अभिलेख

हीर रांझा के मुल्‍क में फिजा और चाँद

अब फिजा में चाँद नहीं रहेगा। यूँ तो फिजा और चाँद की दूरियां पिछले कुछ दिनों से लगातार बढ़ ही रही थीं लेकिन अब चाँद ने तलाक ले लिया है। चाँद और फिजा के बारे में अब तक बहुत कुछ सुना जा चुका है ओर उतना ही लिखा जा चुका है। दोनों के बीच जो भी हुआ कुछ तेज हुआ, तेजी परवान चढ़ी। हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन, चांद मुहम्मद और अनुराधा बाली फिजा बन गए। सब कुछ बड़ी जल्‍दी में हुआ। दोनों ने इसे प्‍यार इश्‍क और मोहब्‍बत का नाम दिया और एक दूसरे से ब्‍याह रचा दिया। समाचार चैनलों, अखबारों में धड़ाधड़ फोटो छपे, बयान आए। चाँद उस फिजा में मुस्‍करा रहा था, और फिजा भी बेहद खुश थी। अब खबर है कि चाँद ने लंदन से ही फोन पर फिजा को तलाक दे दिया है। हाथों की मेंहदी सूखी भी न थी कि चाँद को चंद्रमोहन का परिवार याद आ गया। उसे पहली पत्‍नी ओर बच्‍चे याद आने लगे। आने भी चाहिए थे, आखिर परिवार तो परिवार है। वैसे ये नितांत व्‍यक्‍तिगत मामला है और कोई भी आदमी प्‍यार करने घर बसाने के लिए पूरी तरह से आजाद है। औरत हो या आदमी, राजा हो या रंक, हर किसी को अपनी जिंदगी पूरी तरह से और अपने तरीके से जीने का अधिकार है और आजाद मुल्‍क में तो बेशक। चाँद ने फिजा से तलाक ले लिया है, ये अगर एक बात रहती तो इस पर कुछ भी कहने का हक किसी का नहीं था, क्‍योंकि हमारी स्‍वतंत्रता वहीं पर खत्‍म हो जाती है, दूसरे की नाक जहाँ से शुरू होती है। लेकिन फिजा और चाँद का प्‍यार भी खबर था बल्‍कि दोनों ने ही हंसते मुस्‍कराते इसे खबर बनाया। और अब इनका तलाक भी समाचारों की सुर्खी है। हिंदुस्‍तान के तमाम चैनलों में और अखबारों के लिए ये तलाक, खबर है, इसे सुर्खी की तरह समझने के लिए भी चाँद और फिजा ही जिम्‍मेदार हैं। इस ड्रामे की शुरुआत दोनों के अचानक शादी करने की खबर से हुई थी और कुछ ही दिन बाद जब चाँद या चंद्रमोहन अपने परिवार के पास वापस (फिजा के साथ परिवार बसा ही नहीं)गया तो अनुराधा बाली उर्फ फिजा ने उस पर धोखा देने के आरोप लगाने शुरू कर दिए। यहीं से दोनो की करतूत मखौल बन गई। फिजा ने चाँद को हवस का भूखा बताया। फिजा ने पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज कर राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद पर बलात्कार करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया। उसने ये भी कहा था कि चंद्रमोहन के परिवार वालों ने उनका अपहरण कर लिया है। हालांकि बाद में स्वयं चांद ने इसका खंडन किया। पुलिस ने इसे घरेलू मामला बताया। फिजा ने चाँद मोहम्मद के विरुद्ध बलात्कार और धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने के लिए मानवाधिकार आयोग में याचिका भी दाखिल की जिसमें चाँद पर बलात्कार, धोखाधड़ी, धार्मिक भावनाएं आहत करने, मानहानि तथा जान से मार देने की धमकी देने के आरोप लगाए गए हैं। व्‍यथित फिजा ने आत्महत्या का कथित प्रयास भी किया। जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराया गया। अचानक चाँद भी हिंदुस्‍तान से ओझल हो गया, बाद में पता चला कि लंदन में चाँद का इलाज चल रहा है। इधर फिजा आरोप लगाती रही, उधर से चाँद अपने को पाक बताते रहे। इसी बीच खबर आई कि फिजा को अपनी प्रेम कहानी के अंतरराष्ट्रीय फिल्म के अधिकार बेचने का प्रस्ताव मिला है। खबरों के मुताबि इंडिया पैसिफिक मीडिया एंड मूवीज इन्कॉ. और इंडिया पोस्ट कनाडा ने फिजा को ये आफर दिया। खबरों की मानें तो प्रस्ताव के लिए हाँ करने पर फिजा को 50 लाख डॉलर की राशि मिलनी तया थी। दोनों कंपनियों का कहना था कि इस राजनीतिक प्रेम कहानी को अमेरिका और कनाडा में प्रसारित किया जाएगा। और आखिर लंदन से ही कथित तौर पर चाँद ने फिजा को तलाक दे दिया। ये कोई प्रेम कहानी का दुखद अंत नहीं है। ये समाज के लिए सबक के तौर पर मिसाल है जिसे संजीदगी से लेना चाहिए। मीडिया जिसे खबरें गढ़ने की आदत है, और समाज जो चटखारे लेकर ऐसी खबरें देखते हैं, सुनते हैं और पढ़ते हैं। फिजा कोई साधारण औरत नहीं थी और ना ही कानून से अंजान। वो हरियाणा की पूर्व सहायक महाधिवक्ता अनुराधा बाली है, और चाँद मोहम्‍मद भी एक पूर्व उपमुख्‍य मंत्री। दोनों इस तरह के कदम का आगाज और अंजाम बेहतर जानते थे। फिर भी दोनों आगे बढ़ते रहे और अब दोनों ने मोहब्‍बत को रूसवा करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। हालांकि ये बात रही कि च्रंदमोहन ने हमेशा ही फिजा से मोहब्‍बत को स्‍वीकारा और माना, लेकिन फिजा जिसने बहुत कुछ खोया चाँद उसके पास नहीं रहा तो उसका गुस्‍सा भी जायज था। लेकिन सवाल ये भी है कि क्‍या मोहब्‍बत इतनी सस्‍ती हो गई है। अगर आप किसी से प्‍यार करते हैं तो इस तरह के छलावे, आरोप ये सब क्‍या है। लगा ही नहीं कि कहीं से भी प्‍यार का मामला हो। आगे पढ़ें के आगे यहाँ

