अभिलेख

एक बार फिर से धर्म के नाम पे लोगो को काटने को तयारी

क बार फिर से धर्म के नाम पे लोगो को काटने कि तयारी कर रही है BJP. बकवास , राजनाथ सिंह बेवाकुफ्फ़ बनाना चाहते हैं ,वो सोच रहे हैं की लोग इस बकवास के पचडे में पड़ने के लिए वोट देंगे , ये B.J.P. की सबसे बड़ी गलती है . आब पब्लिक समझदार हो गई है और मुझे लगता है की BJP हमेसा k लिए गायब हो जायेगी . धर्म की राजनीति करके ये लोग na सिर्फ़ पार्टी बल्कि हमारे भारत देश का भी नाम ख़राब क़र रहे हैं ये लोग . मुझे लगता है ये लोग दिमागी तौर से बीमार हैं , इन्हे चेयर की नही मेंटल हॉस्पिटल की जरूरत है . धर्म के नाम पे कई सारे संघ बन गए हैं जिनमे 99% आतंकवादी वाले काम करते हैं , जैसे अभी मंगलोर में राम सेना ने जो किया वो बहूत ही सर्म्नक था . संघ का नाम राम सेना और भगवन राम के आदर्शो को ही भूल गए ? . और वो दूसरा वो ढोंगी बाबा मलेगओं ब्लास्ट वाला – आब उसे कौन समझाए की “साधू ” का मतलब “अच्छा ” होता है .कोई तो समझाए BJP को की ये भड़काऊ बयां न दे , इससे राजनाथ जैसे नेता को तो कुछ नही होगा लेकिन जो “आम आदमी ” है उनकी जिंदगी में समस्याएं बढ़ जायेगी । में लोगो से भी गुजारिश करूँगा की लोग सावधान हो जाए और किसी और की बात ना सुन के अपना फैसला ख़ुद ले . आगे पढ़ें के आगे यहाँ

कितने पाकिस्तान


पंकज श्रीवास्तव
एसोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर

जिनके पास सामान्य ज्ञान बढ़ाने का एकमात्र जरिया समाचार चैनल रह गए हैं, उनका हैरान होना लाजिमी है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि ये कैसा पाकिस्तान है। सड़कों पर लाखों की भीड़। हवा में जम्हूरियत और आजादी के तराने। स्वात में शरिया लागू होने की गरमा-गरम खबरों की बीच अचानक आजाद न्यायप्रणाली के पक्ष में ये तूफान कैसे उठ गया! बिना खड्ग-बिना ढाल, बस जुल्फें लहराकर काले कोट वालों ने ये कैसा कमाल कर दिया। सेना खामोश रही। पुलिस भी कभी-कभार ही चिंहुकी…और इफ्तेखार चौधरी चीफ जस्टिस के पद पर बहाल हो गए!


पाकिस्तान के इतिहास को देखते हुए ये वाकई चमत्कार से कम नहीं। आम भारतीयों को इस आंदोलन की कामयाबी की जरा भी उम्मीद नहीं थी। सबको लग रहा था कि लॉंग मार्च बीच में ही दम तोड़ देगा। जरदारी जब चाहेंगे आंदोलनकारियों को जेल में ठूंस देंगे। 16 मार्च को इस्लामाबाद पहुंचना नामुमकिन होगा। ये भी बताया जा रहा था कि लांग मार्च में तालिबानी घुस आए हैं। कभी भी धमाका हो सकता है। लॉंग मार्च में मानव बम वाली खबर भी अरसे तक चीखती रही। लेकिन गिद्दों की उम्मीद पूरी नहीं हुई। पाक सरकार के गुरूर ने जरूर दम तोड़ दिया। प्रधानमंत्री गिलानी को टी.वी. पर अवतरित होकर मांगे मानने का एलान करना पड़ा। साथ में सफाई भी कि पहले मांगें क्यों नहीं मानी गईं।


