अभिलेख

जागोरे.कॉम – डाटा डकारने का महाघोटाला

टीवी पर आनेवाले विज्ञापन में आनेवाला वह नौजवान चाय पिलाकर लोगों को जगाता है. अच्छे-भले जीते जागते लोगों को सोता हुआ साबित करके वह मजबूर करता है कि अगर आप इलेक्शन के दिन वोट नहीं कर रहे हो तो आप सो रहे हो. कमाल की बात है. लोकतंत्रिक प्रक्रिया में किसी बड़ी कंपनी का इससे बढ़िया योगदान और क्या हो सकता है? लेकिन रूकिये. टाटा की इस दरियादिली और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की नीयत को समझने से पहले कुछ बातें और जान लीजिए.
राजनीति में युवाओं और खासकर शहरी युवावर्ग की भागीदारी हो इसकी चिंता इस विज्ञापन में साफ दिखती है. टाटा का जागोरे अभियान क्या केवल लोकतंत्र को मजबूत करने की कवायद है या फिर इसके पीछे का इरादा कुछ और है?
मेरे मन में इस अभियान को लकेर एक सवाल लगातार बना हुआ था. इसी सवाल को ध्यान में रखकर कई दिनों तक मैंने इस वेबसाईट का हर पहलू से परीक्षण किया है. अपने परीक्षण के दौरान मैंने पाया कि टाटा समूह जागोरे.कॉम के जरिए डाटा इकट्टा करने का महाघोटाला कर रहा है. जागोरे.कॉम का सारा प्रयास ज्यादा से ज्यादा डाटा इकट्ठा करना है. सब जानते हैं कि आज के इस आधुनिक तकनीकि युग में डाटा सोने की मानिंद कीमती हैं. जिस कंपनी के पास जितना अधिक डाटा है उसकी हैसियत उतनी ही अधिक आंकी जाती है. दुनिया की शीर्ष कंपनियां भी इसके लिए अपवाद नहीं है.
जागोरे.कॉम पर वोटर रजिस्ट्रेशन सिर्फ एक बहाना है. असली मकसद है विस्तार से लोगों के डाटा कलेक्ट करना जिसका उपयोग टाटा संन्स की कंपनियों के विस्तार के लिए किया जायेगा. सूचना तकनीकि के इस युग में विज्ञापन और प्रसार के तरीकों में पूरी तरह से बदलाव आ रहा है. नयी तकनीकि के कारण माध्यमों में भी तेजी से बदलाव आ रहा है. ऐसे में जो नये माध्यम आ रहे हैं उनमें कंपनी और उपभोक्ता के बीच सीधे संवाद बनाने और अपना बाजार विकसित करने के लिए जरूरी है कि आपके पास अधिक से अधिक डाटा भंडार हो. टाटा संस इस देश की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी है. हम तो इतना ही समझते हैं कि इसका उपयोग वे अपने प्रसार और प्रसार के लिए करेंगे लेकिन उद्येश्य कुछ और भी हो तो कहा नहीं जा सकता.
बहुत बार आपके फोन और ईमेल पर ऐसे काल्स और विज्ञापन आते हैं जिनके बारे में आप जानते तक नहीं है. ऐसे फोन और ईमेल का जरिया इसी तरह से आपकी डाटा चोरी का नतीजा होते हैं. विपणन और प्रचार की दृष्टि से भी कंपनियां इस बात के लिए नये-नये तरीके खोजती रहती हैं ताकि वे ज्यादा से ज्यादा नये लोगों में अपनी पैठ बनाकर रख सकें. मसलन आपने ऐसे विज्ञापन देखें होंगे जिसमें एक साबुन खरीदने पर किसी स्कूल को 25 पैसे दान में देने की बात कही जाती है. जाहिर सी बात है कंपनी का इरादा स्कूल चलाना नहीं होता है, हां, वह भावनात्मक रूप से आपको इसके लिए मजबूर जरूर कर देता है कि किसी स्कूल को 25 पैसा देने की नीयत से आप उस कंपनी को भरपूर फायदा पहुंचा देते हैं.
जागोरे.कॉम आपसे आपका नाम, ईमेल, पता, फोन नंबर और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां मांगते हैं और आखिर में आपसे आपके चुनाव क्षेत्र का कोड पूंछते हैं. अब आप ही सोचिए जो लोग पोलिंग बूथ तक नहीं जानते वे अपने चुनाव क्षेत्र का कोड कैसे जानते होंगे. खैर, वे आपको बताते हैं कि आपके चुनाव क्षेत्र के संबंध में जो भी जानकारियां होंगी वे आपको ईमेल पर भेजेंगे. मुझे तो आज तक उनका ईमेल नहीं आया. लेकिन इस पूरी कवायद में टाटा को क्या मिलता है? टाटा को व्यक्तिगत स्तर पर लोगों का सही-सही डाटा मिल जाता है. इससे एक बात और पता चल जाती है कि कितने लोग हैं जो इंटरनेट का उपयोग करते हैं राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने की इच्छा रखते हैं. आप ही सोचिए ऐसे डाटा का कितना बेहतर उपयोग हो सकता है? क्या कोई राजनीतिक दल इस प्रक्रिया को देख रहा होगा तो वह जागोरे.कॉम को संपर्क नहीं करेगा? ऐसे में यह पूरा अभियान कितना निष्पक्ष माना जा सकता है?
खैर, आनेवाले दिनों में जैसे जैसे इंटरनेट मार्केट बढ़ेगी डाटा उड़ाने के ऐसे और नये नये तरीके कंपनियां विकसित करेंगी और लोक, लोकतंत्र दोनों का ही उपयोग अपने फायदे के लिए करेंगी. यह लेख विस्फोट.कॉम से लिया गया है !
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