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स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें…. संजीव ‘सलिल’

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:

गीत

भारत माँ को नमन करें….

संजीव ‘सलिल’
*

*
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें.
ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ
इस धरती को चमन करें…..
*
नेह नर्मदा अवगाहन कर
राष्ट्र-देव का आवाहन कर
बलिदानी फागुन पावन कर
अरमानी सावन भावन कर

 राग-द्वेष को दूर हटायें
एक-नेक बन, अमन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें……
*
अंतर में अब रहे न अंतर
एक्य कथा लिख दे मन्वन्तर
श्रम-ताबीज़, लगन का मन्तर
भेद मिटाने मारें मंतर

सद्भावों की करें साधना
सारे जग को स्वजन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें……
*
काम करें निष्काम भाव से
श्रृद्धा-निष्ठा, प्रेम-चाव से
रुके न पग अवसर अभाव से
बैर-द्वेष तज दें स्वभाव से

‘जन-गण-मन’ गा नभ गुंजा दें
निर्मल पर्यावरण करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें……
*
जल-रक्षण कर पुण्य कमायें
पौध लगायें, वृक्ष बचायें
नदियाँ-झरने गान सुनायें
पंछी कलरव कर इठलायें

भवन-सेतु-पथ सुदृढ़ बनाकर
सबसे आगे वतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें……
*
शेष न अपना काम रखेंगे
साध्य न केवल दाम रखेंगे
मन-मन्दिर निष्काम रखेंगे
अपना नाम अनाम रखेंगे

सुख हो भू पर अधिक स्वर्ग से
‘सलिल’ समर्पित जतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें……
*******

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

पित्तृ दिवस पर : स्मृति गीत / शोक गीत –संजीव ‘सलिल’

पित्तृ  दिवस पर :

स्मृति गीत / शोक गीत
संजीव ‘सलिल’
*

याद आ रही पिता तुम्हारी
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
तुम सा कहाँ
मनोबल पाऊँ?
जीवन का सब
विष पी पाऊँ.
अमृत बाँट सकूँ
स्वजनों को-
विपदा को हँस
सह मुस्काऊँ.
विधि ने काहे
बात बिगारी?
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
रही शीश पर
जब तव छाया.
तनिक न विपदा
से घबराया.
आँधी-तूफां
जब-जब आये-
हँसकर मैंने
गले लगाया.
बिना तुम्हारे
हुआ भिखारी.
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
मन न चाहता
खुशी मनाऊँ.
कैसे जग को
गीत सुनाऊँ?
सपने में आकर
मिल जाओ-
कुछ तो ढाढस-
संबल पाऊँ.

भीगी अँखियाँ
होकर खारी.
याद आ रही
पिता तुम्हारी…
*
 

ग़ज़ल बहुत हैं मन में लेकिन फिर भी कम -संजीव ‘सलिल’


ग़ज़ल

संजीव ‘सलिल’

बहुत हैं मन में लेकिन फिर भी कम अरमान हैं प्यारे.
पुरोहित हौसले हैं मंजिलें जजमान हैं प्यारे..

लिये हम आरसी को आरसी में आरसी देखें.
हमें यह लग रहा है खुद से ही अनजान हैं प्यारे..

तुम्हारे नेह के नाते न कोई तोड़ पायेगा.
दिले-नादां को लगते हिटलरी फरमान हैं प्यारे..

छुरों ने पीठ को घायल किया जब भी तभी देखा-
‘सलिल’ पर दोस्तों के अनगिनत अहसान हैं प्यारे..

जो दाना होने का दावा रहा करता हमेशा से.
‘सलिल’ से ज्यादा कोई भी नहीं नादान है प्यारे..

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माँ सरस्वती शत-शत वन्दन –संजीव ‘सलिल’

माँ सरस्वती शत-शत वन्दन

संजीव ‘सलिल’

माँ सरस्वती! शत-शत वंदन, अर्पित अक्षत हल्दी चंदन.
यह धरती कर हम हरी-भरी, माँ! वर दो बना सकें नंदन.
प्रकृति के पुत्र बनें हम सब, ऐसी ही मति सबको दो अब-
पर्वत नभ पवन धरा जंगल खुश हों सुन खगकुल का गुंजन.
*
माँ हमको सत्य-प्रकाश मिले, नित सद्भावों के सुमन खिलें.
वर ऐसा दो सत्मूल्यों के शुभ संस्कार किंचित न हिलें.
मम कलम-विचारों-वाणी को मैया! अपना आवास करो-
मेर जीवन से मिटा तिमिर हे मैया! अमर उजास भरो..
*
हम सत-शिव-सुन्दर रच पायें ,धरती पर स्वर्ग बसा पायें.
पीड़ा औरों की हर पायें, मिलकर तेरी जय-जय-जय गायें.
गोपाल, राम, प्रहलाद बनें, सीता. गार्गी बन मुस्कायें.
हम उठा माथ औ’ मिला हाथ हिंदी का झंडा फहरायें.
*
माँ यह हिंदी जनवाणी है, अब तो इसको जगवाणी कर.
सम्पूर्ण धरा की भाषा हो अब ऐसा कुछ कल्याणी कर.
हिंदीद्वेषी हो नतमस्तक खुद ही हिंदी का गान करें-
हर भाषा-बोली को हिंदी की बहिना वीणापाणी कर.
*

हिंदी सबके मन बसी -संजीव’सलिल’

हिंदी सबके मन बसी

आचार्य संजीव’सलिल’, संपादक दिव्य नर्मदा

हिंदी भारत भूमि के, जन-गण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..

संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..

हिंदी आटा माढिए, उर्दू मोयन डाल.
‘सलिल’ संस्कृत तेल ले, पूड़ी बने कमाल..

ईंट बने सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी ह्रदय प्रणम्य.

संस्कृत पाली प्राकृत, हिंदी उर्दू संग.
हर भाषा-बोली लगे, भव्य लिए निज रंग..

सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..

भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबका स्नेह ही, हो लेखन का ध्येय..

उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ अगणित रखें, मन में नेह-विवेक..

भाषा बोले कोई भी. किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर दूत प्रबुद्ध..

शोकगीत: नाथ मुझे क्यों / किया अनाथ? संजीव ‘सलिल’

पूज्य मातुश्री स्व. शांति देवि जी की प्रथम बरसी पर शोकगीत:

नाथ मुझे क्यों / किया अनाथ?

संजीव ‘सलिल’

नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?…
*
छीन लिया क्यों
माँ को तुमने?
कितना तुम्हें
मनाया हमने?
रोग मिटा कर दो
निरोग पर-
निर्मम उन्हें
उठाया तुमने.
करुणासागर!
दिया न साथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?…
*
मैया तो थीं
दिव्य-पुनीता.
मन रामायण,
तन से गीता.
कर्तव्यों को
निश-दिन पूजा.
अग्नि-परीक्षा
देती सीता.
तुम्हें नवाया
निश-दिन माथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?…
*
हरी! तुमने क्यों
चाही मैया?
क्या अब भी
खेलोगे कैया?
दो-दो मैया
साथ तुम्हारे-
हाय! डुबा दी
क्यों फिर नैया?
उत्तर दो मैं
जोडूँ हाथ.
नाथ ! मुझे क्यों
किया अनाथ?…
*

नवगीत: कौन किताबों से/सर मारे?… आचार्य संजीव ‘सलिल’

नवगीत:

आचार्य संजीव ‘सलिल’

कौन किताबों से
सर मारे?…
*
बीत गया जो
उसको भूलो.
जीत गया जो
वह पग छूलो.

निज तहजीब
पुरानी छोडो.
नभ की ओर
धरा को मोड़ो.

जड़ को तज
जडमति पछता रे.
कौन किताबों से
सर मारे?…
*
दूरदर्शनी
एक फलसफा.
वही दिखा जो
खूब दे नफा.

भले-बुरे में
फर्क न बाकी.
देख रहे
माँ में भी साकी.

रूह बेचकर
टका कमा रे…
कौन किताबों से
सर मारे?…
*
बटन दबा
दुनिया हो हाज़िर.
अंतरजाल
बन गया नाज़िर.

हर इंसां
बन गया यंत्र है.
पैसा-पद से
तना तंत्र है.

निज ज़मीर बिन
बेच-भुना रे…
*

नव गीत: मकान मत कहो… –संजीव ‘सलिल’

नव गीत

संजीव ‘सलिल’

घर को ‘सलिल’
मकान मत कहो…
*
कंकर में
शंकर बसता है
देख सको तो देखो.

कण-कण में
ब्रम्हांड समाया
सोच-समझ कर लेखो.

जो अजान है
उसको तुम
बेजान मत कहो.

घर को ‘सलिल’
मकान मत कहो…
*
*
भवन, भावना से
सम्प्राणित
होते जानो.

हर कमरे-
कोने को
देख-भाल पहचानो.

जो आश्रय देता
है देव-स्थान
नत रहो.

घर को ‘सलिल’
मकान मत कहो…
*
घर के प्रति
श्रद्धानत हो
तब खेलो-डोलो.

घर के
कानों में स्वर
प्रीति-प्यार के घोलो.

घर को
गर्व कहो लेकिन
अभिमान मत कहो.

घर को ‘सलिल’
मकान मत कहो…
*
स्वार्थों का
टकराव देखकर
घर रोता है.

संतति का
भटकाव देख
धीरज खोता है.

नवता का
आगमन, पुरा-प्रस्थान
मत कहो.

घर को ‘सलिल’
मकान मत कहो…
*
घर भी
श्वासें लेता
आसों को जीता है.

तुम हारे तो
घर दुःख के
आँसू पीता है.

जयी देख घर
हँसता, मैं अनजान
मत कहो.

घर को ‘सलिल’
मकान मत कहो…

*

नवगीत: सूना-सूना घर का द्वार, –संजीव ‘सलिल’

नवगीत:

संजीव ‘सलिल’

सूना-सूना
घर का द्वार,
मना रहे
कैसा त्यौहार?…
*
भौजाई के
बोल नहीं,
बजते ढोलक-
ढोल नहीं.
नहीं अल्पना-
रांगोली.
खाली रिश्तों
की झोली.
पूछ रहे:
हाऊ यू आर?
मना रहे
कैसा त्यौहार?…
*
माटी का
दीपक गुमसुम.
चौक न डाल
रहे हम-तुम.
सज्जा हेतु
विदेशी माल.
कुटिया है
बेबस-बेहाल.
श्रमजीवी
रोता बेज़ार.
मना रहे
कैसा त्यौहार?…
*
हल्लो!, हाय!!
मोबाइल ने,
दिया न हाथ-
गले मिलने.
नातों को
जीता छल ने .
लगी चाँदनी
चुप ढलने.
‘सलिल’ न प्रवाहित
नेह-बयार.मना रहे
कैसा त्यौहार?…
****************