँ , वो भी पूरी नींद ले .
पर , कैसे समझाऊं उसे !!!
मेरे बारे में तो सोचती है
पर मेरे जैसा नहीं सोचती है माँ …
बहुत भोली है ,
कुछ भी नहीं समझती है माँ !!

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गोपिकांत महतो. जी की सराहनीय कविता

आज से हम सराहनीय ९ कविताओं को प्रकाशित करने की शुरुआत कर रहे है इन कविताओं को किसी भी प्रकार की श्रेणी नहीं दी गयी है हमें जिस कविता को पहले प्रकाशित करने में सुबिधा हो रही है हम पहले उन्हें ही प्रकाशित कर रहे है !इसी क्रम की शुरुआत हम कर रहे है गोपिकांत महतो जी की कविता ”एकता…..ये दीप मेरे” से गोपिकांत जी आकिर्टेक्ट है और लोग इन्हे समाज सेवक ही हैसियत से भी जानते है ! यह रांची झारखण्ड से बास्ता रखते है !तो यह रही इनकी कविता !

एकता…..ये दीप मेरे।

ये दीप तू जलता रहना
दिग्दर्सन करता रहना
पथ को उजजवल करने वाला
तू उन्ही जलता रहना…….हिन्दुस्तान
की उच्छ्वास को.
रोशन कर दो अंचल को
अपने लोउ को प्रजवलित कर लो
तृप्त कर दो हमारी प्यास को……..
हवा ,आधी और झोका की
कठिनाई तो आती रहेगी,
पर तू होना मत डगमग
क्यूंकि मैं साथ हूँ सजग.
कितना मुस्किले सहा है हमने
लोउ की गरिमा को बनाने के लिए.
सिर्फ याद करते है राष्टीय छुट्टी में
साल भर है किसी कोने में…..
तुम्हे प्रजव्लित करने का
अनावाषा ही अवाषा हुआ,
ये मेरे जिंदगी का कठिन अनुभव का एह्साह हुआ.
तेरी लोउ ने मुझे राह दिखा दिया
तेरी लोउ ने मुझे सिखा दिया,
दीप की तरह जलते रहो
ऐसा एक अभिलाष दिया.
“मैं” एक दीप बनूँगा
तेरी बाती का जान बनूंगा
तुम साथ चलने का वादा कर
मैं चिंगारी से मसाल बनूँगा।

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फकीर मोहम्मद घोसी की सम्मानित कविता- ”गर भाषा न होती”

कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत अब हम जो कविता प्रकाशित करने जा रहे है उसे अपने अल्फाजों और भावनाओं से सजाया है ”फकीर मोहम्मद घोसी जी ” ने !फकीर मोहम्मद घोसी जी विजय नगर, फालना स्टेशन, जिला-पाली (राजस्थान) से बास्ता रखते है ,उनकी रचना में देश प्रेम .भाषा प्रेम देखा गया है ! उनकी आज की रचना भी कुछ ऐसी ही है ””गर भाषा न होती”!
हम आपको याद दिला दे की शीर्ष पाँच की यह अन्तिम कविता है ,इसके बाद सम्मानित पाँच कविताओं का सफर यही थम जाएगा ! और इसके बाद हम ९ सराहनीय कविताएँ आपके सामने प्रस्तुत करेंगे ! तो फकीर मोहम्मद घोसी जी को शीर्ष पाँच में आने के लिए हमारी ओर से बधाई हम उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ,आप से आग्रह है की अपनी राय देकर उनके प्रोत्साहन को ऊँचा करें!

