पुरालेख | दिसम्बर 2010

नया पुराना हुआ हे तो फिर नया तो आएगा ही

भाईयों बहनों जवानों और बुजुर्गों और जो भी हों सभी को इस नये साल की शुरुआत पर राम राम , आदाब अर्ज़ हे ,सत्सिरी अकाल , सभी को नववर्ष शुभ हो यह तो हुई ओपचारिकता अब हम कम की बात करें सब जानते हें के जो नया होता हे वोह पुराना होता हे , जो आता हे वोह जाता हे और सालों का आना जाना एक प्राणी परम्परा हे जीने की गणना गिनती हे लेकिन अब साल के आने जाने और साल के मिलन की रात को धमाचोकड़ी और धूमधाम जिसमे शराब और शबाब न हो तो सब बेकार हे की सोच बन गयी हे क्या यह सही हे क्या यह गलत हे जरा अपने दिल पर हाथ रखो और दिल से पूंछ डालो जनाब जो जवाब मिले बताना जरुर ।
दोस्तों मेरे भी सीने में एक बीमार दिल हे जो कभी कभार धडकता हे मेने इसीलियें अपने सीने पर हाथ रखा धक धक के आलावा कुछ सुनाई नहीं दिया फिर दिमाग से आवाज़ आई के यह सब जो हो रहा हे दिखावा हे छलावा हे गलत हे , दुबारा जवाब आया सही यही हे , विश्व की बात तो छोड़े देश की परम्परा की बात करें हमारे देश में हम काहे कई सो वर्ष तक अंग्रेजों के गुलाम रहे हों लेकिन अपना धर्म अपनी परम्परा हमने नहीं बदली हे हाँ कुछ शोक हें जो हमे पला लिए हें हेपी निव इयर भी इसीस में से एक हे , हम जानते हें के जो पुराना वक्त हे उस वक्त को हमने इज्जत नहीं दी हमने कोई प्लान नहीं किया जो प्लान किया उसे पूरा नहीं किया और देखते ही देखते तेरी मेरी में यह साल निकल गया और फिर नया आ गया हमारी जिंदगी का एक साल कम हो गया , दोस्तों अगर हम वक्त की कीमत समझ लें किसिस शायर के इस कथन के वक्त करता जो वफा आप हमारे होते , यह समय चक्र हे वक्त रुकता नहीं वक्त चलता रहता हे इस सच्चाई को समझ लें तो बात ही कुछ और हो हमारे देश के कानून से जुड़े लोगों ने इसे समझा ओर इस मामले में वक्त गुजर जाने पर कोई भी कार्यवाही से लोगों को रोक दिया गया और इसके लियें अलग से वक्त का कानून जिसे मियाद अधिनियम या लिमिटेशन एक्ट कहा गया ।
तो दोस्तों नया साल आया हे अब सोचें के हमने इस गुजरने वाले साल में किया खोया किया पाया ऐसा क्या छुट गया जिसे हम हांसिल कर सकते थे लेकिन हमारी कमजोरी या लापरवाही से हमारे हाथ से छीन गया ऐसे कितने लोग हें जिन्हें हमने बिना किसी वजह के दुश्मन बना लिया हमने ऐसे कितने खर्च किये जो अनावश्यक थे इन सब का लेखा जोखा हमें करना होगा नये साल में हमें एक नया केलेंडर एक नई प्लानिंग तय्यार करना होगी जिसे समयबद्ध बना कर इस नये साल में पूरी करने का संकल्प करा होगा केवल नाच गाने जश्न यह सब तो बेमानी हे हाँ अगर हम अपने जीवन में कामयाब हुए हें अगर हमने जो सोचा वोह किया हे अगर हमने समाज में खुद को स्थापित किया हे अगर हमने देश के लियें समाज के लियें कुछ यादगार किया हे तो हमे इस साल के जाने और नये दल के आने के मिलन के वक्त पर जश्न मनाने का हक हे वरना जो सब कर रहे हें अगर वोह हम करते हें तो फिर बताओ हम लोग क्या सही क्या गलत कर रहे हें यह तो हमें ही सोचना होगा तो दोस्तों एक बार फिर जरा सोचो कलम उठाओ या फिर डायरी उठाओ लेब्तोप उठाओ और बनाओ भविष्य की देश के हित में योजना खुद के और खुद के परिवार समाज के उत्थान की योजना देखो ऐसा सपना जिसे इस नये साल में इस नये साल के पुराना होने के पहले ही हम इन सपनों को साकार करें और साल के हम स्टार कहलायें क्या कर सकेंगे ऐसा हम हाँ अगर आज से आज से क्या अभी से हमने यह सब संकल्प ले लिया तो समझों कामयाबी दूर नहीं हे इसलियें अभी तो केवल हेपी निव इयर और फिर कामयाबी के बाद अगर में जिंदा रहा तो फिर मिलेंगे और गले मिल कर कहेंगे सब कुछ हेपी हेपी हे और आल इज वेल्ल आल इज वेल्ल । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

