अभिलेख

सांसारिक प्रेम और देशप्रेम

हर लंदन के एक पुराने टूटे-फूटे होटल में जहां शाम ही से अंधेरा हो जाता है, जिस हिस्से में फैशनेबुल लोग आना ही गुनाह समझते हैं और जहां जुआ, शराबखोरी और बदचलनी के बड़े भयानक दृश्य हरदम आंख के सामने रहते हैं उस होटल में, उस बदचलनी के अखाड़े में इटली का नामवर देश-प्रेमी मैजिनी खामोश बैठा हुआ है। उसका सुंदर चेहरा पीला है, आंखों से चिन्ता बरस रही है, होंठ सूखे हुए हैं और शायद महीनों से हजामत नहीं बनी। कपड़े मैले-कुचैले हैं। कोई व्यक्ति जो मैजिनी को पहले से न जानता हो, उसे देखकर यह खयाल करने से नहीं रुक सकता कि हो न हो यह भी उन्हीं अभागे लोगों में है जो अपनी वासनाओं के गुलाम होकर जलील से जलील काम करते हैं।

मैजिनी अपने विचारों में डूबा हुआ हैं। आह बदनसीब कौम ! ऐ मजलूम इटली! क्या तेरी किस्मत कभी न सुधरेगी, क्या तेरे सैंकड़ों सपूतों का खून जरा भी रंग न लायेगा ! क्या तेरे देश से निकाले हुए हजारों जाँनिसारों की आहों में जरा भी तारीर नहीं। क्या तू अन्याय और अत्याचार और गुलामी के फंदे में हमेशा गिरफ्तार रहेगी। शायद तुझमें अभी सुधरने की, स्वतंत्र होने की योग्यता नहीं आयी। शायद तेरी किस्मत में कुछ दिनों और जिल्लत और बर्बादी झेलना लिखी है। आजादी, हाय आजादी, तेरे लिए मैंने कैसे-कैसे दोस्त, जान से प्यारे दोस्त कुर्बान किए। कैसे-कैसे नौजवान, होनहारा नौजवान, जिनकी माएं और बीवियां आज उनकी कब्र पर आंसू बहा रही हैं और अपने कष्टों और आपदाओं से तंग आकर उनके वियोग के कष्ट में अभागे, आफत के मारे मैजिनी को शाप दे रही हैं। कैसे-कैसे शेर जो दुश्मनों के सामने पीठ फेरना न जानते थे, क्या यह सब कुर्बानियां, यह सब भेंटें काफी नहीं हैं? आजादी, तू ऐसी कीमती चीज़ है! हां तो फिर मैं क्यों जिन्दा रहूं? क्या यह देखने के लिए कि मेरा प्यारा वतन, मेरा प्यारा देश, धोखेबाज-अत्याचारी दुश्मनों के पैरों तले रौंदा जाए, मेरे प्यारे भाई, मेरे प्यारेहमवतन, अत्याचार का शिकार बनें। नहीं, मैं यह देखने के लिए जिन्दा नहीं रह सकता !

मैजिनी इन्हीं खयालों में डुबा हुआ था कि उसका दोस्त रफेती, जो उसके साथ निर्वासित किया गया था, इस कोठरी में दाखिल हुआ। उसके हाथ में एक बिस्कुट का टुकड़ा था। रफेती उम्र में अपने दोस्त से दो-चार बरस छोटा था। भंगिमा से सज्जनता झलक रही थी। उसने मैजिनी का कंधा पकड़कर हिलाया और कहा-जोजेफ, यह लो, कुछ खा लो।

मैजिनी ने चौंककर सर उठाया और बिस्कुट देखकर बोला-यह कहां से लाये ? तुम्हारे पास पैसे कहां थे?
रफेती-पहले खा लो फिर यह बातें पूछना, तुमने कल शाम से कुछ नही खाया है।
मैजिनी-पहले यह बता दो, कहां से लाये। जेब में तंबाकू का डिब्बा भी नजर आता है। इतनी दौलत कहां हाथ लगी?
रफेती-पूछकर क्या करोगे? वही अपना नया कोट जो मां ने भेजा था, गिरवी रख आया हूँ।


मैजिनी ने एक ठंडी सांस ली, आंखों से आंसू टप-टप जमीन पर गिर पड़े। रोते हुए बोला-यह तुमने क्या हरकत की, क्रिसमस के दिन आते हैं, उस वक्त क्या पहनोगे? क्या इटली के एक लखपती व्यापारी का इकलौता बेटा क्रिसमस के दिन भी ऐसी ही फटे-पुराने कोट में बसर करेगा? ऐं?