खेल पर हमलाः खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया


आज यानी 3 मार्च 2009 को श्रीलंका क्रिकेट टीम पर हुए आतंकी हमले को क्रिकेट जगत का काला दिन कहा जा सकता है। यह सिर्फ श्रीलंका टीम पर नहीं बल्कि संपूर्ण क्रिकेट जगत और खेल पर हमला है। पूरे खेल जगत ने इस हमले की घोर निंदा की है। चारों ओर से खिलाड़ियों को बयान आ रहे हैं।

इतिहास में यह पहला मौका है जब सीधे खिलाड़ियों को आतंकियों ने निशाना बनाया है। पाकिस्तान के कप्तान यूनिस खान ने कहा कि यह काफी दुखद घटना है और इसके लिए श्रीलंकाई खिलाड़ियों से मांफी मांगते हैं। अगर हम भी घटना स्थल पर होते तो यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाते। हमारी बस श्रीलंकाई खिलाड़ियों की बस से पांच मिनट बाद होटल से निकली थी। यदि दोनों बसें एक ही समय पर निकलतीं तो अंजाम कुछ और ही होता।

क्या रही विश्व के खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया-हमारे देश के खिलाड़ियों के लिए यह काफी दुखद घटना है। – सनत जयसूर्या, पूर्व कप्तान, श्रीलंकाइस घटना के बाद अब किसी भी टीम को पाकिस्तान में क्रिकेट नहीं खेलना चाहिए। – जहीर अब्बास, पूर्व क्रिकेटर, पाकिस्तान

यह काफी दुखद घटना है। पूरा क्रिकेट जगत श्रीलंका के साथ है।- रिकी पोंटिंग- कप्तान, आस्ट्रेलिया

इस घटना के लिए हमें अफसोस है। हम श्रीलंका टीम से मांफी मांगते हैं। – यूनुस खान, कप्तान, पाकिस्तान।पाक में क्रिकेट का भविष्य खतरे में है। यह क्रिकेट इतिहास का काला दिन है। – कपिल देव, पूर्व कप्तान, भारत
हम इस घटना से आश्चर्य में हैं। उम्मीद है कि सभी श्रीलंकाई खिलाड़ी सुरक्षित होंगे। – महेंद्र सिंह धोनी, कप्तान, भारत

हालांकि हम सभी सुरक्षित हैं लेकिन खौफ के साये में हैं। पता नहीं हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ। – चमिंडा वास, क्रिकेटर श्रीलंका

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करियर बनाने के नाम पर खुल रही हैं जिस्मफरोशी की दुकानें!