लाइव ट्रेलर को भी आप सब प्यार दें.

हिन्दुस्तान का दर्द मंच का निर्माण लगभग 2 साल पहले किया गया था,इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी के लेखकों एवं पाठकों को एक ऐसा मंच उपलब्ध करना था जो की रचनात्मकता से भरा हो जो देश की समस्याओं एवं दर्द की बात करता हो,अभी तक अगर दिल पर हाथ रखकर कहूं तो हिन्दुस्तान का दर्द उम्मीदों पर खरा उतरा है लेकिन सारे लक्ष्य अभी यहाँ पूरे नहीं होते,इसके लिए अभी हम सब को मिलकर काफी कुछ करना है और बह हम करके ही रखेंगे.

अब हम बात करते है लाइव ट्रेलर   की यह एक ऐसा ब्लॉग है जिसके माध्यम से हम सिनेमा की ख़बरों को आप तक पहुँचाएँगे लेकिन यह एक सामूहिक ब्लॉग नहीं है यहाँ हम सिर्फ उन लेखकों की बात सुन सकेंगे जो सिनेमा की सार्थकता को एक पूर्णता के साथ कहने की कला रखते हो,सिनेमा के इतिहास और विकास के बारें में गहरी बात बता सकते हो..

आप  लोगों से हम एक और आशा करते है की हिन्दुस्तान का दर्द और लाइव ट्रेलर को अपने ब्लॉग पर जगह दें जिससे की हमारी कोशिश अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सकें..

स्वागत 2011

चली चली देखो चली चली 
इतिहास के पनों मै अपना नाम …………….
दर्ज करने 2010 चली  !
सुख – दुख का पिटारा 
हमको देकर …………
वो देखो…वो  अपने देश चली !
कहाँ हम भूलेंगे अब उसको 
हमने ही तो जोड़ा था उसको 
जेसे पतंग  संग डोर बंधी , 
चली – चली , चली – चली 
देखो वो तो हमसे कितनी दूर चली !
कितना समर्पण उसमे देखो 
अपना सब कुच्छ हमको सोंप 
वो ख़ाली हाथ ही पार गई 
चली चली , चली चली 
बिटिया बन वो तो  ससुराल चली !
न घमंड न कोई बेर 
बस इंसा की ये हाथों की मेल  
सबको सब कुच्छ दे ही दिया  
फिर से दामन अपना समेट 
इस दुनियां से नाता  तोड़ चली  
चली चली  , चली  चली
2011 को अपना काम सोंप चली !
कानों मै चुप से स्वागत ही  कहा 
फिर अपना दामन धीरे से छुडा …………
2011  के शोर मै खो सी गई ! 
देखो तो वो सच मै चली चली  !
आओ हम भी कुच्छ ………..
एसा करे 2010  को प्यार से
अलविदा कहें !
नव वर्ष के स्वागत मै लगें !
बधाई दोस्तों !