रफेती-क्यों, क्या उस वक्त तक कुछ आमदनी न होगी, हम-तुम दोनों नये जोड़े बनवाएंगे और अपने प्यारे देश की आने वाली आजादी के नाम पर खुशियां मनाएंगे।
मैजिनी-आमदीन की तो कोई सूरत नजर नहीं आती। जो लेख मासिक पत्रिकाओं के लिए लिखे थे, वह वापस ही आ गये। घर से जो कुछ मिलता है, वह कब खत्म हो चुका है। अब और कौन-सा जरिया है ?
रफेती-अभी क्रिसमस को हफ्ता भर पड़ा है। अभी से उसकी क्या फिक्र करें। और अगर मान लो नहीं कोट पहना तो क्या ? तुमने नहीं मेरी बीमारी में डॉक्टर की फीस के लिए मैग्डलीन की अंगूठी बेच डाली थी ? मैं जल्दी ही यह बात उसे लिखने वाला हूं, देखना तुम्हें कैसा बनाती है।


क्रिसमस का दिन है, लंदन में चारों तरफ खुशियों का गर्म बाजारी है। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सब अपने-अपने घर खुशियां मना रहे हैं और अपने अच्छे से अच्छे कपड़े पहनकर गिरजाघरों में जा रहे हैं। कोई उदास सूरत नजर नहीं आती। ऐसे वक्त मैजिनी और रेफती दोनों उसी छोटी-सी अंधेरी कोठरी में सर झुकाए खामोश बैठे हैं। मैजिनी ठण्डी आहें भर रहा है और रफेती रह-रहकर दरवाजे पर आता है और बदमस्त शराबियों को और दिनों से ज्यादा बहकते और दीवानेपन की हरकतें करते देखकर अपनी गरीबी और मुहताजी की फिक्र दूर करना चाहता है ! अफसोस! इटली का सरताज, जिसकी एक ललकार पर हजारों आदमी अपना खून बहाने के लिए तैयार हो जाते थे, आज ऐसा मुहताज हो रहा है कि उसे खाने का ठिकाना नहीं। यहां तक कि आज सुबह से उसने एक सिगार भी नहीं पिया। तंबाकू ही दुनिया की वह नेमत थी जिससे वह हाथ नहीं खींच सकता था और वह भी आज उसे नसीब न हुआ। मगर इस वक्त उसे अपनी फिक्र नहीं रफेती, नौजवान, खुशहाल और खूबसूरत होनहार रफेती की फिक्र जी पर भारी हो रही है। वह पूछता है कि मुझे क्या हक है कि मैं एक ऐसे आदमी को अपने साथ गरीबी की तकलीफें झेलने पर मजबूर करुं जिसके स्वागत के लिए दुनिया की बस नेमतें बांहें खोले खड़ी हैं।

इतने में एक चिट्ठीरसा ने पूछा-जोजेफ मैजिनी यहां कहां रहता है ? अपनी चिट्ठी लेजा।
रफेती ने खत ले लिया और खुशी के जोश से उछलकर बोला-जोजेफ, यह लो, मैग्डलीन का खत है।
मैजिनी ने चौंककर खत ले लिया और बड़ी बेसब्री से खोला। लिफाफा खोलते ही थोड़े-से बालों का एक गुच्छा गिर पड़ा, जो मैग्डलीन ने क्रिसमस के उपहार के रुप में भेजा था। मैजिनी ने उस गुच्छे को चूमा और उसे उठाकर अपने सीने की जेब में खोंसे लिया। खत में लिखा था-


माइ डियर जोजेफ,


यह तुच्छ भेंट स्वीकार करो। भगवान करे तुम्हें एक सौ क्रिसमय देखने नसीब हों। इस यादगार को हमेशा अपने पास रखना और गरीब मैग्डलीन को भूलना मत। मैं और क्या लिखूं। कलेजा मुँह को आया जाता है। आय जोजेफ, मेरे प्यारे, मेरे स्वामी, मेरे मालिक जोजेफ, तू मुझे कब तक तड़पायेगा। अब जब्त नहीं होता। आंखों में आसूं उमड़े आते हैं। मैं तेरे साथ मुसीबतें झेलूंगी, भूखों मरुंगी, यह सब मुझे गवारा है, मगर तुझसे जुदा रहना गवारा नही। तुझे कसम है, तुझे अपने ईमान की कसम है, तुझे अपने वतन की कसम, यहां आ जा, यह आंखें तरस रही हैं, कब तूझे देखूंगी। क्रिसमस करीब है, मुझे क्या, जब तक जिन्दा हूं, तेरी हूं।