इस तस्वीर ने साफ कर दिया कि पड़ोसी पाकिस्तान के बारे में हमारी जानकारी कितनी अधूरी है। सरकारों और समाचार माध्यमों को जरा भी रुचि नहीं कि वे पाकिस्तान की पूरी तस्वीर जनता के सामने रखें। उनके लिए तो स्वात पूरे पाकिस्तान की हकीकत है। जहां हर आदमी कंधे पर क्लाशनिकोव उठाए निजाम-ए-मुस्तफा लागू करने के लिए जिहाद में जुटा है। जहां औरतें हमेशा बुरके में रहती हैं। गाना-बजाना बंद हो चुका है। बच्चों को आधुनिक स्कूलों में भेजना मजहब के खिलाफ मान लिया गया है और साइंस और मडर्निटी की बात करना भी गुनाह है। बताया तो ये भी जा रहा था कि तालिबान लाहौर के इतने करीब हैं कि भारतीय सीमा पर भी खतरा बढ़ गया है। वे जब चाहेंगे कराची पर कब्जा कर लेंगे और इस्लामाबाद को रौंद डालेंगे। पाकिस्तान की ये तस्वीर बेचकर गल्ले को वोट और नोट से भरने का रास्ता मिल गया था।


लेकिन पूरे पाकिस्तान से इस्लामाबाद की ओर बढ़ने वाले कदम तालिबान के नहीं, उस सिविल सोसायटी के थे जो पाकिस्तान की तस्वीर बदलने के लिए अरसे से तड़प रही है। इनमें मर्द, औरत, बूढ़े, जवान, यहां तक कि बच्चे भी थे। न इन्हें बंदूकों का खौफ था न ही भीड़ के बीज फिदायीन के घुसने की आशंका। काले कोट पहने नौजवान वकला की भारी भीड़ हर तरफ से उमड़ी आ रही थी। इनमें बड़ी तादाद में महिला वकील भी थीं। पुरजोश और इंकलाबी अंदाज से भरी हुई। सब झूम-झूमकर नारे लगा रहे थे और भंगड़ा डाल रहे थे। अखबार और न्यूज चैनल के पत्रकारों का जोश देखकर लग रहा था गोया कोई जंग जीतने निकले हों। ये अहिंसक आंदोलन आजादी के पहले उस दौर की याद दिला रहा था जब लाहौर और कराची में करो या मरो और अंग्रेजों भारत छोड़ो जैसे नारे गूंजते थे। न लाठियों का खौफ था और न गोलियों का। आज तालिबान का गढ़ माने जाने वाले सीमांत इलाके के पठान लाल कुर्ती पहनकर महात्मा गांधी की जय बोल रहे थे। जिन्हें हिंसक कबायली कहकर प्रचारित किया गया था उनके इस अहिंसक रूप को देखकर दुनिया को यकीन नहीं हो रहा था। तब वे खुदाई खिदमतगार कहलाते थे।


भारत में देश की व्यवस्था बदल देने का ऐसा जोश दशकों से देखने को नहीं मिला। 34 साल पहले इमरजेंसी के खिलाफ जनता ने अपने जौहर दिखाए थे। थोड़ी बहुत सुगबुगाहट वी.पी.सिंह ने भी पैदा की थी। लेकिन संपूर्ण क्रांति का नारा भ्रांति साबित हुआ और वी.पी.सिंह के सामाजिक न्याय का रथ जातिवादी कीच में धंसकर अपनी तेजस्विता खो बैठा। इसके बाद तो मनमोहनी अर्थशास्त्र ने ऐसा जादू चलाया कि राजनीति के हर रंग ने समर्पण कर दिया। इस जादू पर मुग्ध मध्यवर्ग देखते-देखते गले तक कर्ज में डूब गया। उसकी जिंदगी में किसी सपने के लिए जगह ही नहीं बची। इस खुमार के टूटने की शुरुआत अब हुई है जब मंदी का जिन्न दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।