संस्‍कृतपृष्‍ठसंकलक पर इस माह प्रस्‍तुत लेखों की सूची ।।

प्रिय बन्‍धु 

आपके अपने संस्‍कृतपृष्‍ठसंकलक संस्‍कृतम्-भारतस्‍य जीवनम् पर इस माह प्रकाशित लेखों की सूची प्रस्‍तुत कर रहा हूँ  ।।

बृहस्पतिवार, ३० दिसम्बर २०१०

नूतनस्य आगमने पुरातनस्य उपेक्षा न भवेत् ।

मंगलवार, २१ दिसम्बर २०१०

श्री हनुमते नम:

सोमवार, २० दिसम्बर २०१०

संस्‍कृतपरिवार: महती शुभकामना: ददाति ।-राष्‍ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट)

रविवार, १९ दिसम्बर २०१०

शिव स्‍तुति: ।

बृहस्पतिवार, १६ दिसम्बर २०१०

राष्‍ट्रसेवाया: कृते पन्‍थाह्वानम् ।।

बुधवार, १५ दिसम्बर २०१०

रुप्यकैः मनःशान्तिः ।

सोमवार, १३ दिसम्बर २०१०

गोष्ठी् आयोजिता –संस्कृ्तभारती (विश्व-संस्कृत-पुस्तकमेला 


शुक्रवार, १० दिसम्बर २०१०

बृहस्पतिवार, ९ दिसम्बर २०१०

वैदेशिका: अपि प्रार्थनायां भागं गृहीतवन्त

मंगलवार, ७ दिसम्बर २०१०

धनानन्दस्य दानानन्दः

एकम् अद्भुतं कीर्तिमानम्

शुक्रवार, ३ दिसम्बर २०१०

एकं अतिमधुरं गीतम् – श्री हनुमत स्‍तुति: ।

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प्रस्‍तुत लेखों पर अपने विचार प्रकट करके हमारा मार्गदर्शन करें  । 
भवदीय: – आनन्‍द:

परमार्थ ..श्याम सवैया..-डा श्याम गुप्त…

वर्ष की अंतिम पोस्ट—परमार्थ को यदि हम जीवन लक्ष्य बनाएं तो सभी उपलब्धियों की महत्ता है —


श्याम सवैया ….परमार्थ….

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(श्याम सवैया छंद—६ पन्क्तियां )

प्रीति मिले सुख-रीति मिले, धन-मीत मिले, सब माया अजानी।

कर्म की,धर्म की,भक्ति की सिद्धि-प्रसिद्धि मिले सब नीति सुजानी।

ज्ञान की,कर्म की,अर्थ की रीति,प्रतीति सरस्वति-लक्ष्मी की जानी।

ऋद्धि मिली,सब सिद्धि मिलीं, बहु भांति मिली निधि वेद बखानी

सब आनन्द प्रतीति मिली, जग प्रीति मिली बहु भांति सुहानी

जीवन गति सुफ़ल सुगीत बनी, मन जानी, जग ने पहचानी


जब सिद्धि नहीं परमार्थ बने, नर सिद्धि-मगन अपने सुख भारी ।

वे सिद्धि-प्रसिद्धि हैं माया-भरम,नहिं शान्ति मिले,बहुविधि दुखकारी।

धन-पद का,ग्यान व धर्म का दम्भ,रहे मन निज़ सुख ही बलिहारी।

रहे मुक्ति के लक्ष्य से दूर वो नर,पथ-भ्रष्ट बने वह आत्म सुखारी।

यह मुक्ति ही नर-जीवन का है लक्ष्य,रहे मन,चित्त आनंद बिहारी।

परमार्थ के बिन नहिं मोक्ष मिले, नहिं परमानंद न कृष्ण-मुरारी॥


जो परमार्थ के भाव सहित, निज़ सिद्धि को जग के हेतु लगावें ।

धर्म की रीति,औ भक्ति की प्रीति,भरे मन कर्म के भाव सजावें ।

तजि सिद्धि-प्रसिद्धि बढें आगे,मन मुक्ति के पथ की ओर बढावें ।

योगी हैं, परमानंद मिले, परब्रह्म मिले, वे परम-पद पावें

चारि पदारथ पायं वही, निज़ जीवन लक्ष्य सफ़ल करि जावें

भव-मुक्ति यही, अमरत्व यही, ब्रह्मत्व यही, शुचि वेद बतावें॥


तिरंगे की रक्षा करना

दोस्तों
बस
इतनी सी बात
आँधियों को
बता कर रखना
रौशनी होगी
इसलियें आँधियों में भी
चिरागों को
जलाए रखना
अपनी जान
अपना लहू देकर
हिफाजत की हे
हमने जिसकी
बस उस हिन्दुस्तान को
बनाये रखना
इसकी शान, बान ,आन हे तिरंगा
इस तिरंगे को दोस्तों
अपने दिल में
बसाये रखना ।
नया साल बहुत बहुत मुबारक हो ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