तुम्हारी
मैग्डल

मैग्डलीन का घर स्विट्जरलैण्ड में था। वह एक समृद्ध व्यापारी की बेटी थी और अनिन्द्य सुंदरी। आन्तरिक सौंदर्य में भी उसका जोड़ मिलना मुश्किल था। कितने ही अमीर और रईस लोग उसका पागलपन सर में रखते थे, मगर वह किसी को कुछ खयाल में न लाती थी। मैजिनी जब इटली से भागा तो स्विट्जरलैण्ड में आकर शरण ली। मैग्डलीन उस वक्त भोली-भाली जवानी की गोद में खेल रही थी। मैजिनी की हिम्मत और कुर्बानियों की तारीफें पहले ही सुन चुकी थी। कभी-कभी अपनी मां के साथ यहां आने लगी और आपस का मिलना-जुलना जैसे-जैसे बढ़ा और मैजिनी के भीतरी सौन्दर्य का ज्यों-ज्यों उसके दिल पर गहरा असर होता गया, उसकी मुहब्बत उसके दिल में पक्की होती गयी। यहां तक कि उसने एक दिन खुद लाज-शर्म को किनारे रखकर मैजिनी के पैरों पर सिर रख दिया और कहा-मुझे अपनी सेवा में स्वीकार कर लीजिए।

मैजिनी पर भी उस वक्त जवानी छाई हुई थी, देश की चिन्ताओं ने अभी दिल ठंडा नहीं किया था। जवानी की पुरजोश उम्मीदें दिल में लहरें मार रही थीं, मगर उसने संकल्प कर लिया था कि मैं देश और जाति पर अपने को न्यौछावर कर दूंगा। और इस संकल्प पर कायम रहा। एक ऐसी सुंदर युवती के नाजुक-नाजुक होंठों से ऐसी दरख्वास्त सुनकर रद्द कर देना मैजिनी ही जैसे संकल्प के पक्के, हियाब के पूरे आदमी का काम था।
मैग्डलीन भीगी-भीगी आंखें लिए उठी, मगर निराश न हुई थी। इस असफलता ने उसके दिल में प्रेम की आग और भी तेज कर दी और गो आज मैजिनी को स्विट्जरलैंड छोड़े कई साल गुजरे मगर वफादार मैग्डलीन अभी तक मैजिनी को नहीं भूली। दिनों के साथ उसकी मुहब्बत और भी गाढ़ी और सच्ची होती जाती है।

मैजिनी खत पढ़ चुका तो एक लम्बी आह भरकर रफेती से बोला-देखा मैग्डलीन क्या कहती है ?
रफेती-उस गरीब की जान लेकर दम लोगे !


मैजिनी फिर खयाल में डूबा-मैग्डलीन, तू नौजवान है, सुंदर है, भगवान ने तुझे अकूत दौलत दी है, तू क्यों एक गरीब, दुखियारे, कंगाल, फक्कड़ परदेश में मारे-मारे फिरनेवाले आदमी के पीछे अपनी जिन्दगी मिट्टी में मिला रही है ! मुझ जैसा मायूस, आफत का मारा हुआ आदमी तुझे क्योंकर खुश रख सकेगा ? नहीं-नहीं, मैं ऐसा स्वार्थी नहीं हूं। दुनिया में बहुत-से ऐसे हंसमुख खुशहाल नौजवान हैं जो तुझे खुश रख सकते हैं, जो तेरी पूजा कर सकते हैं। क्यों तू उनमें से किसी को अपनी गुलामी में नहीं ले लेती। मैं तेरे प्रेम, सच्चे, नेक और नि:स्वार्थ प्रेम का आदर करता हूं। मगर मेरे लिए, जिसका दिल देश और जाति परी समर्पित हो चुका है, तू एक प्यारी हमदर्द बहन के सिवा और कुछ नहीं हो सकती। मुझमें ऐसी क्या खूबी है, ऐसे कौन से गुण हैं कि तुझ जैसी देवी मेरे लिए ऐसी मुसीबतें झेल रही है। आह मैजिनी, तू कहीं का ना हुआ। जिनके लिए तूने अपने को न्यौछावर कर दिया, वह तेरी सूरत से नफरत करते हैं। जो तेरे हमदर्द हैं, वह समझते हैं तू सपने देख रहा है।