न स्कूल होती, न भारी बस्ता
न होती हालत खस्ता
गर भाषा न होती

शिक्षा होती न संस्कृति होती
कलम-किताब न होती
कविता होती न काव्य होता,
अनपढ़ शिक्षित मे दीवार न होती
गर भाषा न होती

विज्ञान न टेक्नोलाॅजी होती
न दुनिया पर विनाश की काली छाया होती,
मोटर, जहाज न रेल होती
और न कैदियो के लिए जेल होती
बस जिसकी लाठी उसकी भैंस होती।
गर भाषा न होती


कोई अपना होता न पराया
गाड़ी होती न लगता किराया
जाति न पांति होती
न दुनिया की मारा-मारी होती
क्रिकेट का बैट होता
न फुटबाल की बाॅल होती
न कुश्ती मे घोती खुलती
गर भाषा न होती

मंडे की ड्यूटी न सण्डे की छुट्टी होती
न बच्चे के लिए जन्म-घुट्टी होती
चाय होती न काॅफी बनती
और न खीर-पूरी हमारे पांति आती
न हमे खाने को मिलती मिठाई
न हम जान-पाते कैसी होती है खटाई।
गर भाषा न होती

न कागज होता न पैन होती
न गैस होती न जलते-चूल्हे
बाग होता न लगते झूले
और न हम समाते फूले।
न काम होता न देर होती
न तोते की टेर होती
और न मुन्ने की नानी के हाथो खेर होती
गर भाषा न होती

न दिया होता न जलती बाती
न काम करता खाती
न लता मंगेश्कर गाती।
गर भाषा न होती

दाम होता न दमड़ी होती
हर किसी को पेट की पड़ी होती
कोई किसी के लिए क्यू रोता ?
किसान-अनाज क्यू बोता ?
दादा होता न पोती रोती
न फ्लेट होता न हवेली होती
बस घरती की फर्श और आसमान की छत होती।
गर भाषा न होती

न दिल्ली होती न देर होती
न पपीहे की टेर होती
जाति होती न पांति होती
न झूठी आरक्षण की राजनीति होती
मजहब होता न मजहर होता
न सामप्रदायिकता का बोलबाला होता
न भाई-भाई लड़ते आपस में
न खून-खराबा होता
गर भाषा न होती

जैक होता न चैक की जरूरत पड़ती
गुलाम होते न बेड़िया कम पड़ती
रिश्वत मे न भरे हुए बैग देने पड़ते
न कालाबाजारी के आलू सड़ते
अंघा कानून होता
न उसको सच करने के लिए झूठा वकील
डाॅक्टर होता न देनी पड़ती फीस
न ही हम खरीदते पेंट पीस
गर भाषा न होती

दगाबाजी की शतरंज जमती
न भ्रष्टाचार की चाले चलती
न नेता रूपी मोहरे होते
न उनके बंगलो पे सैनिको के पहरे होते
गर भाषा न होती

राजनीति होती न जनता मे फूट के बीज बोती
और न जनता यूं आंठ-आंठ आसूं रोती
न पोथी बंचती न पंचाग काम आता
गर भाषा न होती

कसम से देश होता न भेष होता
न देशवासी होते, हम न जाने कहाँ ?
अपनी -अपनी कुटिया मे खर्राटे ले रहे होते ?
गर भाषा न होती।

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अनुराधा गुगनानी की सम्मानित कविता-माँ का मंथन

”कलम का सिपाही”कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत अब हम जो कविता प्रकाशित करने जा रहे है उसे अपने हुनर से रचा है ”अनुराधा गुगनानी जी” ने ! इनके बारे में और अधिक जानकारी के लिए हम इनका जीवन परिचय प्रकाशित कर रहे है ! और हम आपको याद दिला दे की शीर्ष पाँच में से यह चौथे स्थान की कविता है

आशा है आपको पसंद आएगी !!हम अनुराधा जी को बहुत बहुत बधाई देते है और इनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !
अनुराधा जी कुछ अल्फाजों में

मै अंजू चौधरी ॥उम्र ४१ …गृहणी हूँ मै बी।ए तक पड़ी हुई हूँ और अनुराधा गुगनानी मेरा बचपन का नाम है ॥मै इसी नाम से अपने लेख लिखती हू पहली बार किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है मेरा कोई भी लेख अभी तक कही नहीं प्रकाशित नहीं हुआ है बहुत वक़्त से लिख रही हूँ कभी मौका नहीं मिला …..कि अपना लिखा प्रकाशित करवा सकूं ……यहाँ कलम के सिपाही ने मुझे ये मोका दिया मै बहुत आभारी हूँ ….संजय सेन सागर जी कि जो उन्होंने मुझे ये मोका दिया मैंने कभी अपने को लेखक नहीं माना ॥बस जब कॉपी और पेन हाथ मे में आता है अपने आप कुछ लिखा जाता है!