अब तो अपनी चवन्नी भी चलना बंद हो गयी यार

दोस्तों पहले कोटा में ही किया पुरे देश में अपनी चवन्नी चलती थी क्या अपुन की हाँ अपुन की चवन्नी चलती थी ,चवन्नी मतलब कानूनी रिकोर्ड में चलती थी लेकिन कभी दुकानों पर नहीं चली , चवन्नी यानी शिला की जवानी और मुन्नी बदनाम हो गयी की तरह बहुत बहुत खास बात थी और चवन्नी को बहुत इम्पोर्टेंट माना जाता था इसीलियें कहा जाता था के अपनी तो चवन्नी चल रही हे ।
लेकिन दोस्तों सरकार को अपनी चवन्नी चलना रास नहीं आया और इस बेदर्द सरकार ने सरकार के कानून याने इंडियन कोइनेज एक्ट से चवन्नी नाम का शब्द ही हटा दिया ३० जून २०११ से अपनी तो क्या सभी की चवन्नी चलना बंद हो जाएगी और जनाब अब सरकरी आंकड़ों में कोई भी हिसाब चवन्नी से नहीं होगा चवन्नी जिसे सवाया भी कहते हें जो एक रूपये के साथ जुड़ने के बाद उस रूपये का वजन बढ़ा देती थी , दोस्तों हकीकत तो यह हे के अपनी तो चवन्नी ही क्या अठन्नी भी नहीं चल रही हे फिर इस अठन्नी को सरकार कानून में क्यूँ ढो रही हे जनता और खुद को क्यूँ धोखा दे रही हे समझ की बात नहीं हे खेर इस २०१० में नही अपनी चवन्नी बंद होने का फरमान जारी हुआ हे जिसकी क्रियान्विति नये साल ३०११ में ३० जून से होना हे इसलियें नये साल में पुरे आधा साल यानि जून तक तो अपुन की चवन्नी चलेगी ही इसलियें दोस्तों नया साल बहुत बहुत मुबारक हो ।
नये साल में मेरे दोस्तों मेरी भाईयों
मेरे बुजुर्गों सभी को इज्जत मिले
सभी को धन मिले ,दोलत मिले ,इज्जत मिले
खुदा आपको इतना ताकतवर बनाये
के लोगों के हर काम आपके जरिये हों
आपको शोहरत मिले
लम्बी उम्र मिले सह्तयाबी हो
सुकून मिले सभी ख्वाहिशें पूरी हो
जो चाहो वोह मिले
और आप हम सब मिलकर
किताबों में लिखे
मेरे भारत महान के कथन को
हकीकत में पूरा करें इसी दुआ और इसी उम्मीद के साथ
आप सभी को नया साल मुबारक हो ॥ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

आओ मेरे आगंतुक हम स्वागत को तैयार॥है…हम भी तो तेरे यार है..हम भी…

नैके सलवा मा नशा हम छोड़ देबय॥
बिन फ़ोकट बिमारी नहीं लेबय॥
गाल मुह सूख गैले,, होय गहे बुढ़वा ॥
हमका घेर्रावय काल वाला पड़वा॥
दारू गांजा से दूर रहवे ..नैके सलवा मा नशा हम छोड़ देबय॥
सब कुछ देख लीं मज़ा नहीं येहमा॥
बहुत बुरायी होत फंस गए गेह मा॥
सब का शिक्षा ईहे हम देबय॥
नैके सलवा मा नशा हम छोड़ देबय॥