इन खयालों में बेबस होकर मैजिनी न कलम-दवात निकाली और मैग्डलीन को खत लिखना शुरु किया।
प्यारी मैग्डलीन,


तुम्हारा खत उस अनमोल तोहफे के साथ आया। मैं तुम्हारा हृदय से कृतज्ञ हूं कि तुमने मुझ जैसे बेकस और बेबस आदमी को इस भेंट के काबिल समझा। मैं उसकी हमेशा कद्र करूंगा। यह मेरे पास हमेशा एक सच्चे, नि:स्वार्थ और अमर प्रेम की स्मृति के रुप में रहेगा और जिस वक्त यह मिट्टी का शरीर कब्र की गोद में जाएगा मेरी आखिरी वसीयत यह होगी कि वह यादगार मेरे जनाजे के साथ दफन कर दी जाये। मैं शायद खुद उस ताकत का अन्दाजा नहीं लगा सकता जो मुझे इस खयाल से मिलती है, कि दुनिया में जहां चारों तरफ मेरे बारे में बदगुमानियां फैल रही हैं, कम से कम एक ऐसी नेक औरत है जो मेरी नीयत की सफाई और मेरी बुराइयों से पाक कोशिश पर सच्ची निष्ठा रखती है और शायद तुम्हारी हमदर्दी का यकीन है कि मैं जिन्दगी की ऐसी कठिन परीक्षाओं में सफल होता जाता हूं।

मगर प्यारी बहन, मुझे कोई तकलीफ नहीं है। तुम मेरी तकलीफों के खयाल से अपना दिल मत दुखाना। मैं बहुत आराम से हूं। तुम्होरे प्रेम जैसी अक्षयनिधि पाकर भी अगर मैं कुछ थोड़े-से शारीरिक कष्टों का रोना रोऊं तो मुझ जैसा अभागा आदमी दुनिया में कौन होगा।

मैंने सुना है, तुम्हारी सेहत रोज-ब-रोज गिरती जा रही है। मेरा जी बेअख्तियार चाहता है कि तुम्हें देखूं। काश, मेरा दिल इस काबिल होता कि तुम्हें भेंट चढ़ा सकता। मगर एक पजमुर्दा उदास दिल तुम्हारे काबिल नहीं। मैग्डलीन, खुदा के वास्ते अपनी सेहत का खयाल रक्खो, मुझे शायद उससे ज्यादा और किसी बात की तकलीफ न होगी कि प्यारी मैग्डलीन तकलीफ में है और मेरे लिए ! तुम्हारा पाकीजा चेहरा इस वक्त निगाहों के सामने है। मेगा ! देखों मुझसे नाराज न हो। खुदा की कसम मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं। आज क्रिसमस का दिन है, तुम्हें क्या तोहफा भेजूँ। खुदा तुम पर हमेशा अपनी बेइन्तहा बरकतों का साया रक्खे। अपनी मां को मेरी तरफ से सलाम कहना। तुम लोगों को देखने की इच्छा है। देखें कब तक पूरी होती हैं।


तुम्हारा जोजेफ

इस वाकये के बाद बहुत दिन गुजर गए। जोजेफ मैजिनी फिर इटली पहुंचा और रोम में पहली बार जनता के राज्य का एलान किया गया। तीन आदमी राज्य की व्यवस्था के लिए निर्वाचित किये गये। मैजिनी भी उनमें एक था। मगर थोड़े ही दिनों में फ्रांस की ज्यादतियों और पोडमांट के बादशाह की दगाबाजियों की बदौलत इस जनता के राज का खात्मा हो गया और उसके कर्मचारी और मंत्री अपनी जानें लेकर भाग निकले। मैजिनी अपने विश्वसनीय मित्रों की दगाबाजी और मौका परस्ती पर पेचोताब खाता हुआ खस्ताहाल और परेशान रोम की गलियों की खाक छानता फिरता था। उसका यह सपना कि रोम को मैं जरुर एक दिन जनता के राज का केंद्र बनाकर छोडूंगा, पूरा होकर फिर तितर-बितर हो गया।