ऐसे में, पाकिस्तान में जनउभार देखना वाकई सुखद था। इसने फिर साबित किया कि जनज्वार के सामने बड़ी से बड़ी सत्ता बेमानी हो जाती है। टी.वी.पर इन दृश्यों को देखकर न जाने कितनी बार मुट्ठियां भिचीं और नारे लगाने का मन हुआ। पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि ये अपनी ही लड़ाई है। ये वो पाकिस्तान कतई नहीं है जिसके खिलाफ बचपन से जवानी तक घुट्टी पिलाई गई है। ये लोग जिस व्यवस्था के हक में खड़े हैं उसमें लड़कियों को पढ़ने की पूरी आजादी है, अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार की सुरक्षा का वादा है, क्रिकेट और संगीत के लिए पूरी जगह है। फैज हैं, फराज हैं, मंटो हैं, नूरजहां हैं गुलाम अली हैं, मेहंदी हसन हैं। साइंस के इदारे है और मोहब्बत का जज्बा भी। हां गुस्सा भी है, अपने कठपुतली हाकिमों और उस अमेरिका के खिलाफ जिसने इस देश की संप्रभुता को तार-तार कर दिया है। (बची किसकी है?)


साफ है कि पाकिस्तान के हालात काफी जटिल हैं। एक तरफ वहां बार-बार सत्ता पलट करने वाली सेना है तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार से देश को खोखला करने वाले राजनेता। मजहबी राज बनाने में जुटे कठमुल्लाओं की जमात है तो पाकिस्तान को आधुनिक स्वरूप देने की जद्दोजहद में जुटी सिविल सोसायटी भी। इन सबके बीच जम्हूरियत का जज्बा लगातार मजबूत हो रहा है। इसीलिए जनरल कियानी ने तख्ता पलट की जुर्रत नहीं हुई। उलटा उन्होंने गिलानी और जरदारी को समझाया कि जनदबाव के आगे सिर झुकाएं। पाकिस्तान में हो रही इस नई सुबह को नए सिरे से समझने की जरूरत है।


इसमें क्या शक कि मुंबई में आकर मौत बरसाने वाले आतंकी पाकिस्तान की जमीन से आए थे। कसाब को छोड़कर सबको मार गिराया गया। पर रक्तबीज की तरह पाकिस्तान में इनकी तादाद न बढ़े इसकी गारंटी सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान की सिविल सोसायटी कर सकती है। और मार्च 2009 में उसने जो तेवर दिखाया, उससे साफ है कि उसके पास इसका माद्दा है। पाकिस्तानी न्यूज चैनलों ने जिस तरह पहले मुंबई हमले को लेकर कसाब की असलियत खोली और फिर लाहौर में श्रीलंका टीम पर हुए हमलावरों को बेनकाब किया, उसने इसे बार-बार साबित किया है। इसलिए जरूरत इस जज्बे को सराहने की है, सलाम करने की है। जम्हूरियत की मजबूती ही उपमहाद्वीप को आतंकवाद से मुक्त कर सकता है।


पढ़ें के आगे यहाँ

करियर बनाने के नाम पर खुल रही हैं जिस्मफरोशी की दुकानें!