आओ मेरे आगंतुक हम स्वागत को तैयार॥
हम भी तो तेरे यार है हम भी तेरे यार है…

छिद्रान्वेषण—डा श्याम गुप्त …लर्न बाय फन , रिमी सेन व महा संग्राम…

छिद्रान्वेषणको प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है , इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है…(faultfinding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वरप्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते , ‘निंदक नियरे राखिये….’ नकारात्मक भावों से ….. आदि आदि मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है आज का छिद्रान्वेषण —-
-1— समाचार के अनुसार –एक अच्छा प्रयोग पहल—श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक ‘लर्न बाई फन’ ( एल बी ऍफ़ )–का खूब प्रयोग होरहा है–अध्यापक लोग खूब पढ़ा रहे हैं ,( हमें नहीं पता इसके कितने सकारात्मक परिणाम होंगे , हां उनकी पुस्तक तो खूब बिक ही जायगी तब तक ….) …हां एक बात छिद्रान्वेषण की है कि क्या अंग्रेज़ी नाम लर्न बाय फनही रखा जाना चाहिए ? क्या इससे छात्रों भविष्य के नागरिकों के मन में यह बात नहीं पैठ करेगी कि अंग्रेज़ी सिस्टम ( चाहे वह सिस्टम अग्रवाल जी का अपना ही क्यों हो पर नाम अंग्रेज़ी है ) अंग्रेज़ी ही कारगर है उसके बिना इस देशसमाज का कार्य नहीं चलसकता.……..तथा फनसब कुछ फन आधारित है, अध्ययन में गहनता, गुरु गंभीरता , सहज़ता का कुछ अर्थ नहीं ( जिसके लिए भारतीय समाज ज़ाना जाता था है ) तभी तो आज जो फन( देर रात तक घूमना, धूमधडाका, बॉयगर्ल फ्रेंड बनाने की अत्यावश्यकता , अतिमनोरंजन,खेळ , मस्ती आदि की अनंत सूची…) के नए नए आयाम दिखाई पड़ रहे हैं और वे सब अच्छे आवश्यक ही होते होंगे, अतः अवश्य ही प्राथमिकता से अपनाना चाहिए ।
-२- स्कूलों का महासंग्राम —एक अच्छा प्रयास है छात्रों में आत्मविश्वास उत्पन्न करने का आदि …..परन्तु क्या महा संग्राम शब्द बच्चों के लिए उचित है तथा सिने तारिका रिमी सेन का वहां होना आवश्यक था…क्यों ..सिने तारिकाओं अभिनेताओं का शिक्षा जगत व उसके कार्यक्रमों, उद्घाटनों में भाग लेने से क्या यह सन्देश नहीं जाता कि वे उनके चालचलन, पहननाओड़नाअनुकरणीय हैं, तभी तो गुरुजनों ने उन्हें इतना मान दिया है, समारोह का मुख्य अतिथि आदि बनाकर …..

—-इसे कहते हैं अच्छे प्रयासों का भी गुडगोबर करना , यह दूरदर्शिता के अभाव का फल होता हैतथा समाज परअभी भी विदेशी चश्मा चढ़ा होने का प्रभाव….



डा. बिनायक सेन को उम्र कैद के बाद प्रधानमंत्री को नींद कैसे आ रही है?

विरोध प्रदर्शन नहीं होते तो आज जेसिका, प्रियदर्शिनी और रुचिरा के हत्यारे जेल में नहीं होते

डा. बिनायक सेन को देशद्रोह के आरोप में उम्र कैद की सजा पर कुछ बुद्धिजीवियों का तर्क है कि यह फैसला कोर्ट का है. कोर्ट की सबको इज्जत करनी चाहिए. अगर आप फैसले से सहमत नहीं हैं तो ऊँची कोर्ट में जाइये लेकिन कोर्ट के फैसले के खिलाफ सड़क पर विरोध मत करिए. उनका यह भी कहना है कि कोर्ट के फैसले के विरोध से देश में अराजकता फ़ैल जायेगी और इसका सबसे अधिक फायदा सांप्रदायिक फासीवादी शक्तियां उठाएंगी.

कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे बुद्धिजीवी या तो बहुत भोले हैं या फिर बहुत चालाक. वैसे सनद के लिए बताते चलें कि ठीक यही तर्क देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा का भी है. लेकिन सोमवार को जंतर-मंतर पर बिनायक सेन को सजा देने के खिलाफ आयोजित प्रदर्शन के दौरान अरुंधती ने बिल्कुल ठीक कहा कि सबसे बड़ी सजा तो खुद न्याय प्रक्रिया है. मतलब यह कि डा. सेन दो साल पहले ही जेल में रह चुके हैं. अब हाई कोर्ट में जमानत के लिए लडें और जीवन भर मुक़दमा लड़ते रहें.

सचमुच, इससे बड़ी सजा और क्या हो सकती है कि ६१ साल की उम्र में डा. सेन इस कोर्ट से उस कोर्ट और इस जेल से उस जेल तक चक्कर काटते रहें? क्या यह याद दिलाने की जरूरत है कि भ्रष्ट और निरंकुश सत्ताएं, उनपर उंगली उठानेवालों या जनता के लिए लड़नेवालों को पुलिस की मदद से जेल-कोर्ट-कचहरी के अंतहीन यातना चक्र में कैसे फंसाती रहती हैं?

ऐसे एक नहीं, सैकड़ों उदाहरण हैं. आज भी पूरे देश में सैकड़ों बिनायक सेन सत्ता और पुलिस के षड्यंत्र और कोर्ट की मुहर के साथ जेलों में सड़ रहे हैं. इनमें जन संगठनों से लेकर कथित आतंकवादी संगठनों के लोग शामिल हैं. इसके अलावा हजारों निर्दोष नागरिक हैं जो पुलिसिया साजिश के कारण बरसों-बरस से जेल-कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं.

लेकिन इससे किसी की नींद खराब नहीं हो रही है. प्रधानमंत्री आराम से सोये हुए हैं. याद कीजिये, जब २००७ में आस्ट्रेलिया पुलिस ने भारतीय डाक्टर मोहम्मद हनीफ को ग्लासगो बम विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किया था, तब पूरे देश में फूटी गुस्से की लहर के बाद मनमोहन सिंह ने कहा था कि ‘ (डा. हनीफ की गिरफ़्तारी के बाद) वे रात में सो नहीं पाते.’ ताजा खबर यह है कि आस्ट्रेलिया ने न सिर्फ डा. हनीफ से गलत केस में फंसाए जाने के लिए माफ़ी मांगी है बल्कि उन्हें मुआवजा देने का भी एलान किया है.

लेकिन कहना मुश्किल है कि डा. बिनायक सेन की गिरफ़्तारी के बाद प्रधानमंत्री को नींद कैसे आ रही है? असल में, जिसके पास थोड़ी सी भी बुद्धि है और उसने उसे सत्ता और पूंजी के पास गिरवी नहीं रखा है, वह डा. सेन को देशद्रोह के आरोपों में उम्र कैद की सजा पर चुप नहीं रह सकता है. वैसे ही जैसे बहुतेरे बुद्धिजीवियों और संपादकों ने जेसिका लाल, प्रियदर्शिनी मट्टू, रुचिका गिरहोत्रा जैसे मामलों में निचली अदालतों के अन्यायपूर्ण फैसलों पर खुलेआम अपना गुस्सा जाहिर किया था. देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए थे और जनमत के दबाव में ताकतवर लोगों द्वारा न्याय का मजाक बनाये जाने की प्रक्रिया पलटी जा सकी थी.

कहने की जरूरत नहीं है कि अगर वे विरोध प्रदर्शन नहीं हुए होते और लोगों का गुस्सा सड़क पर नहीं आता तो जेसिका, प्रियदर्शिनी और रुचिरा के हत्यारे सम्मानित नागरिकों की तरह आज भी घूम रहे होते..

सचमुच, आश्चर्य की बात यह नहीं है कि डा. बिनायक सेन जेल में क्यों हैं बल्कि यह है कि हम सब बाहर क्यों हैं? कई बार ऐसा लगता है, जैसे पूरा देश ही एक खुली जेल में तब्दील होता जा रहा है जहाँ सच बोलना मना है…सच बोलने का मतलब है- खुली जेल से बंद जेल को निमंत्रण.