दोपहर का वक्त था, धूप से परेशान होकर वह एक पेड़ की छाया में दम लेने के लिए ठहर गया कि सामने से एक लेडी आती हुई दिखाई दी। उसका चेहरा पीला था, कपड़े बिलकुल सफेद और सादा, उम्र तीस साल से ज्यादा। मैजिनी आत्म-विस्मृति की दशा में था कि यह स्त्री प्रेम से व्यग्र होकर उससे गले लिपट गई। मैजिनी ने चौंककर देखा, बोला-प्यारी मैग्डलीन, तुम हो ! यह कहते-कहते उसकी आंखें भीग गईं। मैग्डलीन ने रोकर कहा-जोजेफ ! और मुंह से कुछ न निकला।

दोनों खामोश कई मिनट तक रोते रहे। आखिर आखिर मैजिनी बोला-तुम यहॉँ कब आयीं, मेगा?

मैग्डलीन- मैं यहॉँ कई महीने से हूँ, मगर तुमसे मिलने की कोई सूरत नहीं निकलती थी। तुम्हें काम-काज में डूबा हुआ देखकर और यह समझकर कि अब तुम्हें मुझ जैसी औरत की हमदर्दी की जरुरत बाकी नहीं रही, तुमसे मिलने की कोई जरुरत नहीं देखती थी। (रुककर) क्यों जोजेफ, यह क्या कारण है कि अकसर लोग तुम्हारी बुराई किया करते हैं? क्या वह अंधे हैं, क्या भगवान् ने उन्हें आंखें नहीं दी?

जोजेफ- मेगा, शायद वह लोग सच कहते होंगे। फिलहाल मुझमें वह गुण नहीं हैं जो मैं शान के मारे अकसर कहा करता हूं कि मुझमें हैं, या जिन्हें तुम अपनी सरलता और पवित्रता के कारण मुझमें मौजूद समझती हो। मेरी कमजोरियां रोज-ब-रोज मुझे मालूम होती जाती हैं।

मैग्डलीन- जभी तो तुम इस काबिल हो कि मैं तुम्हारी पूजा करुं। मुबारक है वह इन्सान जो खुदी को मिटाकर अपने को हेच समझने लगे। जोजेफ, भगवान के लिए मुझे इस तरह अपने से मत अलग करो। मैं तुम्हारी हो गई हूं और मुझे विश्वास है कि तुम वैसे ही पाक-साफ हो जैसा हमारा ईसू था। यह खयाल मेरे मन पर अंकित हो गया है और अगर उसमें जरा कमजोरी आ गई थी तो तुम्हारी इस वक्त की बातचीत ने उसे और भी पक्का कर दिया। बेशक तुम फरिश्ते हो। मगर मुझे अफसोस है कि दुनिया में क्यों लोग इतने तंगदिल और अंधे होते हैं और खासतौर पर वह लोग जिन्हें मैं तंगखयाल से ऊपर समझती थी। रफेती, रसारीनो, पलाइनो, बर्नाबास यह सब के सब तुम्हारे दोस्त हैं। तुम उन्हें अपना दोस्त समझते हो, मगर वह सब तुम्हारे दुश्मन हैं और उन्होंने मुझसे मेरे सामने सैंकड़ों ऐसी बातें तुम्हारे बारे में कही हैं जिनका मैं मरकर भी यकीन नहीं कर सकती। वह सब गलत, झूठ बकते हैं, हमारा प्यारा जोजेफ वैसा ही है जैसा मैं समझती थी, बल्कि उससे भी अच्छा। क्या यह भी तुम्हारी एक जाती खूबी नहीं है कि तुम अपने दुश्मनों को भी अपना दोस्त समझते हो?