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर एक कार्यक्रम देख रहा था- ‘द लार्ज प्लेन क्रैश’। इसमें दिखा रहे थे कि एवीयेशन कैरियर कितना जोखिम भरा है किसी पायलट के उपर प्लेन उड़ाते हुए कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है। एक जरा सी चूक बड़े हादसे का कारण बन सकती है। यहां केवल उन्हीं लोगों को रखा जाता है जो इसके लिये डिजर्व करते हैं, और इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने का साहस, समझदारी, योग्यता रखते हैं। इस इण्डस्ट्री के लिये योग्य पात्रों का चयन कई फिल्टर प्रक्रियाओं के बाद ही हो पाता है। कुल मिलाकर यह एक शानदार प्रक्रिया है जो जरूरी भी है।
अब बात करते है निजी स्वार्थ की खातिर किस तरह से इस बेहद जिम्मदारी वाले काम को ग्लैमर से जोड़कर वास्तविकताओं से मुंह मोड़ लिया गया है, और धोखाधड़ी करने के नये तरीके को अपनाया गया है। मेरठ कोई खास बड़ा शहर नही है और न ही अभी मेट्रो सिटी होने की राह पर चला है। इस शहर में अय्याशी और जिस्मफरोशी के नये-नये तरीकों को परोसने वाली दुकानें अब एवीयेशन इण्डस्ट्री में कैरियर बनाने की आड़ में चलने लगी हैं।
यहां एवीयेशन फील्ड में करियर बनाने के नाम पर बहुत सारे छोटे बड़े इंस्टीट्यूट खुल गये हैं जो लड़के-लड़कियों का दाखिला मोटी फीस वसूल करके कर रहे हैं। यहां ये लोग छात्रों को नये नये सपने दिखाते हैं और पूरे साल के पाठ्यक्रम में उन्हें केवल सजना संवरना ही सिखाते हैं कि आप अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाओ, बेहद चमकीला बनाओ। अगर कोई आपको देखे तो बस देखता ही रह जाये। इन सस्थानों में छात्रों को फ्लाइंग स्टूअर्ट, होस्ट मैनजमेन्ट, पब्लिक रिलेशन जैसी पोस्ट के लिये तैयार करते है। इसका पूरा पाठय्‌क्रम केवल भाषा, व्यक्तित्व, आवरण, तौर-तरीके पर ही सिमट कर रह जाता है। अब चूंकि बच्चे एक-एक लाख, अस्सी हजार, सत्तर हजार रुपये (यह फीस नामी संस्थान लेते हैं, छोटे-मोटे लोकल संस्थान केवल तीस, चालीस हजार रूपये में भी ये कोर्स करा रहे हैं) खर्च करके ये कोर्स करते है। इन संस्थानों का वातावरण बेहद गलैमर्स होता है। यहां बच्चों को फैशन, बनाव सिंगार के तौर-तरीके तो संस्थान सिखाता है लेकिन बच्चे इस खुले वातावरण में इनसे भी आगे की चार बातें सीखकर अपने जीवन में अपना रहे है।
आगे पढ़ें के आगे यहाँ सब नई उमर के लड़के-लड़कियां हैं जो आपस में एक दूसरे को हर तरह से जान लेते हैं और सारी वर्जनाए और सीमाएं तोड़ देते हैं। इस तरह के कल्चर को यह संस्थान प्रमोट भी करते हैं और स्पेस व सुविधाएं भी मुहैया कराते हैं। यहां बच्चों का आपसे में एक दूसरे के प्रति शारीरिक संबंध बना लेना आम बात है क्योंकि उत्तेजक माहौल उन्हें यह सब करने को प्रेरित करता है। अब इसके बाद आता है अगला पड़ाव। मां-बाप ने बच्चों को महंगी फीस भरकर प्रवेश तो दिला दिया है लेकिन वहां बाद में क्या हो रहा है, यह उन्हें नहीं पता होता है। लड़कियां जब इस तरह के बनाव सिंगार को सीखती और अपनाती हैं तो इस काम के लिये भी पैसा चाहिये होता है। जो अब घर से मिलना होता नहीं है और ना ही वह बता पाती हैं कि उन्हें किस काम के लिये पैसा चाहिये। लेकिन वह यहां रहकर पैसा कमाने के दूसरे सोत्रों को भलीं-भांति पहचानने लगती हैं। इस तरह वह जाने अनजाने अपने आप को दूसरों के सामने पेश करने को भी मामूली बा मान लेती हैं और यह सब हौसला उनको मिलता है इन्ही संस्थानों से। यहां की हवा और घुट्टी में इन्हें घोल-घोल पिलाया जाता है कि आगे बढ़ने के लिये कुछ भी कर गुजरो, आपको एक बड़ा मॉडल, बड़ा व्यक्ति बनना है। इन सबके लिये अपने आपको बेचना मामूली कीमत है।
ये सभी संस्थान हमारी नई पीढ़ी को जिस्मफरोशी के नये नये तरीको से अपने आप को बेचने की कला सिखा रहे हैं। नई उमर की लड़कियां आर्कषण मे फंसकर अपने आपको मामूली चीजों के लिये स्वाहा कर देती हैं। आज के लड़के-लड़कियों के लिये अपनी वर्जिनिटी को खो देना एक मामूली बात हैं। यह हमें सोचना होगा की तरक्की और विकास को हम क्या कीमत चुकाकर ला रहे है।

