अभिलेख

कर्म- अकर्म —

कर्म -अकर्म —-

कर्म निम्न प्रकार के होते हैं
।- कर्म –जो प्राणी के नित्य-नैमित्तिक कर्म होते हैं , खाना,पीना, सोना ,मैथुन ,सुरक्षा , आदि-आदि जो प्रत्येक जीव करता है , वनस्पति से लेकर मानव तक|
.-सकर्म -जो मूलतः मानव करता है -सामाजिक दायित्व वहन, नागरिक दायित्व ,पारिवारिक दायित्व जो जीवन में आवश्यक हैं |
.-सत्कर्मजो मानव ,सामान्य कर्मों सेऊपर उठकर , समाज, देश,धर्म ,मानवता के लिए विशिष्ट भाव से करता है जो उसे विशेष व महापुरुषों की श्रेणी में लाता है।
.-कुकर्म या दुष्कर्म –जो मानव को हैवान व पशुतुल्य बनाते हैं ,और मानवता,देश,समाज ,मानव के प्रति अपराध युत होते हैं |
अकर्मजो व्यर्थ के कर्म होते हैं व मानव को उनसे बचना चाहिए , ये देखने में अहानिकारक होते है सिर्फ़ क्षणिक मनोरंजन कारक ,परन्तु वास्तव में ये समाज के लिए दूरंत-भाव में अत्यन्त हानिकारक व
घातक हैं,
क्योंकि ये व्यक्ति कोअप्रत्यक्ष रूप में कुकर्म करने को प्रेरित करते हैं
,——आजकल टीवी, रेडियो ,मोबाइल आदि पर अत्यधिक मनोरंजन , रेअलिटीशो में बच्चों ,युवकों ,किशोरकिशोरियों को अपने मूल शिक्षा कर्म से भटकाना एक अत्याचार है , स्टंट आदि वाले शो में व्यर्थ के स्टंट जो कभीजीवन में काम नहीं आते, गंदे, वीभत्स , अभक्ष्य पदार्थों में, सर्पकीडों में मुहं डालने वाले द्रश्य | सीमित ज्ञान वालेलोगों द्वारा सामाजिक आदि विषयों ,तथ्यों पर आधेअधूरे सत्य , अतिनाटकीयता प्रदर्शन आदिआदि ; सभी वस्तुतः अकर्म हैं
शासन, जनसामान्य,विद्वतजन ,संस्थायें , सामाजिकसंस्थायें ,आप और हम सभी को इसके बारे में सोचना चाहिए.