जोजेफ से अब सब्र न हो सका। मैग्डलीन के मुरझाये हुए पीले-पीले हाथों को चूमकर कहा-प्यारी मेगा, मेरे दोस्त बेकसूर हैं और मैं खूद दोषी हूं। (रोकर) जोजेफ जो कुछ उन्होंने कहा वह सब मेरे ही इशारे और मर्जी के अनुसार था, मैंने तुमसे दगा की मगर मेरी प्यारी बहन, यह सिर्फ इसलिए था कि तुम मेरी तरफ से बेपरवाह हो जाओ और अपनी जवानी के बाकी दिन खुशी से बसर करो। मैं बहुत शर्मिन्दा हूं। मैंने तुम्हें जरा भी न समझा था। मैं तुम्हारे प्रेम की गहराई से अपरिचित था, क्योंकि मैं जो चाहता था उसका उल्टा असर हुआ। मगर मेगा, मैं माफी चाहता हूं।

मैग्डलीन- हाय जोजेफ, तुम मुझसे माफी मांगते हो, ऐं, तुम जो दुनिया के सब इन्सानों से ज्यादा नेक, ज्यादा सच्चे और ज्यादा लायक हो! मगर हाँ, बेशक तुमने मुझे बिलकुल न समझा था जोजेफ ! यह तुम्हारी गलती थी। मुझे ताज्जुब तो यह है कि तुम्हारा ऐसा पत्थर का दिल कैसे हो गया।

जोजेफ- मेगा, ईश्वर जानता है जब मैंने रफेती को यह सब सिखा-पढ़ाकर तुम्हारे पास भेजा है, उस वक्त मेरे दिल की क्या कैफियत थी। मैं जो दुनिया में नेकनामी को सबसे ज्यादा कीमती समझता हूं और मैं जिसने दुश्मनों के जाती हमलों को कभी पूरी तरह काटे बिना न छोड़ा, अपने मुंह से सिखाऊं कि जाकर मुझे बुरा कहा ! मगर यह केवल इसलिए था कि तुम अपने शरीर का ध्यान रक्खो और मुझे भूल जाओ।

सच्चाई यह थी कि मैजिनी ने मैग्डलीन के प्रेम को रोज-ब-रोज बढ़ते देखकर एक खास हिकमत की थी। उसे खूब मालूम था कि मैग्डलीन के प्रेमियों में से कितने ही ऐसे हैं जो उससे ज्यादा सुंदर, ज्यादा दौलतमंद और ज्यादा अक्लवाले हैं, मगर वह किसी को खयाल में नहीं लाती। मुझमें उसके लिए जो खास आकर्षण है, वह मेरे कुछ खास गुण हैं और अगर मेरे ऐसे मित्र, जिनका आदर मैग्डलीन भी करती है, उससे मेरी शिकायत करके इन गुणों को महत्व उसके दिल से मिटा दें तो वह खुद-ब-खुद भूल जायेगी। पहले तो उसके दोस्त इस काम के लिए तैयार न होते थे मगर इस डर से कि कहीं मैग्डलीन ने घुल-घुलकर जान दे दी तो मैजिनी जिन्दगी भर हमें माफ न करेगा, उन्होंने यह अप्रिय काम स्वीकार कर लिया था। वह स्विट्जरलैंड गये और जहां तक उनकी जबान में ताकत थी, अपने दोस्त की पीठ पीछे बुराई करने में खर्च की। मगर मैग्डलीन पर मुहब्बत का रंग ऐसा गहरा चढ़ा हुआ था कि इन कोशिशों का इसके सिवाय और कोई नतीजा न हो सकता था जो हुआ। वह एक रोज बेकरार होकर घर से निकल खड़ी हुई और रोम में आकर एक सराय में ठहर गई। यहां उसका रोज का नियम था कि मैजिनी के पीछे-पीछे उसकी निगाह से दूर घूमा करती मगर उसे आश्वस्त और अपनी सफलता से प्रसन्न पाकर उसे छेड़ने का साहस न करती थी। आखिरकार जब फिर उस पर असफलताओं का वार हुआ और वह फिर दुनिया में बेकस और बेबस हो गया तो मैग्डलीन ने समझा, अब इसको किसी हमदर्द की जरुरत है। और पाठक देख चुके हैं जिस तरह वह मैजिनी से मिली।