प्रधान जी डॉट कॉम से साभार

रुदालियों के माफिक रोना छोड़ो भाई ….

लोग देश के पिछड़ेपन पर इस प्रकार रोते हैं जैसे दूसरो की मैय्यत पर रुदालियाँ । हर छोटी- बड़ी कुव्यवस्था के लिए सिस्टम (व्यवस्था ) को जी भर गालियाँ सुना कर ऐसा लगता है मानो कोई जंग जीती हो ! दिन भर में कम से कम एक बार तो किसी न किसी को पकड़ कर अपनी भड़ास निकाल ही लेते हैं हम सब। तब ऐसा महसूस होता है कि जैसे घंटो दबाये मूत्र का त्याग कर दिया है। यह सब आज हमारी दिनचर्या में शामिल है । इसमे एक बड़ी भूमिका मीडिया की भी रहती है । मीडिया तो ठहरी शासन की जन्मजात दुश्मन ! बाज़ार के हाथों में अपना सर्वस्व सौंप चुकी मीडिया जब श्री राम सेना या मनसे को पानी पी पी कर कोसते समय भूल जाती है कि सब किया धरा उसी का है । श्री राम सेना ने किसी को पीटा तो राष्ट्रीय ख़बर हो गई जबकि उसी दिन विदर्भ में दर्जन भर किसान भूख और कर्ज के बोझ से दब करते है और कहीं चर्चा नही होती। राहुल गाँधी एक दिन किसी दलित के घर रुकते हैं तो वो ख़बर होती है लेकिन किशोर तिवारी को कोई नही जनता जिस व्यक्ति ने सारी जिन्दगी विदर्भ के किसानों की सेवा में झोंक दी है। तो भइया यहाँ सब ऐसा ही चलता है ये मैं नही हम सब कह कर टाल जाते हैं । शासन और व्यवस्था को बदलने की नसीहत देने वाले, दूसरो पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाले हम सही दोषी है । समूचा समाज जिम्मेदार है । आख़िर एक घोटालेबाज मंत्री , एक भ्रष्ट नेता , एक घुसखोर अफसर / चपरासी / कर्मचारी , एक झूठा पत्रकार हमारे बीच से ही तो आता है । हम अक्सर नियम – कानून का हवाला देते हैं पर अपनी बारी आई तो सब भूल गए। एक छोटा सा उदाहरण लीजिये ट्राफिक जाम को देख कर कितना कोसते हैं हम सरकार को । लेकिन अपनी कार सब्जी खरीदते समय जहाँ-तहां सड़क पर पार्क करते समय ये ख्याल नही आता है । ख़ुद के व्यक्तिवादी सोच में हम डूबे हैं। अधिकारों , सुख -सुविधाओं की चाहत रखते हैं पर कर्तव्यों का पाठ याद नही रहता । जिस दिन हम सच्चे नागरिक बन गए सारी मुश्किलें ख़ुद बखुद समाप्त हो जाएँगी ।