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर एक कार्यक्रम देख रहा था- ‘द लार्ज प्लेन क्रैश’। इसमें दिखा रहे थे कि एवीयेशन कैरियर कितना जोखिम भरा है किसी पायलट के उपर प्लेन उड़ाते हुए कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है। एक जरा सी चूक बड़े हादसे का कारण बन सकती है। यहां केवल उन्हीं लोगों को रखा जाता है जो इसके लिये डिजर्व करते हैं, और इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने का साहस, समझदारी, योग्यता रखते हैं। इस इण्डस्ट्री के लिये योग्य पात्रों का चयन कई फिल्टर प्रक्रियाओं के बाद ही हो पाता है। कुल मिलाकर यह एक शानदार प्रक्रिया है जो जरूरी भी है।
अब बात करते है निजी स्वार्थ की खातिर किस तरह से इस बेहद जिम्मदारी वाले काम को ग्लैमर से जोड़कर वास्तविकताओं से मुंह मोड़ लिया गया है, और धोखाधड़ी करने के नये तरीके को अपनाया गया है। मेरठ कोई खास बड़ा शहर नही है और न ही अभी मेट्रो सिटी होने की राह पर चला है। इस शहर में अय्याशी और जिस्मफरोशी के नये-नये तरीकों को परोसने वाली दुकानें अब एवीयेशन इण्डस्ट्री में कैरियर बनाने की आड़ में चलने लगी हैं।
यहां एवीयेशन फील्ड में करियर बनाने के नाम पर बहुत सारे छोटे बड़े इंस्टीट्यूट खुल गये हैं जो लड़के-लड़कियों का दाखिला मोटी फीस वसूल करके कर रहे हैं। यहां ये लोग छात्रों को नये नये सपने दिखाते हैं और पूरे साल के पाठ्यक्रम में उन्हें केवल सजना संवरना ही सिखाते हैं कि आप अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाओ, बेहद चमकीला बनाओ। अगर कोई आपको देखे तो बस देखता ही रह जाये। इन सस्थानों में छात्रों को फ्लाइंग स्टूअर्ट, होस्ट मैनजमेन्ट, पब्लिक रिलेशन जैसी पोस्ट के लिये तैयार करते है। इसका पूरा पाठय्‌क्रम केवल भाषा, व्यक्तित्व, आवरण, तौर-तरीके पर ही सिमट कर रह जाता है। अब चूंकि बच्चे एक-एक लाख, अस्सी हजार, सत्तर हजार रुपये (यह फीस नामी संस्थान लेते हैं, छोटे-मोटे लोकल संस्थान केवल तीस, चालीस हजार रूपये में भी ये कोर्स करा रहे हैं) खर्च करके ये कोर्स करते है। इन संस्थानों का वातावरण बेहद गलैमर्स होता है। यहां बच्चों को फैशन, बनाव सिंगार के तौर-तरीके तो संस्थान सिखाता है लेकिन बच्चे इस खुले वातावरण में इनसे भी आगे की चार बातें सीखकर अपने जीवन में अपना रहे है।
आगे पढ़ें के आगे यहाँ सब नई उमर के लड़के-लड़कियां हैं जो आपस में एक दूसरे को हर तरह से जान लेते हैं और सारी वर्जनाए और सीमाएं तोड़ देते हैं। इस तरह के कल्चर को यह संस्थान प्रमोट भी करते हैं और स्पेस व सुविधाएं भी मुहैया कराते हैं। यहां बच्चों का आपसे में एक दूसरे के प्रति शारीरिक संबंध बना लेना आम बात है क्योंकि उत्तेजक माहौल उन्हें यह सब करने को प्रेरित करता है। अब इसके बाद आता है अगला पड़ाव। मां-बाप ने बच्चों को महंगी फीस भरकर प्रवेश तो दिला दिया है लेकिन वहां बाद में क्या हो रहा है, यह उन्हें नहीं पता होता है। लड़कियां जब इस तरह के बनाव सिंगार को सीखती और अपनाती हैं तो इस काम के लिये भी पैसा चाहिये होता है। जो अब घर से मिलना होता नहीं है और ना ही वह बता पाती हैं कि उन्हें किस काम के लिये पैसा चाहिये। लेकिन वह यहां रहकर पैसा कमाने के दूसरे सोत्रों को भलीं-भांति पहचानने लगती हैं। इस तरह वह जाने अनजाने अपने आप को दूसरों के सामने पेश करने को भी मामूली बा मान लेती हैं और यह सब हौसला उनको मिलता है इन्ही संस्थानों से। यहां की हवा और घुट्टी में इन्हें घोल-घोल पिलाया जाता है कि आगे बढ़ने के लिये कुछ भी कर गुजरो, आपको एक बड़ा मॉडल, बड़ा व्यक्ति बनना है। इन सबके लिये अपने आपको बेचना मामूली कीमत है।
ये सभी संस्थान हमारी नई पीढ़ी को जिस्मफरोशी के नये नये तरीको से अपने आप को बेचने की कला सिखा रहे हैं। नई उमर की लड़कियां आर्कषण मे फंसकर अपने आपको मामूली चीजों के लिये स्वाहा कर देती हैं। आज के लड़के-लड़कियों के लिये अपनी वर्जिनिटी को खो देना एक मामूली बात हैं। यह हमें सोचना होगा की तरक्की और विकास को हम क्या कीमत चुकाकर ला रहे है।