मै जिनी रोम से फिर इंगलिस्तान पहुंचा और यहां एक अरसे तक रहा। सन् १८७0 में उसे खबर मिली कि सिसली की रिआया बगावत पर आमादा है और उन्हें मैदाने-जंग में लाने के लिए एक उभारनेवाले की जरुरत है। बस, वह फौरन सिसली पहुंचा मगर उसके जाने से पहले शाही फौज ने बागियों को दबा दिया था। मैजिनी जहाज से उतरते ही गिरफ्तार करके एक कैदखाने में डाल दिया गया। मगर चूंकि अब वह बहुत बुढडा हो गया था, शाही हुक्कम ने इस डर से कि कहीं वह कैद की तकलीफों से मर जाय तो जनता को संदेह होगा कि बादशाह की प्रेरणा से वह कत्ल कर डाला गया, उसे रिहा कर दिया। निराश और टूटा हुआ दिल लिये मैजिनी फिर स्विट्जरलैंड की तरफ रवाना हुआ। उसकी जिन्दगी की तमाम उम्मीदें खाक में मिल गईं। इसमें शक नहीं कि इटली के एकताबद्ध हो जाने के दिन बहुत पास आ गये थे मगर उसकी हुकूमत की हालत उससे हरगिज बेहतर न थी जैसी आस्ट्रिया या नेपल्स के शासन-काल में। अंतर यह था कि पहले वह एक दूसरी कौम की ज्यादतियों से परेशान थे, अब अपनी कौम के हाथों। इन निरंतर असफलताओं ने दृढ़व्रती मैजिनी के दिल में यह ख्याल पैदा किया कि शायद जनता की राजनीतिक शिक्षा इस हद तक नहीं हुई है, कि वह अपने लिए एक प्रजातांत्रिक शासन-व्यवस्था की बुनियाद डाल सके और इसी नीयत से वह स्विट्जरलैंड जा रहा था कि वहां से एक जबर्दस्त कौमी अखबार निकाले क्योंकि इटली में उसे अपने विचारों को फैलाने की इजाजत न थी। वह रातभर नाम बदलकर रोम में ठहरा। फिर वहां से अपनी जन्मभूमि जिनेवा में आया और अपनी नेक मां की कब्र पर फूल चढ़ाये। इसके बाद स्विट्जरलैंड की तरफ चला और साल भर तक कुछ विश्वसनीय मित्रों की सहायता से अखबार निकालता रहा। मगर निरंतर चिंता और कष्टों ने उसे बिलकुल कमजोर कर दिया था। सन् १८७0 में वह सेहत के ख्याल से इंगलिस्तान आ रहा था कि आल्प्स पर्वत की तलहटियों में निमोनिया की बीमारी ने उसके जीवन का अंत कर दिया और वह एक अरमानों से भरा दिल लिये स्वर्ग को सिधारा। इटली का नाम मरते दम तक उसकी जबान पर था। यहां भी उसके बहुत-से समर्थक और हमदर्द शरीक थे। उसका जनाजा बड़ी धूम से निकला। हजारों आदमी साथ थे और एक बड़ी सुहानी खुली हुई जगह पर पानी के एक साफ चश्मे के किनारे पर इस कौम के लिए मर मिटनेवाले को सुला दिया गया।

मैजिनी को कब्र में सोये हुए आज तीस दिन गुजर गये। शाम का वक्त था, सूरज की पीली किरणें इस ताजा कब्र पर हसरतभरी आंखों से ताक रही हैं। तभी एक अधेड़ खूबसुरत औरत सुहाग के जोड़े पहने, लड़खड़ाती हुई आयी। यह मैग्डलीन थी। उसका चेहरा शोक में डूबा हुआ था, बिलकुल मुर्झाया हुआ, कि जैसे अब इस शरीर में जान बाकी नहीं रही। वह इस कब्र के सिरहाने बैठ गयी और अपने सीने पर खुंसे हुए फूल उस पर चढ़ाये, फिर घुटनों के बल बैठकर सच्चे दिल से दुआ करती रही। जब खूब अंधेरा हो गया, बर्फ पड़ने लगी तो वह चुपके से उठी और खामोश सर झुकाये करीब के एक गांव में जाकर रात बसर की और भोर की वेला अपने मकान की तरफ रवाना हुई।