एक माँ कि पीडा …जो ना तो अपने बच्चो से कुछ कहे सकती है ……और ना ही अपने बडो को ….बड़े जो सब कुछ जानते हुए भी कुछ समझना नहीं चाहते,और …….बच्चे कुछ समझते नहीं है ……बस…ये ही सब कहने कि चेष्टा॥कि है मैंने ……….
दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू ….
वजूद पे उठे प्रश्नों का
कैसे मै समाधान करू ……
ये तो हर रात का किस्सा है ,
हर बात में मेरा भी हिस्सा है ,
हर रात कि मौत के बाद ….सुबह के जीने में मेरा भी हिस्सा है ,
फिर भी जीने से कोसो दूर हू मै॥
दर्द और तकलीफ लिए चलती चली ….
नयी और पुराणी पीढी ,के विचारो का
कैसे…मै ॥ मेल करू…..
दो भिन्न धारायो का,
कैसे मै मिलन करवाऊ ,
इन रिश्तो कि भीड़ में ……
दो किनारों के बीच
देखो…….मै सेतु बनी ……..
आदान प्रदान ॥की प्रक्रिया मे..
फिर एक माँ समंदर बनी ….
दिल मै दफ़न किये हर बात …
देखो मै जीती चली ………
क्या कहू और किस से कहू …
कि मै ॥चिलचिलाती धूप में भी ……..
सिर्फ एक बूंद पसीने ………….को भी तरसी ॥ …….
हर पल ये ही सोचती चली ……कि …..
दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू …………….
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विनोद बिस्सा जी की कविता ”असमंजस विनाशकारी”

इस कड़ी में अब हम जो कविता प्रकाशित कर है उसे अपने शब्दों से सजाया है विनोद बिस्सा जी ने ,विनोद जी की इस कविता ने शीर्ष पाँच में तीसरा स्थान प्राप्त किया है ! हम विनोद की को बहुत बहुत बधाई देते है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ,आप लोगों से आग्रह है की उनकी इस कविता पर अपनी राय के रूप में समीक्षा भेजें !

असमंजस विनाशकारी
प्रतिक्षण समय
भाग रहा
इस बात से
बेखबर
किस पथ
जाऊं मैं
पथिक
खड़ा सोच रहा
हर पलबे-फिकर
नहीं समझ
पा रहा वह
क्या उसने उचित
यह पथ चुना ?
जिस पथ को
वह ताके
सुख दुख
दोनो खड़े दिखें
दोराहे पर खड़ा
वह विस्मित
पूरा समय
युं ही खो दे
असमंजस विनाशकारी
ये बात
वह नहीं समझ रहा
हर पल
खोजने में सही पथ
पूरी ताकत झोंक रहा
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ विनोद बिस्सा

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शीर्ष पांच मे प्रथम स्थान हासिल करने वाली कविता

विनय जी की कविता-आम आदमी
प्रतियोगिता के अंतर्गत हम जो दूसरी कविता प्रकाशित कर रहे है वो है श्री विनय बिहारी सिंह जी की,यह हिन्दुस्तान का दर्द ब्लॉग के सक्रिय लेखक है ,इनके लेख अधिकतर धर्म से जुड़े होते है जिन्हें पसंद करने वालों की संख्या बहुत अधिक है !! इनकी कविता आम आदमी ने शीर्ष पाँच कविताओं में प्रथम स्थान बनाया है !तो विनय जी आपको हार्दिक बधाई और सभी पाठकों से आग्रह है की इस कविता पर अपनी राय देकर समीक्षा करें!!

इस कविता को पड़ने के लिए देखें :-
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