प्रधान जी डॉट कॉम से साभार

जूते खाने वालों की सूची में अरुंधती रोय का नाम शामिल

जूते की तीसरी शिकार बनी “अरुंधती राय”.
और चल गया सैंडल ,इस बार निशाना बनी अरुंधती रॉय, विश्व विख्यात लेखिका और बुकर प्राइज़ से सम्मानित अरुंधती रॉय।कल दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी में AISA द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अरुंधती राय को जूते खाने वालों की पंक्ति में शुमार होना पड़ा।शुक्रवार सुबह जब अरुंधती राय दू पहुँची तो उन्हें कार्यक्रम में दिक्कतों का सामना करना पड़ा।” युवा ” नाम से बैनर लिए कुछ विद्यार्थिओं ने उनका जमकर विरोध किया और नारेबाजी की। YUVA- yoth unity for vibrant action। का विरोध मुख्यतः पिंक चड्डी के खिलाफ था। उन्होंने अरुंधती रॉय के उस बयान का पुरजोर खंडन किया जिसमे उन्होनो कहा था की कश्मीर , पाकिस्तान को दे देना चाहिए। अजमल कसब के मामले पे उनकी की गई टिपण्णी से भी युवा के कार्यकर्ता नाराज़ दिखे। उन्होंने विवेकानान्द मूर्ति के सामने ऐसे देशद्रोही का बैठना गंवारा नही था। ख़बर ये भी है की उस जूते की नीलामी की जायेगी।प्रस्तुत है इस link पर जारी ख़बर ……

http://www।expressindia.com/latest-news/du-battleground-for-freedom-vs-culture/423424/New Delhi With Valentine’s Day this year turning into culture battle of sorts, the Vivekananda statue area at the DU Arts Faculty turned the into a battleground fomenting conflicting views on “Indian Culture”, separated by a thin line of policemen. A protest against ‘moral policing’, called by the All-India Students Association (AISA) and the All-India Progressive Women’s Association (AIPWA) was matched with sloganeering by the BJP student outfit, Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP), on Friday afternoon.While the AISA protest, “Love in Our Times” was a series of poetry readings and discussions on the concept of love and sexuality, ABVP protesters attacked the concept of Valentines Day। A third protest by the Youth Unity for Vibrant Action (YUVA), also made a brief appearance, with slogans shouted against the overt ‘sexualisation’ and ‘politicisation’ of V Day celebrations. “We condemn the actions of the Sri Ram Sene, but why are people implying that to be modern, a woman has to be overtly sexual?” said YUVA member Beauty Kumari Singh from Jamia. Writer Rajendra Yadav, present on the occasion, said: “Love is a rebellion against everything. Why should we carry around the burden of a 5000-year old history? Liberation of thought is important to grow.”ABVP members, meanwhile, questioned the credentials of writer-activist Arundhati Roy, who was invited by the AISA to speak at the gathering.“If they can insult the dignity of Indian women by politicising something that should be kept under wraps, Indian women will send them chunris to cover up,” said an activist.