मैग्डलीन अब अपने घर की मालिक थी। उसकी मां बहुत जमाना हुआ मर चुकी थी। उसने मैजिनी के नाम से एक आश्रम बनवाया और खुद आश्रम की ईसाई लेडियों के लिबास में वहां रहने लगी। मैजिनी का नाम उसके लिए एक निहायत पुरदर्द और दिलकश गीत से कम न था। हमदर्दों और कद्रदानों के लिए उसका घर उनका अपना घर था। मैजिनी के खत उसकी इंजील और मैजिनी का नाम उसका ईश्वर था। आसपास के गरीब लड़कों और मुफलिस बीवियों के लिए यही बरकत से भरा हुआ नाम जीविका का साधन था। मैग्डलीन तीन बरस तक जिन्दा रही और जब मरी तो अपनी आखिरी वसीयत के मुताबिक उसी आश्रम में दफन की गयी। उसका प्रेम मामूली प्रेम न था, एक पवित्र और निष्कलंक भाव था और वह हमको उन प्रेम-रस में डूबी हुई गोपियों की याद दिलाता है जो श्रीकृष्ण के प्रेम में वृंदावन की कुंजों और गलियों में मंडलाया करती थीं, जो उससे मिले होने पर भी उससे अलग थीं और जिनके दिलों में प्रेम के सिवा और किसी चीज की जगह न थी। मैजिनी का आश्रम आज तक कायम है और गरीब और साधु-संत अभी तक मैजिनी का पवित्र नाम लेकर वहां हर तरह का सुख पाते हैं।

पुरस्कृत कविता- यादों की किताब

यादों की किताब

नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की दूसरी कविता कवि संजय सेन सागर की है, जिसके माध्यम से कवि ने साहित्य को व्यवसाय समझने वालों पर वार किया गया है। साथ-साथ यह कविता एक सच्चे लेखक की भावनाओं को बयां करने का प्रयत्न करती है। म.प्र. के सागर जिले में पैदा हुए और सागर केन्द्रीय विश्वविधालय में बी.काम. द्वितीय वर्ष के छात्र कवि संजय सेन सागर की यह पहली रचना है, जिसे हिन्द-युग्म पर प्रकाशित किया जा रहा है। कवि को पिछले कुछ सालों से लिखने का शौक लगा है। मीडिया में जाना चाहते हैं, उसी दिशा में प्रयासरत हैं।

पुरस्कृत कविता- यादों की किताब

दिल की तन्हाई जिदंगी की यादों
और ख्वाबों की इबारत से
खामोश रात में लिखी किताब का सुबह सौदा हुआ ।
बिक गये वे सभी सपने जो आँखों में बंद थे ।

लुट गया वो अकेलापन जिसे चुराया था
भीड़ से रह गई, तो सिर्फ कुछ दौलत जो मेरे बेकाम की थी ।
सच्चे दिल के खून को
स्याही बनाकर रंगा था
उस किताब के पन्नों को ।

लुटा दी थी हमने सारी खुशियां
और गम उस किताब को सजाने में
अब मेंरे साथ कुछ है तो उस की धुंधली सी यादें।

आसमां सी विशाल भावनाओं,
जमीन की पावन सादगी
और हवा के आवारापन को
बमशक्कत समाया था उस यादों की किताब में।

मगर अब मेरी यादें तन्हाई
और ख्याव टूट चुके है।
आसमां की विशालता, जमीन की सादगी
और हवा का आवारापन समा चुका है सौदागर की जेब में।

बरसात की जिन भीगी रातों में
गर्मी की तन्हाई भरी बातों में और
सर्दी के खमोश कोहरे में।
अपने खून को बर्फ करके लिखी किताब का।
सूरज की पहली किरण के साथ सौदा हुआ।

सूरज के ढलने के साथ ही ढल गई मेरी आत्म शक्ति।
खो गई सोचने की विचार शक्ति।
खो गई वो यादें ख्वाब और तन्हाई।
छोड़ दिया इस दिल ने धड़कना जो धड़कता था
उस यादों की किताब को सोचकर।

बेजान हो गया है यह शरीर खोखला हो गया है
ये दिल जबसे बिकी है वो खामोश रात में लिखी मेरी यादों की किताब

सडकों पर दौडती मौत

विधायक के बेटे ने मां-बेटे समेत तीन को कूचला


सुल्तानपुरः अखंडनगर थाने के उलरी गांव के पास बुधवार शाम बीएसपी विधायक भगेलूराम की कार की टक्कर से एक महिला और उसके दो बच्चों की मौत हो गई। गुस्साए ग्रामीणों ने विधायक की कार में आग लगा दी और रास्ता जाम कर दिया। एएसपी अशोक शुक्ला ने बताया कि महिला अपनी बच्ची के साथ साइकिल पर जा रही थी। साइकिल उसका बेटा चला रहा था। शुक्ला ने यह भी स्पष्ट किया कि दुर्घटना के समय विधायक भगेलूराम का बेटा गाड़ी चला रहा था। उसे हिरासत में ले लिया गया है।