अभिलेख

छिद्रान्वेषण—डा श्याम गुप्त …लर्न बाय फन , रिमी सेन व महा संग्राम…

छिद्रान्वेषणको प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है , इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है…(faultfinding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वरप्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते , ‘निंदक नियरे राखिये….’ नकारात्मक भावों से ….. आदि आदि मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है आज का छिद्रान्वेषण —-
-1— समाचार के अनुसार –एक अच्छा प्रयोग पहल—श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक ‘लर्न बाई फन’ ( एल बी ऍफ़ )–का खूब प्रयोग होरहा है–अध्यापक लोग खूब पढ़ा रहे हैं ,( हमें नहीं पता इसके कितने सकारात्मक परिणाम होंगे , हां उनकी पुस्तक तो खूब बिक ही जायगी तब तक ….) …हां एक बात छिद्रान्वेषण की है कि क्या अंग्रेज़ी नाम लर्न बाय फनही रखा जाना चाहिए ? क्या इससे छात्रों भविष्य के नागरिकों के मन में यह बात नहीं पैठ करेगी कि अंग्रेज़ी सिस्टम ( चाहे वह सिस्टम अग्रवाल जी का अपना ही क्यों हो पर नाम अंग्रेज़ी है ) अंग्रेज़ी ही कारगर है उसके बिना इस देशसमाज का कार्य नहीं चलसकता.……..तथा फनसब कुछ फन आधारित है, अध्ययन में गहनता, गुरु गंभीरता , सहज़ता का कुछ अर्थ नहीं ( जिसके लिए भारतीय समाज ज़ाना जाता था है ) तभी तो आज जो फन( देर रात तक घूमना, धूमधडाका, बॉयगर्ल फ्रेंड बनाने की अत्यावश्यकता , अतिमनोरंजन,खेळ , मस्ती आदि की अनंत सूची…) के नए नए आयाम दिखाई पड़ रहे हैं और वे सब अच्छे आवश्यक ही होते होंगे, अतः अवश्य ही प्राथमिकता से अपनाना चाहिए ।
-२- स्कूलों का महासंग्राम —एक अच्छा प्रयास है छात्रों में आत्मविश्वास उत्पन्न करने का आदि …..परन्तु क्या महा संग्राम शब्द बच्चों के लिए उचित है तथा सिने तारिका रिमी सेन का वहां होना आवश्यक था…क्यों ..सिने तारिकाओं अभिनेताओं का शिक्षा जगत व उसके कार्यक्रमों, उद्घाटनों में भाग लेने से क्या यह सन्देश नहीं जाता कि वे उनके चालचलन, पहननाओड़नाअनुकरणीय हैं, तभी तो गुरुजनों ने उन्हें इतना मान दिया है, समारोह का मुख्य अतिथि आदि बनाकर …..

—-इसे कहते हैं अच्छे प्रयासों का भी गुडगोबर करना , यह दूरदर्शिता के अभाव का फल होता हैतथा समाज परअभी भी विदेशी चश्मा चढ़ा होने का प्रभाव….